एक तरफ सरकार बेहतर अर्थव्यवस्था का दावा कर रही है। हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था हैं। हम औधौगिक क्षेत्र में खुशहाली दिखा रहे हैं। इसके विपरीत सरकार सामजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर पैसे नहीं लगा पा रही है। उस पर उसका जोर नहीं दिखता। मनरेगा की मजदूरी एक एक साल से बकाया है।
politicswala
दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को बजट सत्र के दौरान इकोनॉमिक सर्वे पेश किया। सर्वे में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट के 6.5% होने का अनुमान लगाया है। यह पिछले 3 साल में सबसे धीमी ग्रोथ होगी। वहीं नॉमिनल जीडीपी का अनुमान 11% लगाया गया है।
FY23 के लिए रियल जीडीपी अनुमान 7% है। भले जीडीपी पिछले तीन सालों में सबसे धीमी ग्रोथ पर हैं पर भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। सर्वे के अनुसार,पर्चेजिंग पावर पैरिटी के मामले में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और एक्सचेंज रेट के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था।
एक तरफ सरकार बेहतर अर्थव्यवस्था का दावा कर रही है। हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था हैं। हम औधौगिक क्षेत्र में खुशहाली दिखा रहे हैं। इसके विपरीत सरकार सामजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर पैसे नहीं लगा पा रही है। उस पर उसका जोर नहीं दिखता। मनरेगा की मजदूरी एक एक साल से बकाया है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले के कई गांवों का दौरा किया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ यहां केंद्र और राज्य के बीच राजनीतिक झगड़े की वजह से मनरेगा के तहत मिलने वाले काम की मज़दूरी का भुगतान एक साल से भी अधिक वक्त से पीछे चल रहा है।
इलाके में रहने वाले सुंदर और उनके पति आदित्य सरदार ने मनरेगा के तहत चार महीने तक एक तालाब खोदा था। इन लोगों ने बीबीसी को बताया कि खाने-पीने की चीज़ें जुटाने के लिए उन्होंने क़र्ज़ लिया है। मज़दूरी देरी से मिलने का नतीजा ये हुआ कि उन्हें अपने बेटे को स्कूल से निकालना पड़ा।
सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने का कहना है कि ”केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल में एक करोड़ कामगारों का मनरेगा का पेमेंट एक साल से रोक रखा है। आर्थिक बदहाली और भारी बेरोज़गारी के इस दौर में ये अमानवीय है। देरी से मज़दूरी का भुगतान करने से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘बंधुआ मज़दूरी’ क़रार दिया है।
मनरेगा की मज़दूरी में ये देरी का मामला सिर्फ़ पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है। पूरे देश में इस तरह की समस्या है. केंद्र सरकार को पूरे देश के मनरेगा मज़दूरों को अभी भी 4100 करोड़ रुपये देने हैं।
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ कहते हैं कि केंद्र सरकार सामाजिक सुरक्षा की स्कीमों में ख़र्च घटाना चाहती है। लिहाज़ा मनरेगा की मज़दूरी बकाया जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
द्रेज़ कहते हैं,” एक वक़्त था जब मनरेगा में काम देने के लिए जीडीपी के एक फ़ीसदी तक ख़र्च बढ़ाया गया था। लेकिन अब ये घट कर एक फ़ीसदी से भी कम रह गया है। अगर इस बार के बजट में इसे फिर बढ़ा कर एक फ़ीसदी कर दिया जाए तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी. इसके साथ ही इस स्कीम में भ्रष्टाचार के लिए और ज़्यादा कोशिश करनी होगी।
मोदी सरकार ने मनरेगा के तहत गांवों में मिलने वाले रोज़गार के लिए किया जाने वाला ख़र्च घटा दिया है। इसके साथ ही खाद्य और फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी में भी ख़र्च का प्रावधान घटाया गया है। हालांकि कोविड के समय शुरू की गई आपात सहायता स्कीमों और ग्लोबल जियोपॉलिटिक्स से लगे झटकों को कम करने के लिए पूरक आवंटन बढ़ाया गया है।
You may also like
-
suicidal supriya shreenet … कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भरमार जो अपनी गंदी जुबान से राहुल की यात्रा पर फेर रहे पानी
-
New Joining in BJP …. मध्यप्रदेश में बीजेपी के कुनबे में बढ़ते कांग्रेसी और कांग्रेसवाद !
-
Mandsaur Ground Report .. राहुल की पिछड़ी राजनीति का टेस्ट है मंदसौर का चुनाव
-
congress star …. प्रत्याशी के पते नहीं पर मध्यप्रदेश कांग्रेस ने घोषित कर दी स्टार प्रचारक सूची
-
#uma and #scindia news…आखिर कैसे एक साध्वी और महाराज के बीच बुआ भतीजे का संबंध