#indore loksabha candidate… शंकर तो नहीं, फिर कौन?

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कीर्ति राणा (इंदौर की राजनीतिक नब्ज के डॉक्टर )

भाजपा नेतृत्व के लिए तो इंदौर सीट रसगुल्ला की तरह गप्प करने के समान है- छिंदवाड़ा जितनी मशक्कत यहां नहीं करना है… इतनी आसान सीट को भी होल्ड करने का सीधा-सा मतलब है कि अब शंकर ललवानी नहीं! प्रदेश में सर्वाधिक मतों से 2019 में जीत दर्ज कराने वाले इंदौर के सांसद का इन पांच साल में ग्राफ इतना कैसे गिर गया कि पार्टी इस नाम पर विचार नहीं करना चाहती! शंकर तो नहीं, फिर कौन?

उनके विरोधी तो कई कारण गिनाते हैं, लेकिन संसद में पृथक सिंध प्रांत की मांग करने वाले सांसद को आत्मावलोकन करना चाहिए कि परिवार में मंगल प्रसंग तक के वर्षों में ऐसे हालात क्यों बन गए कि मोशाजी कोई नया चेहरा तलाश करने को मजबूर हो गए, जबकि यही शहर सतत् आठ बार सुमित्रा महाजन को संसद भेजने का करिश्मा भी कर चुका है।

शंकर तो नहीं, फिर कौन… प्रदेश की 29 में से 24 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने वाली भाजपा ने इंदौर, धार, उज्जैन, बालाघाट और छिंदवाड़ा इन पांच सीटों को होल्ड पर रखने वाले दिन से ही जीतने वाले प्रत्याशियों का अपने स्तर पर फीडबेक लेने की कवायद भी शुरू कर रखी है। बहुत संभव है कि 8 मार्च तक दूसरी सूची में इन सीटों के नाम भी घोषित कर दिए जाएं।

शंकर नहीं तो फिर कौन? इंदौर संसदीय क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं में भी यह मुद्दा चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि पिछले चुनाव में ललवानी ने यदि सर्वाधिक मतों से जीत का कीर्तिमान बनाया था तो सिंधी समाज और उनकी योग्यता से अधिक देश के चौकीदार नरेंद्र मोदी के प्रति उमड़ा विश्वास था। तब के चौकीदार ने अब मोदी का परिवार कैंपन शुरू कर दिया है तो जाहिर है… अब ललवानी की जगह पार्टी जिसे भी प्रत्याशी घोषित करेगी, उसे मोदी का परिवार सिर माथे बैठाएगा ही!

शंकर नहीं तो फिर कौन… पांच साल पहले वाला समय खुद को फिर दोहरा रहा है। तब भी कितने नाम चले थे… और घोषित हुआ था ललवानी का नाम। इस बार भी कई नाम चल रहे हैं, दिल्ली वाले फिर कोई दबा-कुचला चेहरा सामने लाकर चौंकाने की परंपरा जारी रख सकते हैं या ललवानी पर ही दांव लगा सकते हैं, क्योंकि चार सौ पार वाला पहाड़ तो प्रधानमंत्री ने अपने कंधों पर तोक रखा है।

इंदौर सीट से किसी जनप्रतिनिधि को प्रत्याशी बनाने की संभावना क्षीण है।संभावना तो यह अधिक है कि सुमित्रा महाजन के बाद दूसरी बार इस सीट से किसी महिला को प्रत्याशी घोषित किया जा सकता है! कई नाम जो हवा में तैर भी रहे हैं, उनमें पहले नंबर पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग और एचसीएल की सदस्य डॉ. दिव्या गुप्ता का नाम है। उच्च शिक्षित, विदेशी मामलों की जानकार-प्रवक्ता डॉ. दिव्या का नाम इंदौर से दिल्ली तक भाजपा के पुराने-नए नेताओं के लिए नया नहीं है। उनके पिता (स्व.) डॉ. ओम नागपाल भाजपा-संघ के प्रिय रहे हैं। ताई-भाई भी इस नाम पर सहमत हो सकते हैं।

केंद्रीय नेतृत्व यदि सिंधी समाज को ही खुश करना तय कर ले तो पूर्व लोकसभा स्पीकर श्रीमती महाजन ने अपनी समर्थक अंजू माखीजा का नाम आगे बढ़ा रखा है, लेकिन इस नाम पर ‘भाई खेमा’ आसानी से राजी हो जाएगा… इसकी संभावना कम है! वैसे भी एक बार ललवानी को मौका देने के बाद फिर से सिंधी समाज को अवसर देने की उम्मीद कम है।

महिला प्रत्याशियों में विधायक मालिनी गौड़ और राज्यसभा सदस्य कविता पाटीदार (महू) के नाम भी गिनाए जा रहे हैं! कविता पाटीदार के पक्ष में यदि विस उपाध्यक्ष और मप्र वित्त आयोग अध्यक्ष रहे (स्व.) भेरुलाल पाटीदार की पुत्री होना, जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में निर्विवाद कार्यकाल और प्रधानमंत्री के नौ वर्ष के कार्यकाल में इंदौर लोकसभा क्षेत्र के प्रभावी संपर्क अभियान की प्रधानमंत्री को केंद्र सरकार के प्रतिनिधि सदस्यों द्वारा सौंपी प्रभावी रिपोर्ट है… तो मालिनी गौड़ का सतत् चार बार विधायक और महापौर रहते इंदौर को देश में नंबर वन का खिताब दिलाने जैसी उपलब्धियां हैं। पाटीदार हों या गौड़… इन्हें लगातार उपकृत किया जाना महिला वोटरों में खीज का कारण बन सकता है!

अन्य महिलाओं में दुर्गा वाहिनी से जुड़ी राजपूत समाज की माला ठाकुर और विवादों के चलते आत्महत्या को मजबूर हुए संत उदय देशमुख (भय्यू महाराज) की पत्नी आयुषी देशमुख का नाम भी चर्चा में है! कांग्रेस ने बदनावर से राजपूत समाज के भंवरसिंह शेखावत को टिकट दिया तो भाजपा माला ठाकुर को प्रत्याशी घोषित कर समाज का मान बढ़ाए… यह मांग समाज के संगठन उठाने लगे हैं।

भय्यू महाराज के भाजपा नेताओं से रहे प्रगाढ़ संबंधों के चलते आयुषी देशमुख का नाम भी चल पड़ा है, लेकिन जिन हालातों में भय्यू महाराज को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा… वो सारे कारण आयुषी की राह कंटीली कर सकते हैं। शेष बची प्रदेश की पांच सीटों में से कम-से-कम दो सीटों पर महिलाओं को लड़ाना तय है!

शंकर नहीं तो फिर कौन… इसका चौंकाने वाला जवाब कोई आयएएस ही दे सकता है! इस्तीफा देकर लोकसभा चुनाव लड़ने की चुनौती स्वीकारने में भारतीय प्रशासनिक सेवा के डॉ. पवन शर्मा का नाम चल रहा है! अभी वे भोपाल के संभागायुक्त हैं… इससे पहले इंदौर के थे। कोरोना काल की चुनौतियों में संभाग में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है। संघनिष्ठ डॉ. शर्मा का नाम भी संघ ने ही आगे बढ़ाया है!

राऊ के पूर्व विधायक जीतू जिराती का नाम भी चल रहा है! जिराती क्यों… पार्टी द्वारा ग्वालियर क्षेत्र में सौंपी गई जिम्मेदारी पर शानदार प्रदर्शन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन, उज्जैन संभाग में विधानसभा चुनाव के दौरान अधिकतम सीटों पर प्रत्याशियों की जीत पर मंदसौर सांसद सुधीर गुप्ता के साथ ही मुख्यमंत्री मोहन यादव की सिफारिश, कैलाश विजयवर्गीय से नजदीकी, विधानसभा चुनाव के दौरान राऊ, कालापीपल से नाम फाइनल होने के दौरान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लिखा पत्र कि पार्टी द्वारा संभाग स्तर पर सौंपी जिम्मेदारी के चलते चुनाव नहीं लड़ना चाहता और इस त्याग की ऊपर तक हुई चर्चा के बाद वरिष्ठ नेता हितानंद शर्मा से गृहमंत्री अमित शाह तक का यह संकेत कि जीतू का उपयोग कहीं और करेंगे!

अन्य दावेदारों में नगर भाजपा अध्यक्ष गौरव रणदिवे का नाम भी चल रहा है! विधानसभा लड़ने से वंचित रहे रणदिवे को उम्मीद है कि पार्टी के आर्थिक लक्ष्य को पूरा करने के साथ ही जिले की सभी सीटों पर भाजपा की जीत का कुछ श्रेय उनके खाते में भी माना गया तो लोकसभा के लिए उनका चेहरा उपयुक्त हो जाएगा।रणदिवे के साथ प्लस प्वॉइंट ताई खेमा हो सकता है तो माइनस प्वॉइंट में भाई खेमा अधिक वजनदार है, जो जिले के बाद नगर अध्यक्ष की कुर्सी पर भी किसी अपने को बैठाना चाहता है!

पूर्व सीएम शिवराज के प्रिय रहे डॉ. निशांत खरे ने बीते वर्षों में आदिवासी अंचल में भाजपा को मजबूत बनाने के लिए युवा आयोग अध्यक्ष के रूप में खूब काम किया है।शिवराज सिंह तो उन्हें महापौर की कुर्सी पर बैठाना चाहते थे, लेकिन वीडी शर्मा ने ऐसा होने नहीं दिया। ऐसा नहीं कि डॉ. खरे योग्य नहीं हैं, बस कमी है तो यह कि शिवराज अब शक्ति सम्पन्न नहीं हैं!वैसे भी प्रदेश की 24 सीटों में शिवराज-तोमर की पसंद के प्रत्याशियों का प्रतिशत इतना अधिक हो गया है कि इंदौर के लिए इस जोड़ी के वीटो का भी महत्व नहीं रहेगा। (साभार FB)

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