कांग्रेस अपने गिरेबां में देखे …. इंदौर में प्रत्याशी न होने के पीछे नेताओं में बौद्धिक,राजनीतिक समझ की कमी,डमी के फॉर्म में भी प्रस्तावकों के हस्ताक्षर नहीं

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हाई कोर्ट ने कहा कि सब्स्टीट्यूट कैंडिडेंट (मोतीसिंह पटेल) का तो आवेदन निरस्त हो गया है। उसकी वजह 10 प्रस्तावकों के साइन नहीं होना है। जब आवेदन ही निरस्त हो गया तो उसे रिवाइज नहीं किया जा सकता। इसलिए आप दौड़ में नहीं हैं

पंकज मुकाती (एडिटर पॉलिटिक्सवाला )

इंदौर/भोपाल/दिल्ली। अखिल भारतीय कांग्रेस मानसिक, बौद्धिक रूप से भी कमजोर है। कांग्रेस में धनबल, लीडरशिप के साथ साथ राजनीतिक बुद्धि, सामान्य समझ की भी बहुत कमी आ गई है। पार्टी के पास ऐसे नेता ही नहीं बचे जो उसको सलाह दे सके। जो वरिष्ठ नेता बचे हैं, पार्टी का नया नेतृत्व उनसे सलाह लेना ही नहीं चाहता। नए नेताओं को लगता है वे सबकुछ जानते हैं। इसी का नतीजा है कांग्रेस इंदौर में कोई प्रत्याशी नहीं बचा सकी।

ये जानते हुए भी की अक्षय कांति बम गद्दारी कर सकते हैं, बावजूद इसके इसके पार्टी हाथ मलती रह गई। यदि कांग्रेस ने अपने डमी कैंडिडेट के साथ दस प्रस्तावको के हस्ताक्षर दिए होते तो आज मोती पटेल निर्दलीय ही सही पर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार बन सकते है। कॉग्रेस की इस दुर्गति के पीछे बिना-सोचे समझे, बिना वरिष्ठों की सलाह के नामांकन भरना भी है। आप बीजेपी को कितना ही दोष दें पर खुद कांग्रेस का प्रदेश संगठन भी बेहद कमजोर और नाकारा साबित हो रहा है।

पूर्व सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामेश्वर नीखरा ने एक बार कहा था कि नए नेता हमें भले संगठन में न लें, अपर हमारी सलाह तो लें। हमारा अनुभव उनसे ज्यादा है। उनकी ये बाद इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी की नाम वापसी और डमी प्रत्याशी के निर्दलीय तक न रह जाने से साफ़ हो गई।

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कांग्रेस के डमी प्रत्याशी मोती पटेल ने अक्षय कांति बम के ऐनवक्त पर नामांकन वापस लिए जाने के खिलाफ कांग्रेस की ओर से दायर याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि जिस सब्स्टीट्यूट कैंडिडेट को अधिकृत प्रत्याशी बनाने की मांग की गई है, वो तो अब दौड़ में ही नहीं है। उसका फॉर्म तो नामांकन की स्क्रूटनी के समय ही रिजेक्ट हो चुका है।

इसे समझने के लिए थोड़ा चुनावी प्रक्रिया को समझना होगा-

  • कांग्रेस ने अधिकृत उम्मीदवार बनाया अक्षय कांति बूम को
  • यानी पार्टी ने अपना फॉर्म ए और बी अक्षय बम को दिया।
  • दूसरे दिन पार्टी ने डमी कैंडिडेट के तौर पर मोती पटेल का नामांकन दाखिल करवाया।
  • एक पत्र मोती पटेल के फॉर्म के साथ लगाया गया कि यदि अक्षय बम का परचा ख़ारिज होता है तो मोती पटेल को फॉर्म ए और बी के लिए पार्टी अधिकृत करती है।
  • आमतौर पर मुख्य उम्मीदवार को दो प्रस्तावक देने होते हैं, जबकि निर्दलीय को दस।
  • कांग्रेस यहीं चूक गई उसने मोती पटेल के साथ भी दो ही प्रस्तावक दिए, यदि पार्टी ने उनके फॉर्म के साथ दस प्रस्तावक दिए होते हो मोती पटेलनिर्दलीय के तौर पर बने रहते।
  • यानी अक्षय बम के नामांकन वापसी के बाद भी निर्दलीय के तौर पर मोती पटेल बने रहते और कांग्रेस उनको समर्थन दे पाती।

इससे ये भी स्पष्ट है कि कांग्रेस के पास चुनावी समझ और कानूनी दांवपेच के जानकार नेताओं की कमी है। जानकार नेताओं की पार्टी संगठन सलाह ले हीनहीं रहा।

अदालत ने मोटी पटेल की याचिका ख़ारिज करते हुए रेलवे के टिकट का दिया उदाहरण

याचिकाकर्ता के वकील के तर्कों पर हाईकोर्ट ने ट्रेन के ऑनलाइन टिकट बुकिंग सिस्टम का उदाहरण देते हुए समझाया। उन्होंने कहा कि यदि आप ऑनलाइन टिकट बुक कराते हैं। चार्ट बनने तक टिकट कंफर्म नहीं है तो टिकट कैंसिल हो जाता है। ऐसे में आपको जनरल टिकट लेकर चलना पड़ेगा। अन्यथा आप विदआउट टिकट कहे जाएंगे।याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मेरा टिकट तब तो कंफर्म होगा जब मेरे से पहले वाला यात्री आए ही नहीं, तब तो मेरी टिकट कंफर्म है। इस पर हाईकोर्ट नेकहा कि वो RAC सिस्टम में होता है।

हाई कोर्ट ने कहा कि सब्स्टीट्यूट कैंडिडेंट (मोतीसिंह पटेल) का तो आवेदन निरस्त हो गया है। उसकी वजह 10 प्रस्तावकों के साइन नहीं होना है। जब आवेदन ही निरस्त हो गया तो उसे रिवाइज नहीं किया जा सकता। इसलिए आप दौड़ में नहीं हैं। एक्ट भी यही कहता है। इसके लिए चुनावी याचिका दायर कर सकते हैं।

चुनाव आयोग: संबंधित सब्स्टीट्यूट कैंडिंडेंट का फॉर्म स्क्रूटनी के समय ही रिजेक्ट हो गया था। कारण था कि उन्होंने दस प्रस्तावकों के नाम ही लिखे। उनके हस्ताक्षर नहीं है। वे नियमानुसार प्रस्तावकों के नाम लिखते और नाम वापसी के दिन तक बने रहते तो ये अधिकार मिल सकता था। चुनावी प्रक्रिया तो पीछे नहीं जा सकती।

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