सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )
सोशल मीडिया पर झूठ का कारोबार इतने धड़ल्ले से चलता है कि जब तक वहां की जानकारी को गढ़ी हुई, नकली, या झूठे संदर्भ में साबित किया जा सके, तब तक तो वह चारों तरफ फैल चुकी रहती हैं। ऐसे झूठ को फैलाने में जिस तबके की दिलचस्पी रहती है, वे खासा ओवरटाइम कर चुके रहते हैं। किसी ने सच ही लिखा था कि जब तक सच अपने जूतों के फीते बांधता है, तब तक झूठ पूरे शहर का चक्कर लगाकर आ चुका रहता है।
अभी ताजा मामला इंटरनेट पर तेजी से फैलाया जा रहा एक स्क्रीनशॉट है जिसे राहुल गांधी का वायनाड से किया गया ट्वीट बताया जा रहा है। इसमें राहुल गांधी का ट्वीट गढक़र लिखा गया है- नागरिकता बिल पास कर बीजेपी हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे पर चल रही है, हमारे पूर्वजों का एजेंडा हमेशा से इस्लामिक कंट्री पर रहा है, इसीलिए हमने दो इस्लामिक कंट्री बनाईं, पाकिस्तान और बांग्लादेश, अब हम भारत को हिन्दू राष्ट्र बनते नहीं देख सकते।
आमतौर पर भाजपा की समर्थक मानी जाने वाली एक समाचार वेबसाइट ने जांच-पड़ताल करके यह तथ्य सामने रखा है कि सोशल मीडिया पर तेजी से फैलाई जा रही यह पोस्ट गढ़ी गई है, झूठी और नकली है, राहुल गांधी ने ऐसी न कोई बात कही है, और न ही ऐसा कोई ट्वीट किया है।
इस वेबसाइट फैक्ट-चेक के बिना भी जिन लोगों में रत्ती भर भी कॉमनसेंस होगा, वे आसानी से समझ सकते हैं कि न तो राहुल गांधी, और न ही देश के किसी भी पार्टी के कोई और नेता इस तरह की बात कह सकते हैं, और यह सिर्फ किसी को बदनाम करने के लिए गढ़ा गया बड़े ही भौंडे किस्म का झूठ है।
किसी को बदनाम भी करना हो, तो मामूली मिलावट वाला झूठ एक बार चल सकता है, लेकिन सर्फ की सफेदी की चमकार वाला इतना सफेद झूठ परले दर्जे के मूर्खों के बीच भी नहीं खपाया जा सकता है।
लेकिन देश में एक तबका पिछली पौन सदी से लगातार इसी ‘अपनी राष्ट्रीय नीयत’ को लेकर जुटा हुआ है कि किस तरह जवाहरलाल नेहरू के पिता को मुस्लिम साबित किया जाए, जवाहर के दामाद फिरोज गांधी को मुस्लिम साबित किया जाए, किस तरह सोनिया गांधी को बार डॉंसर साबित किया जाए।
यह सिलसिला खत्म ही नहीं होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी नेहरू-गांधी परिवार को नफरत का निशाना बनाकर मुस्लिम साबित करने की कोशिश तो चल ही रही है, दुनिया के किसी एक देश में फैंसी ड्रेस में गांधी बनकर किसी विदेशी महिला के साथ डॉंस करने वाले आदमी की तस्वीर को भी गांधी बताकर गांधी को बदचलन साबित करना बहुत से लोगों का एक पसंदीदा शगल रहा है।
लेकिन ऐसी कोशिशें उस समाज में अधिक चलती हैं, और अधिक कामयाब होती हैं, जहां पर लोग हकीकत से अधिक अपनी हसरत को सच मानकर चलते हैं। हिन्दुस्तान में लोगों का एक बड़ा तबका ऐसा है जो दो मिनट की जांच-पड़ताल से किसी सनसनीखेज बात की सच्चाई परखने के बजाय दो घंटे लगाकर उसे हजारों लोगों तक पहुंचाने के काम को समाजसेवा की भावना से करता है।
यह सिलसिला देश को ऐसे-ऐसे झूठों से पाट चुका है जिन्हें दुनिया का कोई भी जिम्मेदार समाज छूता भी नहीं। और इसके ऊपर फिर भारत के विश्वगुरू होने का भी दावा है। यह दावा वे ही लोग अधिक करते हैं जो परले दर्जे के घटिया झूठ को परखने पर एक मिनट भी नहीं गंवाते। गैरजिम्मेदारी से झूठ फैलाने के मामले में हिन्दुस्तानी सचमुच ही विश्वगुरू हो सकते हैं। जिस तरह हिन्दुस्तान के किसी गांव-कस्बे का नाम वहां धड़ल्ले से होने वाले जुर्म की वजह से चारों तरफ फैला रहता है, उसी तरह हिन्दुस्तान के सोशल मीडिया का नाम यहां पर झूठ के संक्रामक रोग की रफ्तार से फैलने के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।
हमारे सरीखे लोग जो कि झूठ को परखने के ही पेशे में लगे हुए हैं, इसी से अपनी रोजी-रोटी निकालते हैं, उन्हें किसी के भेजे हुए वॉट्सऐप संदेश से ही यह समझ आ जाता है कि वे कितने गहरे पानी में हैं, और पानी कितना गंदा है, और इस पानी की गंदगी उन लोगों के दिल-दिमाग में किस कदर भर चुकी है।
लोगों की साख उनके फैलाए गए एक झूठ से चौपट हो सकती है, इस बात का अहसास जिनको नहीं है, वे आए दिन अपनी साख खोते चल रहे हैं। आज का वक्त सोशल मीडिया पर लोगों की की गई पोस्ट से उनकी विश्वसनीयता बनने या बिगडऩे का है।
किसी भी बड़ी कंपनी में, या बड़े संस्थान में किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखने के पहले उनकी सोशल मीडिया पोस्ट, और उनके बारे में दूसरों की लिखी गई बातें बारीकी से देख ली जाती हैं।
ऐसे में आज उनकी उगली हुई गंदगी बरसों तक दूसरों को दिखती रहती है। और गंदगी को फैलाना, झूठ को गढऩा, न सिर्फ बाकी सोशल मीडिया के लिए एक संक्रामक रोग रहता है, बल्कि ऐसे लोगों की अगली पीढ़ी इससे संक्रमित होती है। झूठे और जालसाज प्रोपेगेंडा में लगे हुए लोग अपने बच्चों को भी इसी राह पर धकेलते हैं, और अब ऐसे नफरतजीवी लोगों को दुनिया के बहुत से परिपक्व लोकतंत्रों से वीजा भी नहीं मिल सकता।
आज अगर लोग कुछ देशों में नफरती लोगों के खिलाफ जानकारियां भेजते हैं, तो उन देशों के दूतावास वीजा जारी करने के पहले ऐसी बातों की पड़ताल जरूर कर लेते हैं।
भारत जैसे चुनावी लोकतंत्र में हर बरस औसतन 4-5 राज्यों के चुनाव होते ही हैं, और इसलिए झूठ का सैलाब गढक़र उसे बड़े-बड़े पम्प लगाकर लहरों की शक्ल में बढ़ाया जाता है। जिन लोगों को नफरत फैलाने से मानसिक शांति मिलती है, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि ऐसी बिना खून-खराबे की हिंसा उनके अपने दिल-दिमाग को चौपट कर देती है। लोगों को नफरत की मानसिक बीमारी और हिंसा से बाहर निकलना चाहिए।
You may also like
-
दिल्ली सहित 5 शहरों में पुराने वाहनों को नहीं मिलेगा पेट्रोल-डीजल, नए नियम 1 नवंबर से होंगे लागू
-
गुजरात पुल हादसा: महिसागर नदी पर बना 45 साल पुराना गंभीरा ब्रिज ढहा, 9 लोगों की मौत, 8 को बचाया
-
बिहार बंद: वोटर वेरिफिकेशन के खिलाफ विपक्षी हुंकार, साथ आए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव
-
जरूरत की खबर: 9 जुलाई को भारत बंद, 25 करोड़ कर्मचारियों की हड़ताल से ठप होंगी बैंकिंग, डाक और परिवहन सेवाएं
-
ओवैसी बोले- भारतीय मुस्लिम बंधक हैं, नागरिक नहीं: रिजिजू ने कहा था- अल्पसंख्यकों को ज्यादा सुविधाएं मिलतीं