पोर्न अभिनेत्री से संबंध और ट्रम्प को सजा !

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अमरीका में यह भी माना जा रहा है कि ट्रंप समर्पित समर्थकों में इस अदालती फैसले से कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है, और वे लोग ट्रंप के भक्त किस्म के लोग हैं, जो कि हर कीमत पर उसे चाहते हैं।

सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

अमरीका की जनता ने अभी कुछ घंटे पहले एक इतिहास रचा है। न्यूयॉर्क की एक अदालत ने जनता के बीच से चुने गए एक दर्जन ज्यूरी सदस्यों ने पिछले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप पर एक लंबी सुनवाई के बाद यह माना है कि उन पर लगे सभी 34 आरोप सही हैं। यह मामला एडल्ट फिल्मों की एक अभिनेत्री के साथ ट्रंप के एक पुराने सेक्सकांड का है जिसमें कुछ भी जुर्म नहीं था।

नई-नई मुलाकात में ट्रंप ने इस अभिनेत्री, स्टॉर्मी डेनियल्स से 2006 में सेक्स किया था, और बाद में जब 2016 में वे जब राष्ट्रपति चुनाव लडऩे लगे, तो उन्होंने अपने वकील के मार्फत इस अभिनेत्री की चुप्पी खरीदी, और इसके लिए अपनी कंपनी की तरफ से कानूनी फीस के नाम पर इस वकील को एक लाख तीस हजार डॉलर दिए थे जो कि वकील ने इस अभिनेत्री को दिए।

लेकिन बाद में जब यह मामला सुर्खियों में आ ही गया, और ट्रंप की तरफ से इस अभिनेत्री के खिलाफ उनके आम अंदाज में अपमानजनक बातें कही गईं, तो इस अभिनेत्री ने खुलकर सेक्स और चुप्पी के भुगतान का यह मामला उजागर किया। बाद में न्यूयॉर्क के सरकारी वकील ने ट्रंप के खिलाफ यह मुकदमा शुरू किया कि यह चुप्पी खरीदना चुनावी खर्च का हिस्सा था जिसे चुनावी खर्च में नहीं दिखाया गया, और मतदाताओं को अंधेरे में रखा गया।

इस विवाद से जुड़ा हुआ एक पहलू यह भी था कि ट्रंप ने अपने इस चुनावी खर्च को अपनी कंपनी का कानूनी खर्च दिखाया, जो कि एक अलग बेईमानी थी। ऐसे बहुत से पहलू इस मुकदमे के 34 मुद्दे थे, और जनता के बीच से चुने गए ज्यूरी सदस्यों ने एकमत से इन सभी मुद्दों पर ट्रंप को गुनहगार माना है, और अब इस पर सजा का ऐलान अलग से होगा।

जिस जनता ने 2016 में ट्रंप को राष्ट्रपति बनाया था, उसी जनता के बीच से चुने गए ज्यूरी सदस्यों ने आज उन्हें गुनहगार ठहराया है। अमरीका की तरह एक वक्त हिन्दुस्तान में भी कुछ जगहों पर अदालतों में जनता के चुनिंदा प्रतिनिधि ज्यूरी बनकर बैठते थे, और वे ही गुनहगारी तय करते थे। अमरीका में अब भी यह व्यवस्था जारी है, और इस तरह जिस अमरीकी जनता ने एक वक्त ट्रंप को चुना था, उसी ने अब ट्रंप को खारिज कर दिया है। हालांकि इसके बाद भी चुनाव में ट्रंप का हार जाना तय नहीं दिख रहा है।

अमरीका बड़ा अजीब देश है, राष्ट्रपति चुनाव में दसियों लाख या करोड़ों डॉलर का खर्च होता है। हिन्दुस्तान में कई सीटों पर चुनाव आयोग की निर्धारित सीमा से सौ गुना खर्च होता है, लेकिन हिन्दुस्तान में हर खर्च कालेधन से हो जाता है, उसके लिए किसी बैंक खाते से भुगतान की जरूरत नहीं रहती।

अब अगर ट्रंप हिन्दुस्तान में रहते, तो इतनी रकम एक छोटे से बंडल में बांधकर स्टॉर्मी डेनियल्स को दे दी जाती, और उसका कोई सुबूत भी नहीं रहता। लेकिन अमरीका में कालाधन उस तरह आम इस्तेमाल में नहीं रहता, और लोगों को चुनावी चंदे और खर्च के हिसाब में अधिक पारदर्शी रहना पड़ता है।

अब इस मामले में सजा पाने के साथ ही ट्रंप अमरीका के पहले ऐसे भूतपूर्व राष्ट्रपति बन जाएंगे जिन पर आपराधिक मुकदमा चला, और जिन्हें सजा हुई। वे नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में अपनी रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से एक बार फिर खड़े हो रहे हैं, लेकिन इस अदालती सजा से उन्हें जेल जाना पड़े, या न जाना पड़े, मतदाताओं के बीच उनकी कुछ तो फजीहत होगी ही।

खुद रिपब्लिकन पार्टी के बहुत से नेता ही ट्रंप की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं, क्योंकि अभी अधिक गंभीर कुछ दूसरे आपराधिक मामले बचे ही हुए हैं, जिनमें ट्रंप को बड़ी कैद हो सकती है। जब वे 2020 का चुनाव हारे थे, तो उनके समर्थकों ने अमरीकी संसद पर बड़ा हिंसक हमला किया था, और बहुत से संसद सदस्यों की जिंदगी मुश्किल से बची थी।

उस वक्त ट्रंप ने अपने हमलावर सदस्यों को रोका नहीं था, बल्कि उन्हें उकसाया था। उनके उस वक्त के कमरे में मौजूद कुछ सहयोगियों ने अमरीकी संसद की सुनवाई में यह बयान भी दिया है कि उन्होंने ट्रंप को समर्थकों को शांत करने कहा था, लेकिन ट्रंप ने उनकी बात नहीं सुनी।

अमरीका भी बड़ा अजीब देश है जिस रिपब्लिकन पार्टी में बहुत से दूसरे अच्छे उम्मीदवार मौजूद हैं, वहां यह पार्टी दूसरी बार ट्रंप जैसे घटिया इंसान को उम्मीदवार बना रही है। किसी नेता की जीत की संभावनाओं से वे न तो महान हो जाते, और न ही भले। और यह बात ट्रंप पर पूरी तरह खरी उतरती है कि कामयाबी के अलावा उसकी और कोई खूबी नहीं है, और पिछले चुनाव के पहले तो उसने खुलेआम महिलाओं को दबोच लेने को लेकर इतनी घटिया बातें कही थीं कि उन्हें हिन्दी के पाठक बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।

ट्रंप का पूरा का पूरा राष्ट्रपति-कार्यकाल घटिया हरकतों से भरा रहा, लेकिन पार्टी को चार बरस के फासले से अब होने जा रहे अगले चुनाव में भी ट्रंप से परे कोई नहीं सूझा। डोनल्ड ट्रंप की पूरी जिंदगी कानून से लुकाछिपी में ही गुजरी है। एक बड़े खरबपति कारोबारी होने के नाते वे उस धंधे के उसूलों के मुताबिक तमाम तिकड़म करके टैक्स चोरी करते रहे, और उन पर उसके मुकदमे भी चल रहे हैं।

उन पर एक दूसरा मुकदमा यह चल रहा है कि पिछले राष्ट्रपति चुनाव में जब उनकी हार घोषित हो चुकी थी, तब उन्होंने एक राज्य के अपनी पार्टी के गवर्नर पर बहुत दबाव डाला था कि वह गिनती में गड़बड़ी करके ट्रंप को जीता हुआ घोषित कर दे। उस गवर्नर ने ऐसा करने से मना कर दिया था।

अब कुछ लोग रिपब्लिकन पार्टी को यह समझा रहे हैं कि वे ट्रंप की जगह किसी और को उम्मीदवार बनाएं क्योंकि ट्रंप को कई मामलों में कैद हो जाने का खतरा है, और वैसे में क्या जेल में रहते हुए ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकेंगे, इस पर लोगों को बड़ा शक है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अपनी पार्टी के भीतर भी ट्रंप प्रतिबद्ध वोटरों का समर्थन खोएंगे क्योंकि ऐसी शर्मिंदगी अब तक किसी भी नेता ने किसी भी पार्टी के लिए खड़ी नहीं की थी।

लोगों का यह भी मानना है कि जो वोटर किसी पार्टी के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं, वे भी ट्रंप के खिलाफ रहेंगे, और असल चुनावी फैसला यही बीच के वोटर करते हैं।

लेकिन ट्रंप दुनिया के सामने एक बेमिसाल नेता हैं जो कि इतने किस्म के कानूनी मामलों में फंसे होने पर भी अगला राष्ट्रपति बनने के लिए जान देने पर उतारू हैं। ट्रंप को किसी बात से शर्मिंदगी नहीं होती है, और यह अपने किस्म का अकेला मुजरिम नेता है, जिसके नए-नए मामले सामने आते भी रहते हैं।

अमरीका में यह भी माना जा रहा है कि ट्रंप समर्पित समर्थकों में इस अदालती फैसले से कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है, और वे लोग ट्रंप के भक्त किस्म के लोग हैं, जो कि हर कीमत पर उसे चाहते हैं।

ट्रंप को इस मामले में 11 जुलाई को सजा सुनाई जाएगी, और उसके बाद उनके सामने बड़ी अदालत तक जाकर इस फैसले के खिलाफ अपील करने की गुंजाइश भी रहेगी। ऐसा लगता है कि यह मामला नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव तक किसी अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंच सकेगा, और ट्रंप के दीवाने भक्तों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनका नेता कितना भ्रष्ट, या कितना दुष्ट है। इस बरस दुनिया के 60 देशों में चुनाव हो रहे हैं, और ऐसे में हर देश की मिसाल दूसरे देश में चर्चा तो बनती ही है। देखना है कि यह बरस पूरा होने तक दुनिया अधिक कट्टर और दकियानूसी बनती है, या उदारता की कोई जगह निकलती है।

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