इंदौर के सांसद चुनाव में ‘मंत्रीजी’ की कुर्सी दांव पर

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  • विजयवर्गीय v/s य जीतू पटवारी में कौन जीतेगा, नामांकन वापसी से बीजेपी ने झटका दिया तो ‘नोटा’ के दांव से कांग्रेस ने स्तब्ध किया…..
  • धार-खरगोन में सभा करने आये मोदी ने स्पष्ट तौर पर इंदौर बीजेपी को निर्देश दिए हैं कि पिछली बार से कम वोट नहीं मिलने चाहिए और नोटा यदि 50 हजार पार हुआ तो केंद्र सख्त कार्रवाई करेगा। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय रात दिन नोटा के खिलाफ बोल रहे हैं। कांग्रेस का नोटा अभियान सफल रहा तो ये तय है कि ये ‘नोटा’ कैलाश विजयवर्गीय के मंत्री पद पर चस्पा हो जाएगा।

पंकज मुकाती (Editor, Politicswala)

भोपाल/ इंदौर। कहानी के पहले कुछ पंक्तियाँ
– गए थे भलाई करने, करम फूट गए
-आये थे नमाज पढऩे, रोजे गले पढ़ गए
-‘चौबे चले छब्बे बनने, दुबे बनके लौटे’

ऐसी अनगिनत कहावतें लिखी जा सकती हैं, और ये सब सही साबित हो रही है। इंदौर लोकसभा में। कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने नामांकन वापस लिया। ठीक। फिर बीजेपी का दुपट्टा ओढ़ा। बहुत ठीक। इंदौर के मजबूत विधायक रमेश मेंदोला नामांकन वापस करवाने खुद जिलाधीश कार्यालय पहुंचे। वीडियो आया।

फिर समर्थकों के लिए एक और तस्वीर आई।मंत्री कैलाश विजयवर्गीय जो कलेक्ट्रेट ऑफिस से एक किलोमीटर की दूरी पर अपनी गाडी लगाकर खड़े थे। अक्षय बम उस गाडी में सवार हुए। ये सेल्फी खुद मंत्री जी ने उतारी। वायरल करने को टीम जुटी। तालियां पीटी गई। भिया ने कांग्रेस का खेल खत्म कर दिया। पर खेल खत्म नहीं हुआ, खेल शुरू हो गया। अब ये शंकर लालवानी की सांसदी का नहीं कैलाश विजयवर्गीय की कुर्सी बचाने का चुनाव बन गया है।

अक्षय की नाम वापसी के बाद कहानी का द एन्ड होना था। कैलाश विजयवर्गीय ने भी स्क्रिप्ट यही तक सोची, लिखी थी। पर कांग्रेस ने इसके पार्ट-2 की पटकथा लिख दी। नोटा को समर्थन देकर। कांग्रेस का नोटा अभियान अचानक आया एक तूफ़ान था।
क्रिया की प्रतिक्रिया थी जिसकी कल्पना तक इस कारनामे को अंजाम देने वाले बीजेपी के शूरवीरों ने नहीं की थी। मामले ने तूल पकड़ा और जिस काम पर साहब की शाबाशी की उम्मीद थी, अब वही काम मुसीबत बन गया है।

अब ये चुनाव भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी की नहीं मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की साख का हो गया। आप खुद भी देखिये शंकर किनारे खड़े होकर लहरें गिन रहे हैं, जबकि कैलाश विजयवर्गीय तूफ़ान से घिरे हुए।

Must Watch..

वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग लिखते हैं कि ‘बम कांड’ के कारण चर्चा में आए देश के सबसे ‘स्वच्छ’ शहर के कांग्रेसी प्रत्याशी का नामांकन आखऱिी वक्त में डरा-धमकाकर या अन्य देसी उपायों के ज़रिए वापस तो करवा दिया गया पर उसके कारण इंदौर सहित आसपास की सीटों के मतदाताओं पर जो ख़ौफऩाक प्रतिक्रिया हुई है उसने भाजपा को ऊपर से नीचे तक हिलाकर रख दिया है।
सूत्रों के मुताबिक इस मामले में दिल्ली तक तगड़ी रिपोर्ट हुई। आठ बार की इंदौर सांसद सुमित्रा महाजन ने कैलाश और उनके सहयोगी रमेश मेंदोला के तरीके पर सवाल उठाये। खुद शंकर लालवानी ने दिल्ली दरबार में शिकायत दर्ज करवाई कि चुनाव में लड़ रहा हूँ, मुझे कोई खबर ही नहीं।

कांग्रेस के प्रत्याशी का नामांकन वापस करवा लिया बीजेपी के विधायक ने खुद साथ जाकर। सारे चुनाव के सूत्र जब दूसरे लोगों को ही अपने पास रखने हैं तो मैं क्या कर सकता हूँ ? यही कारण है कि लालवानी ने पैसे खर्च करने से भी इंकार कर दिया। इसके अलावा विधानसभा चार की विधायक मालिनी गौड़ ने भी दिल्ली तक अपनी बात पहुंचाई कि विधानसभा चुनाव में मेरा विरोध करने वाले को पार्टी में शामिल करा लिया गया और हमें खबर तक नहीं।

विधायक के वीडियो और मंत्री की तस्वीर ने बढ़ाई नाराजगी
केंद्र के नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि कोई भी वरिष्ठ नेता/मंत्री ऐसे बचकाने तरीके कैसे अपना सकता है। क्या जरुरत थी बीजेपी विधायक को सरेआम कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन वापस करवाने जाने की। फिर उसका वीडियो ऐसे जारी करना जैसे किसी को घेर कर बंधक बना लिया हो। दूसरे मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने अपने गाड़ी में बम को बैठाकर जो सेल्फी वायरल की है, उसे भी गलत माना है। ये दोनों ही तस्वीरों ने जनता के प्रति बीजेपी की नाराजगी को बढ़ाया। संघ ने इसको लेकर मुखर विरोध दर्ज कराया।

नोटा मुहिम से मोदीशा भी नाराज
कांग्रेस का नोटा अभियान तुरुप का इक्का साबित हुआ। इसने न सिर्फ इंदौर बल्कि प्रदेश की कई सीटों पर कोंग्रेस को मजबूत किया। इस अभियान ने नए नवेले प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को भी पक्का नेता बना दिया। धार-खरगोन में सभा करने आये मोदी ने स्पष्ट तौर पर इंदौर बीजेपी को निर्देश दिए हैं कि पिछली बार से कम वोट नहीं मिलने चाहिए और नोटा यदि 50 हजार पार हुआ तो केंद्र सख्त कार्रवाई करेगा। इस कार्रवाई में मंत्री पद भी जा सकता है।
ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय रात दिन चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। वे हर तरफ से नोटा के खिलाफ बोल रहे हैं। यदि कांग्रेस का नोटा अभियान सफल रहा तो ये भी तय है कि ये ‘नोटा’ कैलाश विजयवर्गीय के मंत्री पद पर चस्पा हो जाएगा।

जिन मंत्रियों के इलाकों में कम वोटिंग हुई है, उन सभी पर केंद्र की तिरछी निगाह है। फिलहाल तो कैलाश विजयवर्गीय इस नोटा के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं।

अब तक की राजनीति में अपराजेय रहे इस योद्धा को इस बार बेहद मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। मामला वोटिंग बढ़वाने का नहीं नोटा को रोकने का जो है।जीतू पटवारी से विजयवर्गीय को कभी भी ऐसे मजबूत अभियान की उम्मीद नहीं रही होगी।
एक कहावत याद आ रही है – ‘चौबे चले छब्बे बनने, दुबे बनके लौटे’

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