झाबुआ सीट ग्राउंड रिपोर्ट … ‘भूरिया गढ़’ की मजबूत दीवारों को भेद पाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

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लोगों का झुकाव मोदी की गारंटी पर है, लेकिन स्थानीय स्तर पर बीजेपी प्रत्याशी की तुलना में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को ज्यादा करीब मानते हैं। इसका कारण ये हैं कि भाजपा की अनिता चौहान के मुकाबले भूरिया तक लोगों की सीधे पहुंच है

पंकज मुकाती

भोपाल। मध्यप्रदेश की रतलाम-झाबुआ सीट दो अलग-अलग इलाकों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके खानपान और वोटिंग में भी अंतर है। रतलाम की सेव प्रसिद्ध है तो झाबुआ के दाल पानिये। रतलाम में चमकदार चांदी है तो झाबुआ में कड़कनाथ। जैसे ये दो अलग आबोहवा वाले इलाके हैं, वैसे ही इनमे वोट भी पड़ता है।

एक बात फिर भी साफ़ है इस आदिवासी सीट पर कांग्रेस की चमक अभी भी बरक़रार है। मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा के बाद यदि कांग्रेस कहीं मजबूत है तो वो है झाबुआ। कमलनाथ के बाद कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ही हैं जो पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहे हैं।

पॉलिटिक्सवाला ने पूरे इलाके में अलग-अलग लोगों से बात की। लोगों का झुकाव मोदी की गारंटी पर है, लेकिन वे स्थानीय स्तर पर बीजेपी प्रत्याशी कीतुलना में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को ज्यादा करीब मानते हैं। इसका कारण ये हैं कि भाजपा की अनिता चौहान के मुकाबले भूरिया तक आम लोगों की सीधे पहुंच है।

वे पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के जीएस डामोर से हार के बाद लगातार इलाके में सक्रिय है। भाजपा ने प्रदेश के वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी को टिकट दिया है। ऐसे में परिवारवादी राजनीति को बीजेपी के पुराने दावेदार पचा नहीं पा रहे हैं।

भूरिया गढ़ कह सकते
इस सीट पर कुल 18 चुनाव हुए इसमें से 14 बार कांग्रेस जीती। कांग्रेस से भी11 बार भूरिया जीते। छह बार दिलीप सिंह भूरिया। पांच बार कांतिलाल भूरिया। बीजेपी ने 2014 में मोदी लहर में पहली बार ये सीट जीती। वो भी कांग्रेस से बीजेपी में आये दिलीप सिंह भूरिया की जगह।

दिलीप सिंह भूरिया कांग्रेस छोड़कर आये और बीजेपी से इस चुनाव को जीते। कुछ दिन बाद ही उनका निधन हो गया। उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया जीते। उन्होंने दिलीप सिंह भूरिया की बेटी निर्मला भूरिया को हराया। निर्मला भूरिया अभी मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री हैं।

विधानसभा में कांग्रेस-बीजेपी रहे बराबर

छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी इस लोकसभा सीट की आठ सीटों में से चार पर बीजेपी और तीन पर कांग्रेस और एक पर भारतीय ट्रायबल पार्टी जीती है। यानी मुकाबला बहुत कड़ा दिखाई दे रहा है। इस इलाके की एक विधानसभा में कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत विधायक हैं, तो एक पर बीजेपी प्रत्याशी अनिता चौहान के पति नागर सिंह चौहान विधायक है। कुल मिलाकर दोनों तरफ दमदारी बराबर है। पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा लाभ कांतिलाल भूरिया के अनुभव और उनकी मजबूत पकड का मिल रहा है। वे अभी आगे दिखाई दे रहे हैं।

पिछले प्रत्याशी का विरोध भी

सरकारी नौकरी छोड़कर पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर लड़कर जीते जीएसडामोर इस चुनाव में कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। डामोर की निष्क्रियता और लोगों की समस्याओं के लिए उनसे न मिलने की बड़ी शिकायत रही है। ऐसे में जनता का एक बड़ा वर्ग ये मानने लगा है कि बाहरी प्रत्याशी को खोजना मुश्किल होता है. कांतिलाल भूरिया उनके लिए सहज उपलब्ध रहते हैं। डामोर की जो नेगटिव छवि रही है वो भी अनिता चौहान के लिए मुश्किल कर रही है। टिकट कटने के बाद डामोर गुट भी बीजेपी के लिए बहुत सक्रिय नहीं है।

महिला उम्मीदवार नहीं जीती

इलाके में अब तक महिला प्रत्याशी नहीं जीत सकी है। बीजेपी ने इससे पहले रेलम चौहान और निर्मला भूरिया को भी मैदान में उतारा पर दोनों चुनाव हार गई। इस आदिवासी इलाके में अभी भी महिला उम्मीदवार के लिए बहुत जगह बनती नहीं दिख रही है।

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