election latest update .. वो सात सवाल जिनके जवाब देने से किनारा करते रहे मुख्य चुनाव आयुक्त

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दिल्ली। निर्वाचन आयोग ने 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है। मतदान सात चरणों में होगा और नतीजे चार जून को । किस राज्य में किस दिन मतदान होगा, इसका कार्यक्रम जारी करने से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि आयोग ने चुनावों को मद्देनज़र क्या-क्या तैयारियां की हैं।

इसके बाद उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब भी दिए-

इस दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त से सात चरणों में मतदान करवाने की वजह, ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों की चिंताओं, चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफ़े और आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर पक्षपात के आरोपों से जुड़े सवाल किए गए। उनसे यह भी पूछा गया कि जम्मू कश्मीर की लोकसभा के लिए वोटिंग करवाई जा सकती है तो वहां विधानसभा के चुनाव भी अन्य चार राज्यों की तरह साथ में ही क्यों नहीं करवा दिए गए।

पढ़िए ऐसे ही सात सवाल और उन पर मुख्य चुनाव आयुक्त के जवाब….

सवाल नंबर 1 … . सात चरणों में क्यों करवाया जा रहा है मतदान?

पत्रकार .. विपक्षी दलों का आरोप है कि कई चरणों में चुनाव करवाना ग़ैर-ज़रूरी है और इसका फ़ायदा सत्ताधारी दल को होता है?
मुख्यचुनाव आयुक्त।.. एक बार पूरे देश की भौगोलिक स्थिति को देखिए. नदी-नाले, बर्फ़, पहाड़,जंगल, गर्मी… सोचिए. सुरक्षा बलों के मूवमेंट के बारे में सोचिए. उन्हें तीन से चार दिन में लंबी दूरी तय करनी होती. उनपर बहुत दबाव होता है।

“देश में त्योहार होते हैं, होली, रमज़ान, राम नवमी. जब हम कैलेंडर देखते हैं तो एक तारीख से दूसरी तारीख पर जाना पड़ता है। हम अलग-अलग तारीखें किसी को फ़ायदा या नुक़सान पहुंचाने के लिए नहीं करते। ये आरोप ग़लत हैं। हम सिर्फ़ तथ्यों पर बात कर सकते हैं। “कई राज्यों में भी परिस्थितियां अलग हैं। किसी राज्य में चुनाव एक ही चरण में है तो किसी राज्य में सात में है। जहां सात चरणों में चुनाव हैं, उनका विस्तार ज़्यादा है और सीटें भी ज़्यादा हैं।

सवाल नंबर 2 –
पत्रकार .
विपक्षी दल ईवीएम पर सवाल उठाते हैं, सच क्या है ?

मुख्य चुनाव आयुक्त … “ईवीएम को लेकर कई बार सवाल आ चुके हैं. देश की संवैधानिक अदालतों,हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर चुकी है। किसी में कहा गया कि ये हैक हो सकती है, कंप्यूटर से छेड़छाड़ हो सकती है, नतीजे बदल सकते हैं या 19 लाख लापता हैं। मगर हर बार अदालतों ने इन आपत्तियों को खारिज किया। ये किताब देखिये “इस क़िताब में हमने सवालों के जवाब भी दिए हैं और 40 मामलों में संवैधानिक अदालतों के फै़सलों के बारे में बताया गया है। इसे एक्सपर्ट को भी पढ़ना चाहिए। बताया गया है कि कितनी बार ईवीएम से चुनाव होने के बावजूद सत्ताधारी दलों को सत्ता से हटना पड़ा।
“अब तो अदालतों ने ईवीएम पर की जाने वाली याचिकाओं को समय की बर्बादी बताते हुए जुर्माना लगाना भी शुरू कर दिया है। ईवीएम किसी भी सूरत में हैक नहीं हो सकती। कई राजनीतिक दल तो ईवीएम के दौर में ही अस्तित्व में आए हैं। बैलट पेपर के दौर में शायद उनती निष्पक्षता के कारण उनके लिए उभरना इतना आसान नहीं होता।
“आजकल कोई भी एक्सपर्ट बनकर एक डब्बा लेकर ईवीएम जैसा कुछ बनाकर धारणा बनाते लगता है कि वोट कुछ डाला और रिकॉर्ड कुछ हो गया। जबकि आपने क्या सिस्टम बनाया है, कोई नहीं जानता। “मैं कल सोच रहा था कि ईवीएम पर सवाल पूछा जाएगा. तो इस पर मैंने कुछ लिखा है, उसे सुनाता हूं।

“अधूरी हरसतों का इल्ज़ाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं। ये मैं नहीं, ईवीएम कह रही है।

अधूरी हरसतों का इल्ज़ाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं

वफ़ा ख़ुद से नहीं होती, ख़ता ईवीएम की कहते हो.

ईवीएम सौ फ़ीसदी सुरक्षित हैं. हमने दो सालों में कई सुधार भी किए हैं। अब हर उम्मीदवार को बूथ में जाने वाली ईवीएम का नंबर भी देंगे।

सवाल नंबर 3. टोटलाइज़र का इस्तेमाल क्यों नहीं?
पत्रकार -बूथ पर जाने वाली मशीन का नंबर दिए जाने पर उम्मीदवार को पता लग सकता है कि कहां से उसे कम और कहां से ज़्यादा वोट मिले।
तो क्या ऐसी स्थिति से बचने के लिए बाद में सभी मशीनों का नतीजा एकसाथ देने वाले टोटलाइज़र उपकरण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?

मुख्य चुनाव आयुक्त … “मैं मानता हूं कि बूथ के आधार पर नतीजे पता चलाना अच्छा नहीं होता,लेकिन टोटलाइज़र को इस्तेमाल करके कई मशीनों का नतीजा एक साथ देना इसलिए मुश्किल है क्योंकि लोग तो अभी एक मशीन पर ही सवाल उठा रहे हैं। एक साथ कई मशीनों का नतीजा देंगे तो पता नहीं क्या कहेंगे। “राजनीतिक सिस्टम को परिपक्व होने देना चाहिए। नई तकनीकों को लागू करने के लिए समय लगता है. उम्मीद है ऐसा समय आएगा।

सवाल नंबर 4 अरुण गोयल के इस्तीफ़े की वजह क्या रही?

पत्रकार – चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अचानक पद क्यों छोड़ा, इस पर रोशनी डालनी चाहिए?

मुख्य चुनाव आयुक्त .. “वो हमारी टीम के ख़ास सदस्य थे, उनके साथ काम करना अच्छा लगा। लेकिन हर संस्थान में लोगों को पर्सनल स्पेस देना चाहिए। अगर उन्होंने निजी कारण बताए हैं तो उस मामले में निजी सवाल नहीं किए जा सकते। “वैसे भी हमारे पूर्ववर्ती लोगों ने चुनाव आयोग को ऐसी जगह बनाया है, जहां असहमतियों का भी सम्मान किया जाता है. तो यहां चर्चा होती है। असहमतियां भी होती हैं और ये होती रहनी चाहिए।

  1. आचार संहिता उल्लंघन पर ‘दोहरे मापदंड’ क्यों?

पत्रकार – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को लेकर कई शिकायतों में यह देखने को मिला कि चुनाव आयोग ने उस तरह से एक्शन नहीं लिया, जैसा एक्शन विपक्षी नेताओं को लेकर लिया ?

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया- , “ये एक तरह से हमारे ऊपर आरोप है। सवाल पूछने का अधिकार है आपको. पिछले 11 चुनावों में हमारे पास जितने भी आरोप आए, उनपर हमारे नोटिस देखिए.””जब भी आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप स्थापित होता हो, उसका जवाब आने के बाद ऐसा नहीं है कि हमने कार्रवाई नहीं की है। जिस किसी पर भी कोई मामला बनेगा, वह कितना भी बड़ा स्टार कैंपेनर क्यों न हो, हम बैठेगें नहीं, क़दम उठाएंगे।

सवाल नंबर 6 – जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव क्यों नहीं ?
मुख्य चुनाव आयुक्त – “जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में बना था। इसमें 107 विधानसभा सीटों का प्रावधान था जिनमें से 47 सीटें पीओके के लिए थीं. लेकिन फिर 2022 में पुनर्सीमांकन किया गया तो राज्य की सीटें 107 से 114 हो गईं। फिर इसमें आरक्षण का भी प्रावधान था। फिर दिसंबर में इस आधार पर जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में संशोधन किया गया. लेकिन तब तक हम लोकसभा चुनावों की तैयारी में लग गए थे।
“जब हम कश्मीर में लोगों से मिलने गए तो वहां राजनीतिक दलों का कहना था कि लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव करवा दीजिए. लेकिन वहां प्रशासन का कहना था कि ऐसा करना संभव नहीं होगा. क्योंकि 1000 के क़रीब उम्मीदवार होंगे और हर उम्मीदवार को कम से कम दो सेक्शन फ़ोर्स सुरक्षा के लिए देनी पड़ती है।

सवाल नंबर 7. कैश की बरामदगी पर क्या कार्रवाई होती है ?
पत्रकार -कैश की बरामदगी में कितने लोग जेल गए, कौन सी पार्टियों के लोग शामिल थे, इसकी जानकारी साझा नहीं की जाती?

मुख्य चुनाव आयुक्त – “कई राज्यों में धनबल का ज़ोर ज़्यादा देखने को मिलता है. हम इस पर गंभीर हैं. अगर आप अन्य दक्षिण राज्यों में हाल के समय में हुए चुनावों पर नज़र डालेंगे तो पाएंगे कि इस समस्या पर हमने काफ़ी हद तक लगाम लगाई है. आप चिंता न करें।

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