विनोद कुमार शुक्ल को मिला भारतीय साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार “ज्ञानपीठ”

Share Politics Wala News

#politicswala report

Gyanpeeth award 2025-दिल्ली। हिंदी के जाने माने कवी-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जायेगा। आज शनिवार को दिल्ली में ज्ञानपीठ चयन समिति ने इसकी घोषणा की। छत्तीसगढ़ से किसी साहित्यकार को पहली बार ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा। हिंदी के शीर्षस्थ कवि , कथाकार विनोदजी पिछले 50 सालो से लेखन कर रहे हैं। उनके उपन्यास नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में शुमार हैं। ‘नौकर की कमीज’ पर फिल्म भी बन चुकी है। इसे जाने-माने फिल्मकार मणिकौल ने बनाया था।

देश-विदेश से अनेक सम्मान से नवाजे जाने वाले विनोद कुमार शुक्ल अमेरिकन नाबोकॉव अवॉर्ड पाने वाले पहले एशियाई हैं। उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 1999 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिल चुका है।

पुरस्कार की लंबी फेहरिस्त

विनोद कुमार शुक्ल कविता और उपन्यास लेखन के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, सृजनभारती सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, पं. सुन्दरलाल शर्मा पुरस्कार,मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।

कवि के रूप में भी प्रसिद्ध

जयहिंद, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, जैसे कविता संग्रह की कविताओं को भी दुनिया भर में सराहा गया है।

बालसाहित्य भी चर्चित

बच्चों के लिए लिखे गए हरे पत्ते के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का जैसी रचनाओं को भी पाठकों ने हाथों-हाथ लिया है। दुनिया भर की भाषाओं में उनकी किताबों के अनुवाद हो चुके हैं।

भारतीय साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ

ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास की तरफ से भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो 8वीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो, इस पुरस्कार के योग्य है।
पुरस्कार में 11 लाख रुपए, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। 1965 में 1 लाख रुपए की पुरस्कार राशि से शुरू हुए इस पुरस्कार को 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया, जो वर्तमान में 11 लाख रुपए हो चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को दिया गया था।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *