राजनीति के पोस्टर ब्यॉय पोस्टर से भी बाहर
भाजपा ने समझ लिया कि सिंधिया एक बड़ी भूल है, उनके खिलाफ उठ रही गद्दार की आवाजों के बाद पार्टी ने चुनाव अभियान से सिंधिया को दूर कर दिया, बड़े आयोजन में तो वे पहले भी किनारे कर दिए गए
दर्शक
इंदौर। ज्योतिरादित्य सिंधिया। महाराज सिंधिया। अब किसी काम के नहीं रहे। भाजपा ने तो अब सार्वजनिक रूप से से स्वीकार ही लिया। जो कुछ अंदरखाने चल रहा था, वो अब सामने आ गया। भाजपा ने सिंधिया को अपने चुनावी रथ से उतार ही दिया। गद्दार और महाराज दोनों ही तमगे भाजपा नेताओं को नहीं सुहाए।
अंतत. भाजपा ने अपने चुनाव अभियान रथ से इस पोस्टर ब्यॉय को निकाल दिया। रथ से तो उतारे ही गए, स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें दसवें नंबर पर रखा गया है। सिंधिया का पतन,कांग्रेस में चुनाव प्रभारी, अब प्रचारक भी नहीं
भारतीय जनता पार्टी ने 2018 का विधानसभा चुनाव ‘माफ़ करो महाराज’ के नारे पर लड़ा। अब सिंधिया भाजपा में आ गए हैं। पर भाजपा ने अपना नारा वही रखा-हमारा नेता शिवराज, माफ़ करो महाराज। स्टार प्रचारकों की सूची में सिंधिया से उपर कैलाश विजयवर्गीय भी है। जबकि पार्टी ने विजयवर्गीय को प्रदेश के मामलों से लगभग किनारे कर दिया है। यानी भाजपा के किनारे कर दिए गए नेता से भी नीचे हैं सिंधिया।
सूत्रों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारी विरोध को देखते हुए भाजपा ने उन्हें चुनाव अभियान से दूर रखने का फैसला लिया। शिवराज के साथ ग्वालियर के सदस्यता अभियान में जिस तरह से महल के खिलाफ और सिंधिया गद्दार के नारे गूंजे, उसी दिन भाजपा ने समझ लिया कि भूल हो गई। जिसे जनता का नेता समझा वो तो पोस्टर बॉय भी नहीं निकला।
ग्वालियर के बाद इंदौर, सांवेर, बदनावर कई जगह गद्दार वाले नारे लगे। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने जितने भी भूमिपूजन और शिलान्यास किये उसे सिंधिया को नहीं बुलाया गया। भाजपा को अब ये भरोसा हो गया है कि सिंधिया का साथ हार की गारंटी है।
ग्वालियर से जुड़े रहे प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक का भी मानना है कि गद्दारी के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया की सामंती ठसक भी भाजपा कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रही है। सिंधिया अक्सर सभाओं में कहते हैं, आप महाराज को वोट दे रहे हैं।
भाजपा जो पूरी ज़िंदगी सामंतशाही से लड़ती रही उसके मंच पर ऐसा प्रदर्शन वो कैसे बर्दाश्त करेगी। ग्वालियर से जुड़े प्रभात झा और जयभान सिंह पवैया भी इससे नाराज चल रहे हैं।
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सिंधिया के समर्थकों को भी अब लगने लगा है कि उन्होंने गलती कर दी। यदि वे इस बार हार गए तो पूरी राजनीति खत्म। कांग्रेस में लौटकर भी कुछ हासिल होना नहीं है। शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया समर्थकों को मंत्री जरूर बनाया। पर पूरे सूत्र अपने हाथ रखे। मंत्रियों के विभाग में शिवराज ने बड़ी चालाकी से अपने अफसरों को नियुक्त किया। एक तरह से मंत्रियों के हाथ बाँध दिए गए। साथ ही उनकी जासूसी भी करवाई गई।
सिंधिया कभी ग्वालियर-चबल में जीताऊ चेहरा नहीं रहे
ये सच भी सामने आ गया
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में मध्यप्रदेश के दूसरे हिस्सों में ये माना जाता है कि ग्वालियर और गुना में उनकी चलती है। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। गुना की चार में से तीन सीटें कॉग्रेस के पास है इसमें से भी दो दिगिवजय सिंह के परिवार के पास है। यानी गुना में सिंधिया का कोई वजूद नहीं। वे खुद यहाँ से लोकसभा हार चुके हैं। ग्वालियर में पिछले बीस साल से कोई कांग्रेसी लोकसभा चुनाव नहीं जीता। यदि इस इलाके में सिंधिया की इतना ही वजूद होता तो 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक बाद वे सवा लाख मतों से लोकसभा नहीं हारते।
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