भाजपा की चाल …सिंधिया समर्थक मंत्रियों की जासूसी

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सिंधिया समर्थक मंत्रियों के विभागों में कद्दावर अफसरों की नियुक्ति कर उनके हाथ-पैर बाँध दिए गए हैं, ऐसे में कई मंत्री सिंधिया से भी नाराज़ , वे खुद को घुटन में महसूस कर रहे हैं

पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )

शिवराज सिंह चौहान, चूकने वाले राजनेता नहीं हैं। वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के बढ़ते कद को बौना करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। सिंधिया समर्थकों को वे लम्बी पारी नहीं खेलने देंगे। चौथी बार के मुख्यमंत्री के मुँह से शहद और चेहरे पर भोलापन जरूर है, पर वे हैं भीतर उतने से ही शातिर। सिंधिया के समर्थक मंत्रियों को बड़े पद भले मिल गए हो पर उनकी कमान शिवराज ने पिछले दरवाजे से अपने हाथ में ले ली हैं। शिवराज ने अपने खास अफसरों को इन मंत्रियों के विभागों का जिम्मा दे दिया है।

ऐसे में सभी मंत्री बेहद बेचैन और गुस्सा हैं। शिवराज ने तबादले में चुन-चुनकर अफसरों की नियुक्ति की है। अब ऐसे मंत्रियों के विभागों की फाइल आगे बढ़ना मुश्किल हैं। एक तरह से सिंधिया समर्थकों के विभाग शिवराज के अफसर ही चलाएंगे। ये मंत्री सिर्फ शोभा की सुपारी बने रहेंगे। सूत्रों के अनुसार भाजपा हाईकमान भी सिंधिया के जिद के आग झुक भले गया हो, पर वो पूरे अधिकार सिंधिया को नहीं देना चाहता। एक तरह से सिंधिया के मंत्रियों के बाड़ाबंदी कर दी गई है। कुछ मंत्रियों ने दबी जुबान ये भी कहना शुरू कर दिया इससे तो कांग्रेस में ही अच्छे थे। 

मध्यप्रदेश में तबादलों की जो सूचियां पिछले दिनों आई उसने साबित कर दिया कि भाजपा ने सिंधिया के खिलाफ राजनीति शुरू कर दी है। कुछ बड़े और दबंग अफसरों की नियुक्ति ने इस पर मुहर लगा दी है। कई कद्दावर और शिवराज के करीबी अफसरों की नियुक्ति सिंधिया समर्थक मंत्रियों के विभागों में की गई है।

ऐसे नियुक्तियों ने मंत्रियों के हाथ-पैर बाँध दिए हैं। कई मंत्री नाराज है। खासकर तुलसी सिलावट और गोविन्द सिंह राजपूत तो अपने विभागों में कोई काम ही नहीं करा पा रहे। शिवराज इन दोनों को हर हल में नाकाबिल साबित करना चाहते हैं। इसके पीछे साफ़ रणनीति है सिंधिया के दो करीबियों को कमजोर करना। एक तरफ से मंत्रियों के विभागों में शिवराज ने जासूस नियुक्त कर दिए हैं।

देरी का फायदा उठाया

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब देखा कि सिंधिया जिद पर अड़े हैं। विभागों से लेकर ट्रांसपोर्ट कमिश्नर तक में उनकी चल रही है। ऐसे में शिवराज ने मंत्रिमंडल के साथ ही अफसरों के जरिये खुद को मजबूत कर लिया। सिंधिया सर्मथक मंत्रियों में इसे लेकर गुस्सा है। सूची देखेंगे तो साफ़ झलकता है कि शिवराज के करीबी मंत्रियों के यहां कमजोर अधिकारी नियुक्त किये गए। जबकि सिंधिया समर्थकों के विभागों की कमान ऐसे अफसरों को सौंपी गई जो हर फाइल में कोई रेड लाइन लगाकर उसे रोक सके।

नरोत्तम मिश्रा से भी तकरार सामने आया

शिवराज के सामने मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उभर रहे नरोत्तम मिश्रा को विभाग में राजेश राजौरा की नियुक्ति कर दी गई है। नरोत्तम और राजेश राजौरा के बीच कभी भी अच्छे सम्बन्ध नहीं रहे। अफसरशाही और कैबिनेट में सभी ये बात अच्छे से जानते हैं कि राजेश राजौरा कभी भी मंत्रियों की नहीं सुनते। वे अपने हिसाब से काम करने के आदि हैं।

अब सिंधिया समर्थकों के विभाग पर नजर डालते हैं। तुलसी सिलावट के विभाग में अब एसएम मिश्रा की नियुक्ति कर दी गई है। बिसाहू लाल सिंह के विभाग में फैज अहमद किदवई जैसा नाम है। राजवर्धन सिंह दत्ती गांव के विभाग में अब विवेक पोरवाल प्रमुख रहेंगे।

क्या उपचुनाव के नतीजों तक मंत्रियों की बाड़ाबंदी की गई ?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ऐसा कभी होता नहीं। मंत्री अपनी पसंद के अफसर रखते आये हैं। मंत्री और अफसरों के बीच सम्बन्ध अच्छे न होंगे तो कभी भी कोई काम आगे नहीं बढ़ सकेगा। भाजपा की रणनीति से जुड़े रहे लोगों का मानना है कि सिंधिया का जो कद भाजपा में बड़ा और भविष्य के लिहाज से चमकदार दिखाया जा रहा है, ऐसा है नहीं।

भाजपा नहीं चाहती कि उपचुनाव के नतीजों तक सिंधिया समर्थकों के विभागों में कोई बड़े फैसले हो सके। साथ पार्टी एक रणनीति के तहत इन मंत्रियों पर नजर रखे हुए हैं। बहुत संभव है कि चुनाव के नतीजों के बाद बड़े स्तर पर मंत्रियों के पर कतरे जाएँ। खासकर तुलसी सिलावट और गोविन्द सिंह राजपूत के कद को भाजपा कमजोर करना चाहती है।

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