शिवराज सिंह चौहान के अथक पुरुषार्थ और विनम्रता से क्यों विरोधी भी उनके कायल हैं बता रहे हैं शिवराज के निज सचिव रहे महेश तिवारी
2004 अप्रेल , मई का भीषण गर्मी का लोकसभा का चुनावी दौर था ,एक अल सुबह करीब 4 बजे शिवराज जी लगभग 22 घंटे के अत्यंत कठिन चुनावी जनसंपर्क के बाद अरेरा कालोनी के अपने अत्यंत सामान्य से फ्लेट में पहुँचते है तो उस समय वंहा पर बुधनी से आये एक सामान्य नागरिक को इंतजार करते हुए वे पाते हैं। वो एक अति सामान्य काम से लेकिन सिर्फ अपने ‘पांव पांव ‘ वाले नेता यानी शिवराज भैया से मिलने की जिद में बैठा मिलता है ।
चिरपरिचित मुस्कान से मिल कर और 1 मिनट में उसे संतुष्ट करने के बाद शिवराज जी से सहज जिज्ञासा में एक प्रश्न जो कि किसी भी सहायक का हो सकता था वह मैंने भी किया कि भाईसाहब जिस काम के लिये ये व्यक्ति पिछले 7 -8 घंटो से आपका इंतजार कर रहा था उसे तो अपने स्टाफ का कोई भी व्यक्ति एक मिनट में ही कर सकता था यह आपने उन्हें क्यों नही समझाया। इसका जो जबाब मुझे मिला वह आजकी राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण है और वह जबाब ही शिवराज को ‘शिव-राज’ बनाता है ।
जबाब था महेश ये जो व्यक्ति मेरा इंतजार कर रहा था ये काम के लिये नही अपने नेता पर अपने हक के लिये इंतजार कर रहा था,इसने कभी मुझे पीले चावल देकर राजनीति में आने का न्योता नही दिया था ,लेकिन जब मैंने इसे राजनीति को सेवा का माध्यम वाला भाषण दिया है तो इसका भी हक़ है कि ये मेरी परीक्षा 24 घंटे ले ।
मध्यप्रदेश में आज जब एक बार फिर सत्ता “शिव-राज” में बदल रही है, तब एक ये छोटी सी घटना का याद आ जाना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि शिवराज जी के लिये राजनीति के क्या मायने हैं। नानाजी देशमुख के राजनीतिक जीवन की आदर्श गाथा को जीने की चाहत रखने वाले शिवराज जी पर सत्ता की मदहोशी वाले दुर्गण कभी भी इसलिये हावी नही हो पाए क्योंकि शिवराज जी ने जनता के उस मर्म को कभी भी अपने से दूर नहीं होने दिया जिसके कारण 90 के दशक में एक विधानसभा का पांव पांव वाला शिवराज भैया पूरे मध्यप्रदेश का सर्वमान्य मामा बना ।
2018 में जिस दिन विधानसभा के परिणाम आये और जिस विनम्र पीड़ा के साथ शिवराज जी ने इसे अपनी व्यक्तिगत पराजय के रूप में स्वीकार किया था उस दिन ही प्रदेश के करोड़ों लोगों से जो एक आह निकली थी शायद उस आह ने ही इतनी जल्दी शिवराज जी को एक बार फिर ये मौका प्रदान कर दिया।
2018 के चुनाव काल के पूर्व पूरे मध्यप्रदेश में शिवराज जी अपनी महत्वकांक्षी यात्रा को लेकर निकले थे तो ये सबने देखा कि पूरे प्रदेश में हर परिस्थिति में शिवराज जी के लिये एक अलग तरह दीवानगी का माहौल था। यह माहौल बाद में राजनीतिक विजय में पूरी तरह क्यो नही बदल पाया इसके बहुत सारे विश्लेषण किये जा सकते है।
जो निर्विवाद अटल सत्य है वह यह कि शिवराज जी का कद मुख्यमंत्री के पद से नही तौला जा सकता है।
शिवराज जी को सिर्फ राजनैतिक रूप से जानने वाले भी उनकी अत्यंत पराकाष्ठा के हद तक किये जाने वाले परिश्रम वो भी विनम्रता के साथ इसके कायल हो ही जाते है ।
20 मार्च को जब ग्रेस रिसॉर्ट्स से भारतीय जनता पार्टी के विधायकों का काफिला भोपाल के लिए निकल रहा था शिवराज जी के ताजपोशी की मुहर के लिये तब भी शिवराज जी के चेहरे पर जो विनम्रता दिख रही थी ना यही सादगी फर्क बताती है जैत ग्राम के नर्मदा घाट की निर्मलता और ग्रेस रिसॉर्ट्स के उस मानव निर्मित तालाब के भव्यता के अंतर को ।
जिन लोगो ने शिवराज जी को दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानवतावाद पर बोलते हुए सुना होगा उनने महसूस किया होगा कि शिवराज जी अगर कथा वाचक होते तो शायद दीनदयाल जी का इससे अच्छा आध्यात्मिक पक्ष कोई भी नही रख सकता। जितना शिवराज रखते हैं। एकात्म मानवतावाद के मूल सिद्धांत यानी समाज के अंतिम व्यक्ति को मुख्यधारा से जोड़ने में सत्ता किस तरह सीधे – सीधे सहभागी हो सकती है वो शिवराज जी बीते दौर में मुख्यमंत्री निवास में आयोजित अनेको पंचायतों में समाज के अनेकों वंचित समाज की उपस्थिति से सीधे सीधे दिखाई दे देती थी।
मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के आज तलक के इतिहास में शिवराज जी समाज के हर वर्ग तक सीधे सीधे ना सिर्फ पहुँच कर सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हुए वरन उनसे इस तरह जुड़े जो भाजपा में इससे पहले कोई भी नेता नही कर पाया था ।
जब पहली बार 90 के दशक में शिवराज जी ने बुधनी विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता था तब वहां पूरे क्षेत्र में उन्हें पाँव पाँव वाले भैया के रूप में लोग जानने लगे थे क्योंकि उस समय के अत्यंत दुबले पतले बहुत ही सामान्य से चेहरे वाले तत्कालीन विधायक अर्थात शिवराज जी ने अपनी पैदल यात्रा के माध्यम से पूरे विधानसभा क्षेत्र को नाप डाला था । कौन जानता था कि ये पाँव पाँव वाला भैया ही बाद में पूरे प्रदेश के मामा के रूप में स्थापित हो जाएगा ।
ये मामा की उपाधि भी अपने आप मे बड़ी रोचक है । शिवराज जी जबसे सांसद बने थे तब से भाभी जी के साथ मिलकर अपनी साल भर की जमा पूंजी से कन्या विवाह करवा ही रहे थे ,जैसे ही वो मुख्यमंत्री बने उनकी ये स्वभाविक प्रक्रिया को उन्होंने बड़े पैमाने पर पूरे प्रदेश में लागू करवाया और पूरे प्रदेश की लाड़ली लक्ष्मियों के मामा बन गए ।
शिवराज जी के मुख्यमंत्री रहते हुए अनेक अवसर आये जब शिवराज जी को एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में नही बल्कि आम जनता ने अपने बीच के एक सामान्य नागरिक के रूप में पाया ।2016 सिहस्थ के दौरान आयी प्राकृतिक आपदा के समय किस तरह बांधवगढ़ से भागे भागे उज्जैन पहुंच कर चाय पिलाते और बांस बल्ली बांध कर टूटे शामियाने खड़े कर रहे वाले दृश्य हो या पेटलावद हादसे के बाद साहसिक निर्णय लेते हुए सीधे जनता के बीच जाकर बैठ जाने की चुनौती ये पूरे प्रदेश ने देखा था ।
कल 23 मार्च को जब शिवराज सिंह चौहान विधायक दल के नेता चुने गए तब आभार व्यक्त करते हुए शिवराज जब कह रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी मेरी माँ है और फिर से मुझे दूध का कर्ज उतारने का अवसर मिला है ये समय जश्न का नही कोरोना से मिलकर लड़ने का है ,आज रात से ही मैं इस काम मे लग जाऊंगा ये भावुक वक्तव्य ही एक पूरा व्रतचित्र है शिवराज के आने वाले “शिव-राज” के बनने का ।
You may also like
-
suicidal supriya shreenet … कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भरमार जो अपनी गंदी जुबान से राहुल की यात्रा पर फेर रहे पानी
-
New Joining in BJP …. मध्यप्रदेश में बीजेपी के कुनबे में बढ़ते कांग्रेसी और कांग्रेसवाद !
-
Mandsaur Ground Report .. राहुल की पिछड़ी राजनीति का टेस्ट है मंदसौर का चुनाव
-
congress star …. प्रत्याशी के पते नहीं पर मध्यप्रदेश कांग्रेस ने घोषित कर दी स्टार प्रचारक सूची
-
#uma and #scindia news…आखिर कैसे एक साध्वी और महाराज के बीच बुआ भतीजे का संबंध