क्या कोई चौंकाने वाली बात कहेंगे लाल क़िले से प्रधानमंत्री ?

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श्रवण गर्ग (वरिष्ठ पत्रकार )

प्रधानमंत्री पंद्रह अगस्त को देश के चोहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर से लगातार सातवीं बार तिरंगा फहराने के बाद अपने सम्बोधन में क्या कहने वाले हैं ? पिछले पंद्रह अगस्त को उन्होंने काफ़ी कुछ कहा था। कहने को तब था भी बहुत। तब मोदी भारी बहुमत से दूसरी बार पाँच वर्षों के लिए सत्ता में आने के बाद पहली बार लाल क़िले से देश को सम्बोधित कर रहे थे।लाल क़िले के सामने चाँदनी चौक और उसके आगे खारी बावली जहां तक नज़र जाए और देश भर में माहौल तब बिलकुल ही अलग था।प्रधानमंत्री भी असीम उत्साह से भरे हुए थे।

प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में जो महत्वपूर्ण बातें कहीं थीं उनमें एक यह भी थी कि जो काम पिछले सत्तर वर्षों में नहीं हो पाया उसे नई सरकार ने सत्तर दिनों में पूरा कर दिया।उनका इशारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की व्यवस्था को समाप्त करने को लेकर था जिसे केवल दस दिन पूर्व (पाँच अगस्त) ही किया गया था।

इस बार के पंद्रह अगस्त के दस दिन पूर्व राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के ज़रिए अपनी पार्टी के एक और संकल्प की उपलब्धि प्रधानमंत्री के पास है।मोदी ने यह भी कहा था कि अब ज़रूरत इस बात की है कि सरकारें धीरे-धीरे लोगों के जीवन से बाहर निकले और आज़ादी से अपने आपको आगे बढ़ा सकें ।किसी पर भी सरकार का दबाव नहीं होना चाहिए लेकिन मुसीबत के वक्त में सरकार को हमेशा लोगों के साथ खड़े होना चाहिए।

देश की जनता अपने प्रधानमंत्री से इस बार क्या सुनना चाहती है ? अगले पंद्रह अगस्त को तो आज़ादी की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ के जश्न में देश डूब जाएगा ! लाल क़िले के सामने जहां दूरियों की चिंता के साथ कुर्सियाँ लगाईं गईं हैं और देश में भी क्या माहौल पिछली बार की तरह ही नज़र आने वाला है या कुछ भिन्न होगा ? पिछले एक साल के दौरान हमारे देखते ही देखते काफ़ी कुछ बदल गया है।हाथों में आया तो कम है पर फिसल ज़्यादा गया है।प्रधानमंत्री ने पिछली बार जो कहा था क्या वैसा हो पाया ?

भारत की सड़कों पर जब कोई दस फ़ीसदी आबादी बदहवास हालत में अपने घरों की तरफ़ पैदल दौड़ लगा रही थी वे सरकारें कहाँ खड़ी थीं जिनका ज़िक्र प्रधानमंत्री ने किया था ? महामारी के साथ संघर्ष के दौरान जनता का अपनी व्यवस्था के प्रति यक़ीन और कितना मज़बूत हुआ है ?

प्रधानमंत्री अगर किसी वैक्सीन की शीघ्र उपलब्धता का आश्वासन देना चाहते हैं तो क्या लोग अब भी उसकी वैसी ही प्रतीक्षा कर रहे है ! और गांधीजी की कल्पना के अंतिम व्यक्ति को क्या उम्मीद है कि उसे उचित इलाज नहीं भी मिला तो क्या हुआ, उसे वैक्सीन जल्द ही मिल जाएगी ?

प्रधानमंत्री को सुनना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकता है कि वे सम्भवतः सरकार की कुछ ऐसी उपलब्धियों का ज़िक्र करें जिनका कि देश को अभी पता नहीं हो। वे कुछ ऐसी नयी महत्वाकांक्षी योजनाओं का ज़िक्र करें जिनसे जनता की तक़दीर बदलने वाली हो।

हो सकता है वे चीन का नाम लेकर सीमाओं पर उसके द्वारा किए गए अतिक्रमण की नए सिरे से देश को कोई जानकारी दें और राफ़ेल विमानों के परिप्रेक्ष्य में भारत की प्रतिरक्षा तैयारियों से भी अवगत कराएँ।बदलती हुई परिस्थितियों में वे देश से हर तरह के त्याग के लिए तैयार रहने को भी कह सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने अपने पिछले सम्बोधन में एक महत्वपूर्ण बात और भी कही थी ! वह यह थी कि आज देश की सोच बदल गई है ।देश का मिज़ाज बदल रहा है।हो सकता है तब उसकी प्रक्रिया ही शुरू हुई हो।अब तो निश्चित ही ऐसा हो गया है।इस समय लोगों का सोच और मिज़ाज दोनों ही बदला हुआ है ।

अपेक्षा की जा सकती है कि प्रधानमंत्री अपने सम्बोधन में जनता के इस नए अवतार के उदय पर संतोष व्यक्त करने के साथ-साथ उससे आने वाले समय की नई अपेक्षाओं की जानकारी भी दें ।उनका इतना भर स्वीकार करना भी एक आश्वासन माना जा सकता है कि इस समय देश असामान्य परिस्थितियों से गुज़र रहा है।

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