SIR Voter List Revision: देशभर में मतदाता सूची के इतिहास का सबसे बड़ा अभियान शुरू होने जा रहा है।
चुनाव आयोग आज विशेष इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर शाम 4:15 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा।
इस प्रेस वार्ता में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी पूरे देश में SIR लागू करने की तारीखों और प्रक्रियाओं का ऐलान करेंगे।
माना जा रहा है कि यह प्रक्रिया अगले सप्ताह से शुरू की जा सकती है, और इसकी शुरुआत उन राज्यों में होगी, जहां अगले एक साल के भीतर विधानसभा चुनाव होने हैं।
इसमें असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं, जहां मई 2026 तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में भी SIR के पहले चरण को शुरू किए जाने की संभावना जताई जा रही है।
क्या है SIR और क्यों हो रहा है यह रिवीजन?
SIR यानी Special Intensive Revision। यह वही प्रक्रिया है जो करीब 20 साल पहले बिहार में बड़े स्तर पर लागू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य है—
- मतदाता सूची में दोहरे और फर्जी नामों को हटाना
- हर मतदाता की पहचान और नागरिकता की सत्यता की जांच करना
- अवैध प्रवासियों की एंट्री को रोकना
- मतदाता डेटा को अद्यतन और सटीक करना
चुनाव आयोग का कहना है कि पिछले दो दशकों में देश में शहरीकरण, पलायन (Migration) और जनसंख्या परिवर्तन के कारण मतदाता सूची में बड़ी असमानताएं आ गई हैं।
कई स्थानों पर एक ही व्यक्ति के दो या अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में नाम दर्ज मिलने के मामले सामने आए हैं। इसी कारण SIR को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की जरूरत महसूस हुई।
किन राज्यों में पहले और किनमें बाद में?
चुनाव आयोग उन राज्यों में SIR पहले करेगा जहां आगामी 1 वर्ष में विधानसभा चुनाव होने हैं, साथ ही जहां कर्मचारी और प्रशासनिक टीमें उपलब्ध हैं।
इसके बाद उन राज्यों में होगा जहां अभी स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं और प्रशासनिक अमला चुनावों में व्यस्त है। यानी कर्मचारियों की उपलब्धता इस प्रक्रिया की गति तय करेगी।
SIR के मॉडल और क्रियान्वयन के लिए चुनाव आयोग ने हाल ही में सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) के साथ कम से कम दो बड़ी बैठकें की हैं।
कई राज्यों ने अपनी पिछली SIR के आधार पर पुरानी मतदाता सूची (Base Electoral Roll) की प्रतियाँ वेबसाइट पर फिर से अपलोड कर दी हैं।
उदाहरण के लिए— दिल्ली की वेबसाइट पर अभी भी 2008 की वोटर लिस्ट उपलब्ध है।
उत्तराखंड में अंतिम SIR 2006 में हुआ था। बिहार में हाल ही में विशेष मतदाता सत्यापन अभियान पूरा हो चुका है।
चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि सबसे अंतिम SIR वाली लिस्ट को आधार (Base Year) माना जाएगा, जैसा पहले 2003 में बिहार में किया गया था।
कौन-कौन से दस्तावेज़ रखने होंगे तैयार?
SIR के दौरान प्रत्येक मतदाता को पहचान और नागरिकता साबित करनी होगी। चुनाव आयोग ने 12 प्रमुख दस्तावेजों की सूची तय की है:
पहचान / पता प्रमाण के तौर पर स्वीकार्य दस्तावेज़:
- आधार कार्ड (सिर्फ पहचान, नागरिकता नहीं)
- वोटर आईडी
- पासपोर्ट
- ड्राइविंग लाइसेंस
- पैन कार्ड
- राशन कार्ड
- निवास प्रमाण पत्र
- बिजली / पानी / गैस का बिल
- बैंक पासबुक / खाता विवरण
- मनरेगा जॉब कार्ड
- 2002 या पिछली SIR की वोटर लिस्ट की प्रति
नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज़:
-
जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट, या 2002 की वोटर लिस्ट में माता-पिता के नाम की उपस्थिति का प्रमाण।
महत्वपूर्ण: अगर 2002 की लिस्ट में किसी व्यक्ति या उसके माता-पिता के नाम मौजूद हैं, तो उसे नागरिकता के लिए अलग दस्तावेज जमा नहीं करने होंगे।
SIR के दौरान आधार कार्ड को केवल पहचान पत्र के रूप में ही मान्यता मिलेगी। नागरिकता साबित करने के लिए आधार पर्याप्त नहीं है। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जारी किया गया है।
बिहार SIR विवाद और वही मॉडल देशभर में
बिहार में SIR लागू होने के दौरान विपक्ष ने सरकार पर ‘वोट चोरी’ और ‘विशेष समुदाय को हटाने’ का आरोप लगाया था।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां अदालत ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया को सही माना और कहा कि मतदाता सूची का सत्यापन लोकतंत्र की पारदर्शिता के लिए आवश्यक है।
अब वही मॉडल देशभर में लागू होने जा रहा है। देश में कुल मतदाता – 99.10 करोड़, पिछली SIR (2002-2004) में दर्ज मतदाता – 70 करोड़।
अनुमानित मतदाता जिन्हें सत्यापन करना होगा – लगभग 21 करोड़। यानी हर वोटर पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस प्रक्रिया में शामिल होगा।
चुनाव आयोग का कहना है कि SIR के तहत विदेश से आए अवैध नागरिकों की पहचान की जा सकती है।
सीमा क्षेत्रों में बसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों के साथ ही अन्य Non-Citizens के जन्मस्थान और नागरिकता के दस्तावेजों की जांच की जाएगी।
यही प्रक्रिया असम के NRC मॉडल से मिलती-जुलती दिखाई देती है, लेकिन SIR को पूरे देश में लागू किया जाएगा।
चुनाव आयोग के मुताबिक, SIR देश की लोकतांत्रिक पारदर्शिता और मतदाता सूची की सटीकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
हालांकि यह प्रक्रिया कई राज्यों में राजनीतिक बहस और सामाजिक विवाद भी जन्म दे सकती है, लेकिन लंबे समय से मतदाता सूची की शुद्धता और नागरिकता सत्यापन की जो मांग उठ रही थी, SIR उसी का जवाब है।
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