अरुणोदय पर पूर्णीविराम !

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अरुण यादव में राजनीतिक चातुर्य और दूरदर्शिता दोनों ही नहीं है। वे शातिर होना चाहते होंगे, पर ये उनके बस की बात नहीं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। अरुण यादव की कमलनाथ को घेरने की मंशा को दिग्विजय और कमलनाथ ने समझ लिया।

पंकज मुकाती (संपादक, पॉलिटिक्सवाला )

हमारी संस्कृति में उगते सूरज को पूजने का रिवाज है। कुछ धार्मिक आयोजनों में ही ढलते सूर्य की उपासना होती है। ऐसे आयोजन बेहद थोड़े हैं। राजनीति में तो डूबते की उपासना का कोई धर्म ही नहीं है। मध्यप्रदेश की राजनीति में अरुणोदय की बेला में एक अरुण अंधकार में जाते दिख रहा है।

ये हैं अरुण यादव। 47 साल के अरुण यादव। युवा ही हैं। उनका खंडवा सीट से चुनाव लड़ने से इनकार उनको एक डरा, सहमा, ऊर्जाविहीन नेता दर्शाता है। आखिर क्यों ये युवा नेता खंडवा उपचुनाव में टिकट मिलने के बाद भी चुनाव नहीं लड़ना चाहता

तर्क है, पारिवारिक कारण। टिकट के लिए छह महीने पहले से मोर्चा खोले अरुण यादव को अचानक पारिवारिक कारणों ने घेर लिया। छह महीने से पूरे प्रदेश में कमलनाथ उनको टिकट नहीं लेने देंगे का अभियान चलाने वाले यादव को जब नाथ ने टिकट दिया तो वे पीछे हट गए।

शायद, वे पहले से हीचुनाव न लड़ने का मन बना चुके थे, बस वे इसका ठीकरा कमलनाथ के माथे फोड़ना चाहते थे। इस रणनीतिक चालाकी में कमलनाथ अरुण यादव पर बहुत भारी पड़े।

दरअसल, अरुण यादव में राजनीतिक चातुर्य और दूरदर्शिता दोनों ही नहीं है। वे शातिर होना चाहते होंगे, पर ये उनके बस की बात नहीं। उनका चेहरा और मिज़ाज दोनों उनके भावों को सामने रख देते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।

अरुण यादव की कमलनाथ को घेरने की मंशा को दिग्विजय और कमलनाथ ने समझ लिया। यादव को टिकट तो दिया पर उनके आसपास उनके विरोधियों की पूरी सेना दोनों घाघ नेताओं ने खड़ी कर दी।

जाहिर है टिकट मिलने के बावजूद यादव को अपने ही पार्टी (वरिष्ठों से ) सेबोटेज का डर रहा होगा। ऐसे में उन्होंने खुद को इस खेल से बाहर निकाल लिया। यादव की जगह कोई चतुर  नेता होता तो कभी भी सोशल मीडिया पर टिकट से इंकार का पोस्ट नहीं करता। बाहर आकर टिकट न लेने को भी एक बलिदान की तरह पेश करता और सारेसूत्र अपने हाथ रखता। पर हमेशा की तरह इस बार भी यादव अपने ही जाल में उलझ गए।

अरुण यादव के टिकट की अंतर्कथा भी बहुत दिलचस्प है। पहले वे दिल्ली में आलकमान से टिकट के गुहार लगाते रहे। इधर, कमलनाथ ने अरुण यादव विरोधी शेरा, रवि जोशी को इलाके में सक्रिय रखा।

नाथ और उनकी टीम ने कांग्रेस को 2018 में निर्दलीय लड़कर नुकसान पहुंचाने वाले शेरा को लगातारतवज्जो दी। इलाके में शेरा खुलेआम अपनी पत्नी के टिकट की दावेदारी ठोंकते रहे। कांग्रेस ने भी खंडवा उपचुनाव से जुडी बैठकों में शेरा को आमंत्रित किया।

उनको आमंत्रण देने का मकसद अरुण यादव का गुस्सा बढ़ाना। अरुण यादव इस जाल में उलझे। वे जिस भी बैठक में शेरा शामिल रहे उससे दूर रहे। इधर
नाथ की चौकड़ी इस बात को हवा देती रही कि अरुण यादव अनुशासनहीनता कर रहे हैं।

इधर दिग्विजय सिंह लगातार अरुण यादव के साथ दिखने का भरम बनाते रहे। टिकट के वक्त वे नाथ के साथ खड़े दिखे। इस खेल में राजा ने अपने करीबी राजनारायण पूर्णी को टिकट दिलवा दिया। टिकट से इंकार करने वाले यादव को पूर्णी के टिकट की जरा भी भनक नहीं थी.

वे इस मुगालते में रहे कि कांग्रेस के पास उनसे बेहतर कोई नहीं, और टिकट किसी ऐसेको मिलेगा जो उनका करीबी होगा। दरअसल, अरुण यादव में अपने पिता सुभाष यादव सरीखा खुद की बात मनवाने का हुनर है ही नहीं। सुभाष यादवने दिग्विजय सिंह के शीर्ष के दौर में भी उनको मजबूर किया। आखिर दिग्विजय को यादव को उप मुख्यमंत्री बनाना ही पड़ा।

चुनाव न लड़ने के फैसले पर भी यादव कई बार बदलते रहे। अंदर की बैठकों में पहले वे पैसों की कमी का बहाना लेकर बैठे। जब कांग्रेस ने पैसों पर चर्चा कि
तो वे फिर चुनाव लड़ने को राजी हो गए।

दो घंटे बाद वे फिर इस बात पर अड़े कि संगठन और इलाके के विधायकों पर उन्हें भरोसा नहीं है, खुद कमलनाथसबको चुनाव में लगने का सन्देश दें। जबकि खुद यादव ब्लॉक लेवल की बैठके हर दिन करते रहे हैं। बूथ पर अपनी टीम भी बनवा चुके।

अंत में कोई रास्ता न देखकर उन्होंने पारिवारिक कारण बताकर किनारा कर लिया। शायद, वे इस उम्मीद में थे कि कांग्रेस उंन्हे ही नया उम्मीदवार तय करने का जिम्मा दे देगी। पहले कांग्रेस में ऐसा होता रहा है। पर इस बार पहले से तय राजनारायण पूर्णी को टिकट सौंपकर अरुणोदय पर (फ़िलहाल ) पूर्णविराम लग गया।

रहस्य ये भी …

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के साथ बैठक में अरुण यादव ने हमेशा किसी से फ़ोन पर बात करके ही अपने फैसले लिए। अंतिम बार जब वे बैठक मे
ये कहने पहुंचे कि चुनाव लड़ने को राजी है। तभी उनके मोबाइल की घंटी बजी, वे बैठक छोड़कर बाहर गए और लौटकर सीधे मना कर दिया। इस मोबाइल के बाद यादव के चेहरे का तेज़ भी गुम था। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर चुनाव न लड़ने का ऐलान भी कर दिया। आखिर वो मोबाइल करने वाले
शख्स कौन है।

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