किसी आईएएस के राजनीति में उतरने और मुख्यमंत्री बनने का इतिहास भी अजीत जोगी से ही शुरू हुआ
कीर्ति राणा
इंदौर कलेक्टरों में सर्वाधिक लोकप्रिय कलेक्टर हुए नरेश नारद और उनकी ही तरह अजित जोगी भी शहर से गांवों तक लोकप्रिय रहे। ऐसा नहीं कि इनके बाद कलेक्टर नहीं आए पर इन के कार्य-व्यवहार की तरह उतने फेमस नहीं हो सके।
भारतीय राजनीति में किसी आयएएस के राज्यसभा सदस्य बनने का इतिहास भी इंदौर के नाम ही दर्ज है।
मप्र में तब मुख्यमंत्री थे मोतीलाल वोरा, केंद्रीय मंत्री हुआ करते थे अर्जुन सिंह। सिंह को जितने प्रिय (उनके सीएम रहते संस्कृति सचिव) अशोक वाजपेयी थे उतने ही अजित जोगी भी।जोगी तब कलेक्टर इंदौर पदस्थ थे।उसी दौरान राज्यसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरु हुई।
इसी दौरान अर्जुन सिंह ने उनके समक्ष राज्यसभा का प्रस्ताव रखते हुए उनकी इच्छा जानना चाही। इस प्रस्ताव पर जोगी ने पत्नी डॉ रेणु जोगी से चर्चा की और राजनीति ज्वाइन करने का मन बना लिया। अर्जुन सिंह ने प्रधान मंत्री (स्व) राजीव गांधी को उनका नाम सुझाया, बाकी लॉबिंग राजीव के सचिव वी जार्ज ने की। मप्र में कांग्रेस तब भी खेमों में बंटी थी (छत्तीसगढ़ तब मप्र में ही शामिल था)। श्यामाचरण-वीसी शुक्ल बंधु, मोतीलाल वोरा-माधवराव सिंधिया, सुरेश पचोरी गुट राज्यसभा से अपने समर्थक के लिए सक्रिय थे।
अजित जोगी की जाति को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है लेकिन तब जोगी के पक्ष में वी जॉर्ज और अर्जुन सिंह का मजबूत तर्क था कि आयएएस तो हैं ही साथ ही आदिवासी इसाई हैं, जोगी को राज्यसभा में भेजने से यह बड़ा वोट बैंक कांग्रेस के मजबूत आधार में मददगार साबित होगा।
जोगी का नाम बढ़ा कर सिंह ने कांग्रेस के बाकी क्षत्रपों को भी निपटा दिया था। पीएम कार्यालय से स्वीकृति मिलते ही रातोंरात इंदौर कलेक्टोरेट की निर्वाचन शाखा का ताला खुला, निर्वाचन नामावली में अजित जोगी के नाम वाली औपचारिकता के दस्तावेज सर्टिफाई कराए गए, कांग्रेस आलाकमान ने मप्र की राज्यसभा सीट से अजित जोगी का नाम घोषित कर दिया और इस तरह एक आयएएस का इंदौर से राजनीति में प्रवेश हुआ और वे बाद में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि नेता के रूप में भी स्थापित हुए।
1984 के दंगों में जलता राजबाड़ा बचाया
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ भड़की हिंसा का शिकार इंदौर का राजबाड़ा भी हुआ था। राजबाड़ा के (खजूरी बाजार की ओर जाने वाले रास्ते)एक हिस्से में दीवार से सटी दुकानें थी। इन दुकानों में सरदारों द्वारा संचालित दुकानें भी थी।सिख विरोधी नफरत के चलते कुछ लोगों ने इस दुकान में आग लगा दी थी, कुछ विरोधियों ने आग की इस घटना में पूर्व उप मंत्री ललित जैन का नाम प्रचारित कर दिया था।
इन दुकानों से उठी लपटों ने राजवाड़ा के दरबार हॉल को भी चपेट में ले लिया था। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आग बुझाने में लगी हुई थी। तब कलेक्टर जोगी दमकल पर चढ़ गए और पानी फेंकने वाला पाईप हाथों में लेकर आग बुझाने की कोशिश करने लगे। ये फोटो खूब चर्चित हुआ था।
अनंत चतुर्दशी के झांकी मार्ग पर घुड़सवार जोगी
हर साल निकलने वाली कपड़ा मिलों की झांकी निर्धारित समय से काफी लेट निकलती और विलंब के कारण सुबह आठ-नौ बजे तक वापस कपड़ा मिल पहुंचती थी। एक साल जोगी ने तय कर लिया किसी हालत में झांकी लेट नहीं होने देंगे। तब वे पूरे झांकी मार्ग पर घुड़सवार दस्ते के साथ घूमते रहे थे। इंदौर के लोगों ने पहली बार किसी कलेक्टर को घुड़सवारी करते देखा था।
आप की सरकार आप के द्वार
कलेक्टर अजित जोगी का किसी भी गांव में, चौपाल पर रात गुजारना भी खूब चर्चा में रहा था। उनसे पहले नरेश नारद भी इसी तरह गांवों में एक रात गुजारा करते थे। सारे प्रशासनिक अमले के साथ वे जिस गांव में पहुंचते वहीं चौपाल पर गांव की समस्या, लोगों की शिकायतों का हाथोंहाथ निराकरण किया जाता था।इंदौर से हुई इस शुरुआत को बाद में सभी कलेक्टरों से सरकार ने फालो करवाया।अभी जब कमलनाथ सरकार सत्ता में आई थी तब इसी पहल की फिर से शुरुआत का निर्णय लिया गया था।
पामोलीन कांड और केट के नक्शे
कलेक्टर रहते अजित जोगी का विवादों से भी कम नाता नहीं रहा। उनके ही रहते इंदौर में पीडीएस योजना में गरीबों में वितरित किए जाने वाला पॉमोलिन आईल कांड खूब चर्चा में रहा था। पूर्व मंत्री महेश जोशी के एक भाई नागरिक आपूर्ति निगम महाप्रबंधक हुआ करते थे। पामोलिन कांड में दोनों के नाम खूब उछले थे। जब जोगी का नाम राज्यसभा के लिए फायनल हो गया तब मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने ही पामोलीन कांड में जोगी को क्लीन चिट दी थी।
इसी तरह प्रगत प्रोद्योगिक केंद्र (केट) की स्थापना केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के प्रयास से ही इंदौर में संभव हुई, केट के लिए जमीन उपलब्ध कराने का दायित्व कलेक्टर अजित जोगी का था। केट की स्थापना के दौरान ही इस संस्था के नक्शे चोरी होने का विवाद गहरा गया। पूर्व सांसद कल्याण जैन आए दिन इस मामले को लेकर प्रेस कांफ्रेंस करते, नक्शे चोरी का आरोप कलेक्टर रहे जोगी पर लगाते लेकिन यह आरोप सिद्ध नहीं हो सका, जोगी भी तब तक अफसर से सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेता बन गए थे।
मप्र का बंटवारा, छग के संस्थापक सीएम जोगी
अखंड मप्र का बंटवारा होने के बाद नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य घोषित कर दिया गया। मूल रूप से छग निवासी अजित जोगी ने विधान सभा चुनाव लड़ा और छग के पहले सीएम भी बने। कई विधानसभा चुनाव में या तो जोगी या भाजपा के डॉ रमन सिंह छग के सीएम बनते रहे।
विपक्ष में रहते कांग्रेस भले ही छग में संघर्ष करती रही लेकिन अजित जोगी के रुतबे में कोई कमी नहीं आती थी । इसे लेकर कई बार कांग्रेस के जोगी विरोधी गुट के नेता दिल्ली में जोगी की रमन सिंह से अंडर हैंड डिलिंग की शिकायत करते रहते थे।छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस नेताओं पर झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले, जिसमें महेंद्र कर्मा, वीसी शुक्ल आदि की मौत हुई थी, को लेकर भी जोगी पर आरोप लगे थे। कांग्रेस द्वारा जोगी को बाहर का रास्ता दिखाने पर उन्होंने छत्तीसगढ़ कांग्रेस दल बनाया जरूर लेकिन कांग्रेस की सरकार और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने।
बेटी के अवशेष ले गए छत्तीसगढ़
इंदौर ने अजित जोगी को नेता बनाया तो जोगी दंपत्ति के साथ इंदौर से त्रासदी भी जुड़ी है। जोगी की दो संतानें हैं बेटा अमित तो विधायक है। एक पुत्री अनुषा भी थी जिसने तब आत्महत्या कर ली थी जब जोगी इंदौर में ही रहते थे। उसे व्हाइट चर्च स्थित कब्रस्तान में दफनाया गया था। छग का सीएम बनने के बाद जोगी परिवार वहां शिफ्ट हो गया था। एक दिन स्पेशल विमान से परिवार इंदौर आया और कब्रस्तान में अनुषा वाली कब्र खोद कर बेटी के अवशेष छग ले जाने के साथ एक तरह से जोगी ने इंदौर से नाता तोड़ लिया था।
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