लखनऊ। उत्तर प्रदेश के चुनावों में इन दिनों सभी राजनीतिक दल जातिगत सम्मेलनों में भी जुटे हैं। यही नहीं भाजपा भी ओबीसी, वैश्य, दलित और ब्राह्मणों तक को जोड़ने में जुटी हुई है।
भाजपा की ओर से ओबीसी सम्मेलनों का लगातार आयोजन हो रहा है ताकि पिछड़े वर्ग की बिरादरियों को जोड़ा जा सके। इसी कड़ी में पार्टी ने अपने विधायकों और सांसदों को भी इस काम में लगाया है।
पिछड़ी जातियों के हर मंत्री, विधायक और सांसद को 10 गांव की जिम्मेदारी दी गई है। इन नेताओं को उन गांवों की जिम्मेदारी दी गई है, जिनमें ओबीसी समुदाय की आबादी बड़ी संख्या में है।
यही नहीं अगले एक महीने तक इन नेताओं को गांवों में ‘सामाजिक संपर्क’ के नाम से मुहिम चलाने की सलाह दी गई है।
राज्य में भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रभारी दयाशंकर सिंह ने बताया, ‘सभी नेता इन गांवों का दौरा करेंगे और लोगों से संपर्क कर आग्रह करेंगे कि वे भाजपा को ही वोट करें।’ नेतृत्व की ओर से इन नेताओं से कहा गया है कि वे गांव-गांव जाकर लोगों को केंद्र और राज्य सरकार के कामों के बारे में जानकारी दें।
भाजपा ने हर जिले में ऐसे गांवों की पहचान की है, जहां ओबीसी बिरादरियों की संख्या काफी अधिक है। इन्हें टारगेट करते हुए ‘सामाजिक संपर्क’ अभियान चलाया जाएगा।
दरअसल गांवों में वोटों का पैटर्न आज भी जातिगत आधार पर देखने को मिलता है। ऐसे में भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल इसे ध्यान में रखते हुए रणनीति तैयार कर रहे हैं।
2014 के बाद से ही भाजपा यूपी में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों पर फोकस करती रही है। इन समुदायों का बड़ा वोट भाजपा को 2017 में मिला भी था।
ऐसे में पार्टी एक बार फिर से इन समुदायों को लुभाने की कोशिश में है ताकि सफलता को दोहराया जा सके। ओबीसी नेताओं को आदेश दिया गया है कि वे अपने समुदायों को बताएं कि कैसे पार्टी ने उनके समाज को प्रतिनिधित्व देने का काम किया है।
सभी मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को उनके संसदीय क्षेत्र के बाहर के 10 गांवों का जिम्मा दिया गया है।
भाजपा ने जिन नेताओं को इस काम में लगाया है, उनमें स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धरम सिंह सैनी, अनिल राजभर और धर्मवीर प्रजापति शामिल हैं।
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