कितने सियासी समझौतों से होकर गुज़रेगा 2024 का चुनावी सफर….
लोकसभा चुनाव 2024 आने में करीब 9 महीने बाकी हैं.हालांकि, चुनाव की हवा बदलने के लिए तो सिर्फ 9 घंटे भी काफी होते है। NDA और I.N.D.I.A दोनों ने अपनी ताक़त दिखाने के साथ ही युद्ध की नयी रेखाएं खींच दी है। यहाँ तक की पार्टियां अपने नए सांझेदारों को लुभाने के साथ -साथ बिछड़े हुए सहयोगियों को भी मनाने में जुटी हुई है। 2024 का सफ़र, दोनों के लिए ही आसान नहीं है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A बनने के बाद उनमे एक नया जोश , एक नयी शक्ति देखने को मिल रही है, संसद हो या संसद के बाहर, नेता जोश से भरे हुए नज़र आ रहे है। पर क्या सिर्फ ये नयी ताक़त, नया आक्रोश और इंडिया का टैगनेम ,चुनाव जीतने के लिए काफी है ? क्या विपक्षी गठबंधन यह नयी नीति , बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए काफी है ?
चुनावों के करीब आते ही राजनीति की तस्वीर बदल जाती है, सबसे ज्यादा दागदार नेता भी ,पार्टियों की सर्फ़ में धुलकर सफ़ेद हो जाते है। गुजरात चुनाव के समय केजरीवाल ने जनता से कहा था की कांग्रेस को वोट देकर वोट बर्बाद न करे आज वही केजरीवाल कांग्रेस का हाथ पकड़ कर प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे है।सत्ता के चाहत का नशा नेताओं को इतना प्यारा है कि अपनी बातें याद ही नहीं रहती। बंगाल में जहाँ टीएमसी और लेफ्ट पार्टियां दशकों से एक दूसरे के खिलाफ रही है, अब उनके नेता एक ही मंच पर साथ बैठकर प्यार-मोहब्बत और एकता की बातें कर रहे है। सरकार हमेशा ये बात भूल जाती है कि हमारा देश विविधता से भरा है और ज़ाहिर सी बात है की राजनीतिक समीकरण में भी विविधता देखी जा सकती है, हर राज्य में सरकार अलग, पार्टियां अलग, चुनावी गणित भी अलग है।
2019 कि स्थिति पर नज़र डाले तो बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट में अपनी पार्टी का विस्तार किया था। बंगाल,ओड़िशा में घुसपैठ के साथ ही गुजरात, कर्नाटक और अन्य हिंदी बेल्ट इलाकों में अपनी अच्छी पकड़ जमाई थी। बीजेपी को अकेले ही 303 सीटें मिली थी । बीजेपी और उसकी सांझेदार पार्टियों को मिलाकर कुछ 353 सीटें उनके हिस्से में आयी थी । अब जेडीयू और उद्धव की शिवसेना जैसी पार्टियों के जाने के बाद NDA का नंबर थोड़ा सा कम हुआ है, पर इससे उन्हें कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।
NDA में 38 पार्टियां है,उनके पास लगभग 329 सीट है, वहीं I.N.D.I.A गठबंधन की 26 पार्टियों के पास करीब 140 सीटें है। ये आंकड़े थोड़े बहुत बदल सकते है क्योंकि अभी भी कुछ पार्टियों के बीच बातचीत जारी है। लेकिन इन सब आंकड़ों को देखकर एक चीज तो साफ है, कि जब तक NDA गठबंधन में 100 सीटों से ज्यादा की गिरावट नही होगी तब तक इंडिया एलायंस का सत्ता में आना मुश्किल है। देखने वाली बात यह है की सीटों के बंटवारे और टिकट को लेकर NDA और I.N.D.I.A की रणनीति क्या रहेगी, और नेताओं के बीच में उठने वाले बगावती रवैए को नियंत्रित करने में ये कैसे कामयाब होंगे ? इस लोकसभा चुनाव में रीजनल पार्टियों की भूमिका काफी अहम होने वाली है।
अगर बिहार कि राजनीति को 2024 की दृष्टि से देखे तो वहां एनडीए के पास एलजेपी ( लोक जनशक्ति पार्टी) का समर्थन है, दूसरी तरफ I.N.D.I.A एलायंस में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों की शक्ति है, हालांकि नीतीश कुमार के रहते कब कौन किधर पलट जाए ये हिसाब लगाना मुश्किल है पर वोट शेयर के हिसाब से देखा जाए तो बिहार में इंडिया एलायंस मजबूत नज़र आ रही है।तमिलनाडु में डीएमके काफी समय से कांग्रेस के साथ रही है। उसके अलावा जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस पार्टी और कांग्रेस में पुराना गठबंधन है।
अगर बंगाल की बात करे ममता बनर्जी का बंगाल प्रेम जगजाहिर है। ममता दीदी के मन की कहे तो वो चाहती है कि बंगाल की सारी सीटों पर विपक्ष उनका समर्थन करे और उसके बदले वो नेशनल लेवल पर I.N.D.I.A गठबंधन को सपोर्ट करेंगी। लेकिन क्या कांग्रेस को और खास कर के लेफ्ट पार्टियों को उनकी ये बात मंजूर होगी। विपक्षी गठबंधन के बीच के मनमुटाव का फायदा बीजेपी को मिल सकता है।इसके अलावा भी कुछ पार्टियां ऐसी है जो अभी भी किसी गठबंधन के साथ नही है, जैसे की आंध्र प्रदेश में टीडीपी( तेलुगु देशम पार्टी), तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति(बीआरएस) और उड़ीसा में बीजेडी( बीजू जनता दल) इन तीनों राज्यों में मिलाकर इन पार्टियों की लगभग 63 सीटें बनती है। जो सरकार बनाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण संख्या है।अब इन बदलते राजनीतिक समीकरणों का असर आने वाले समय में कैसा होगा ये तो वक्त ही बताएगा।
NDA सत्ता में आती है तो प्रधानमंत्री का चेहरा तय है लेकिन अगर I.N.D.I.A गठबंधन की जीत हुई तो सबसे बड़ा सवाल यह है की प्रधानमंत्री कौन होगा ? एक तरफ जहाँ केजरीवाल है, वहीं सालों से कांग्रेस आपने राजकुमार राहुल गाँधी को PM बनाना चाहती है। बिहार में दलबदल की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार भी बार-बार मुख्यमंत्री बनकर थक चुके है , अब उन्हें भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आराम चाहिए। वैसे ममता की माया को समझना भी आसान नहीं है , ऐसे में I.N.D.I.A गठबंधन में प्रधानमंत्री की कुर्सी को लेकर कितनी खींचतान होगी ये कहना मुश्किल है ?