अयोध्या में राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच सुनवाई करने जा रही है। जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की बेंच की तरफ से संभवत: आयोध्या के मंदिर मस्जिद विवाद पर यह आखिरी सुनवाई है जिसमें जमीन के मालिकाना हक पर फैसला किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पूरे देश ही नहीं बल्कि दुनिया की नज़रें बनी हुई है। आम धारणा है कि भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को सामने रखा है. बीजेपी ने ही हिंदूवादी पक्ष रखते हुए, राम मंदिर और उस परिसर में मूर्ति रखने की लड़ाई लड़ी है. पर हकीकत ये नहीं है. अंग्रेज़ों के ज़माने से हिन्दू आबादी इसके लिए संघर्ष कर रही है. आज़ादी के बाद 1949 में इस परिसर में भगवान राम की मूर्ति रखी गई, तब बीजेपी का कोई अस्तित्व ही नहीं था.
क्या है अयोध्या का राम जन्मभूमि विवाद
सवाल ये उठता है कि आखिर अयोध्या का राम जन्मभूमि विवाद क्यों पैदा हुआ? कब से ये विवाद चला आ रहा है? दरअसल, इस बात का जवाब पाने के लिए आपको इतिहास के पन्नों में झांकना होगा। आइये सिलसिलेवार तरीके से बताते है आपको कब कब किस तरह ये विवाद सामने आया और कब किसने इस पर आपने दावे जताए।
सन 1528
ग़ल बादशाह बाबर ने मस्जिद बनवाई थी। इस जगह को हिन्दू राम की जन्मभूमि बताते हैं और मस्जिद होने से पहले यहां पर मंदिर होने का दावा करते हैं।
सन1853
इस राम जन्मभूमि पर दावे को लेकर पहली बार साल 1853 में यहां साम्प्रदायिक हिंसा की घटना हुई।
सन 1859
अयोध्या में राम जन्मभूमि की जगह को लेकर उपजे भारी विवाद को देखते हुए ब्रिटिश अधिकारियों ने पूजा स्थल अलग करने के लिए दीवार खड़ी करवा दी। इनर सर्किट मुसलमानों के लिए जबकि इसका बाहरी हिस्सा हिन्दुओं के लिए था।
सन 1949
इस साल मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्ति दिखी। मुसलमानों ने इस बात का पुरजोर विरोध किया और ऐसा आरोप लगाया कि यहां पर हिन्दुओं की तरफ से यह मूर्ति रखी गई है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार ने परिसर को विवादित इलाका घोषित कर दिया और उसके गेट बंद करवा दिए।
सन 1950
एक साल बाद फैजाबाद सिविल कोर्ट में राम लला में पूजा करने परिसर में मूर्ति रखने के लिए दो याचिकाएं डाली गई।
सन 1961
उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने परिसर पर कब्जे और मूर्ति हटाने के लिए एक याचिका दाखिल की।
सन 1986
जिला जज ने विवादित परिसर से ताला खोलने का आदेश दिया और हिन्दुओं को पूजा करने की इजाजत दी।
6 दिसंबर 1992
कार सेवकों की उन्मादी भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद पूरे देश में दंगे हुए और इस हिंसा की चपेट में करीब दो हजार से ज्यादो लोगों की मौत हो गई।
सन 2001
विशेष जज ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और कल्याण सिंह समेत 13 आरोपियों के खिलाफ साजिश का चार्ज हटा दिया।
सन 2002
कारसेवकों को लेकर जा रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन पर गोधरा में हमला किया गया। उसकी बॉग में आग लगने के चलते करीब 58 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद गुजरात में हुए दंगे में करीब दो हज़ार लोग मारे गए।
30 सितंबर, 2010
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित परिसर का दो तिहाई हिस्सा हिन्दू पक्षकारों को और एक तिहाई हिस्सा वक्फ बोर्ड को सौंपा।
सन 2011
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
सन 2017
तत्कालीन चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर ने इस मामले का कोर्ट के बाहर समाधान की वकालत की। समस्या के समाधान के लिए खेहर ने मध्यस्थता की भी पेशकश की। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के खिलाफ आपराधिक साजिश का चार्ज फिर से लगाया।