मुल्क आज वही देखने पर विवश है, जो आप उसे दिखा रहे हैं। जो देखने के लिए आपके छद्म राष्ट्रवादी विवश कर रहे हैं। कपिल शर्मा का कॉमेडी शो शायद आपने देखा हो। फूहड़ता से भरा हुआ। सच कहूं तो आपकी तमाम जनसभाओं में बोली गयी बातें और उन पर पिटती तालियां मुझे इस शो के फूहड़पन से जरा-भी अलग प्रतीत नहीं होती हैं।
अवधेश बजाज
हां, हम हैं पेशेवर नैराश्यवादी। लेकिन अपनी नजर में नहीं। उस अपार समूह की दृष्टि में भी हमारा ऐसा चित्र नहीं दिखेगा, जो आपके पीछे चल रही कतारबद्ध भेड़ों से पृथक आज भी अपनी मूल चाल से विरत नहीं हुआ है। अपने कर्तव्य पथ पर लडख़ड़ाया नहीं है। स्वयं के सामाजिक सरोकार की डगर से रत्ती-भर भी नहीं डिगा है। बावजूद आपकी तमाम कोशिशों के, षड्यंत्रों के, आपके भक्तों की उन्मादी कोशिशों के। किस हैसियत से आप ने हमारा शुमार पेशेवर नैराश्वादियों में किया है? इसलिए कि हमने महादेवी वर्मा का छायावाद पढ़ा है! या कारण यह कि हम निर्मल वर्मा सहित त्रिलोचन और केदारनाथ सिंह के साहित्य की गंगोत्री में गोता लगा चुके हैं! कहीं आपके द्वारा दी गयी यह संज्ञा आपके इस भय का द्योतक तो नहीं कि हमने अज्ञेय की शेखर एक जीवनी को अध्ययन के उपरांत आत्मसात भी किया है!
इस स्वतंत्रता दिवस लाल किले के प्राचीर की लालिमा आंखों को बहुत चुभी। जब आप बोल रहे थे, तो उसमें उन बंदूकों की तड़तड़ाहट सुनायी दी, जो सन् 1989 में चीन के तिअनमेन चौराहे पर लोकतंत्र की मांग कर रही जनता पर चलायी गयी थीं। वह सत्ता के दंभ में चूर शासकों की करतूत थी और आप जो कर रहे हैं, वह सत्ता के दंभ में क्रूर शासक की हरकत ही कहा जा सकता है। वहां आप बात स्वतंत्रता की कर रहे थे, किंतु आपके मुंह से परतंत्रता की बदबू साफ आ रही थी। कितना घमंड था आपके हरेक कथन में। एक-एक शब्द से गुरूर टपक रहा था। आपने विरोधियों को निराशावादी बता दिया। इस शर्मनाक तथ्य से नजरें चुराते हुए कि इस देश के इतिहास और वर्तमान के सर्वाधिक निराशवादी अध्याय आपके द्वारा ही लिखे जा रहे हैं। पारले और ब्रिटेनिया जैसे स्थापित नाम कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं। कार वाले उद्योग बेकार वालों में तब्दील कर दिये गये हैं। जिस गुजराती जनता की आन-बान और शान की दुकान चलाकर आप यहां तक पहुंचे, उसी गुजरात के मोरबी में कुल्हड़ तथा मटके के पारम्परिक कुटीर उद्योग से करीब साठ हजार लोग हाथ धो बैठे हैं। इस सबका खून आपके माथे है। वह माथा, जो खुद गर्व से उठा रहने के प्रपंच में देश के भाल को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। आप वह नया भारत बना रहे हैं, जिसमें गरीबी शायद न दिखे, किंतु यह यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि उसमें गरीब कहीं नहीं दिखेगा। वह हिटलर के दौर वाले उन गैस चैंबरों में ठूंस-ठूंसकर मार डाला जाएगा, जिन चैंबर की नींव बनाने का ठेका आपने कहीं अंबानी तो कहीं अडानी को दे रखा है। बताइए जरा, ये बेरोजगार कहां जाएं? वो किसान और गरीब किस जगह जाकर अपना रोना रोयें, जिनका कसूर केवल यह है कि साढ़े पांच साल से इस लोकतंत्र में शोकतंत्र का परचम फहराया जाना ही राष्ट्रवाद का इकलौता परिचायक बनकर रह गया है?
मुल्क आज वही देखने पर विवश है, जो आप उसे दिखा रहे हैं। जो देखने के लिए आपके छद्म राष्ट्रवादी विवश कर रहे हैं। कपिल शर्मा का कॉमेडी शो शायद आपने देखा हो। फूहड़ता से भरा हुआ। सच कहूं तो आपकी तमाम जनसभाओं में बोली गयी बातें और उन पर पिटती तालियां मुझे इस शो के फूहड़पन से जरा-भी अलग प्रतीत नहीं होती हैं। आपने इस महान मुल्क को बहुत कम दिया है और बदले में उससे वह सब-कुछ छीन लिया है, जो अब तक इसकी थाती का हिस्सा हुआ करता था। जिस उत्तर प्रदेश को आप अपना घर कहते हैं, उसी राज्य के भदोही का कालीन उद्योग चौपट होता जा रहा है। इस प्रदेश में आपके स्वागत में जो लाल कारपेट बिछते हैं, जरा कभी उन्हें हटाकर देखिए। आप पाएंगे कि उस जमीन पर असंख्य उन लोगों के अरमान कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचलकर रख दिये गये हैं, जिन लोगों ने आपके सबसे बड़े सियासी अरमान को पूरा करने में आपकी मदद की थी।
आपके मस्तिष्क तथा हृदय में यदि ईमानदारी का अंश मात्र भी बचा हो तो कभी उसे सामने रखकर विचार करें। सोचें कि आप देश को किस रसातल की ओर लेकर घसीटे जा रहे हैं। आपने अर्थव्यवस्था को अनर्थावस्था में परिवर्तित कर दिया है। ऐसी निंदनीय हालत पर निर्मला सीतारमण के अति-निंदनीय बयान सुने। क्योंकि आपकी वित्त मंत्री उस नासूर के इलाज का जतन कर रही थीं, जो आपकी गलत नीतियों से ही पनपा। बीते पांच साल में आप सही तरीके से चले होते तो क्या वजह थी कि इतने भारी-भरकम आर्थिक मर्ज को हमें झेलना पड़ता? लगातार पांच साल आप देश के विकास की बात करते रहे और विनाश की तस्वीर सामने आ गयी। क्योंकि आपके एजेंडे में आम जनता नहीं बल्कि खास दरबारियों की उन्नति ही शामिल है। जिस हिसाब से छोटे उद्योग चौपट हुए, मध्यम वर्ग बदहाल हुआ, निम्न मध्यम और उससे भी नीचे का तबका पिस गया, क्या उसका दशमलव प्रतिशत में भी असर आपके किसी मित्र उद्योगपति पर हुआ! नहीं। सत्य तो यह है कि आपने केवल उनकी परवाह की, जो देश की ओर से पूरी तरह बेपरवाह होकर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं। ये तिजोरियां आपकी उस तिजारत से ठसाठस हो गयीं, जिसे आप अपनी लच्छेदार और खोखली बातों के माध्यम से देश की सेवा कहते हैं। आप मुल्क का मसीहा बनने जैसा ढोंग करते हैं और नितंात क्रूरता के साथ इसी मुल्क के लिए मर्सिया पढऩे का पूरा बंदोबस्त आपने कर दिया है।
कभी आत्मरति की स्थिति से बाहर आइये। आत्ममुग्धता का चश्मा उतारकर देखिए। आप पाएंगे कि करीब साढ़े पांच साल की इस अवधि में आपने देश को हिंदू और मुसलमान में बदलकर रख दिया है। कभी-कभी तो लगता है कि आप अंग्रेजों का अधूरा मिशन पूरा करने की गरज से सत्ता में आये हैं। किसी समय चाय बनाने वाले ने इस राष्ट्र को अपने क्षुद्र स्वार्थ की पतीली में रखकर खौलते रहने के लिए विवश कर दिया है। इस चाय में शक्कर नहीं, जहर है। साम्प्रदायिकता का। अलगाववाद का। छद्म राष्ट्रवाद का। इसमें चाय की पत्ती नहीं, बल्कि वह धूल मिली हुई है, जो आप और आपके सहयोगी लगातार इस देश की आम जनता की आंख में झोंकते जा रहे हैं। यकीनन यह पढऩा आपको तिलमिलाहट से भर देगा। हमें भी पसंद नहीं कि अपनी कलम को इतनी कड़वाहट से भरें कि वह कसैलेपन के अलावा और कुछ न उगल सके। किंतु लिखना तो होगा ही। क्योंकि इस कलम की रोशनाई आज भी रोशनी लाने की ताब रखती है। इस सियाही का रंग भगवा नहीं, बल्कि उस लालिमा वाला है, जो आपके सफेद झूठ वाले कैनवास पर क्रांति को साकार रूप में उकेर देने की सामथ्र्य रखता है।
ये मेरा डर नहीं, आशंका है। आप खरामा-खरामा हमारे भीतर का रंग, संगीत और नृत्य, सब कुछ छीन लेंगे। हम जिंदा लाश में बदल दिये जाएंगे। जानते हैं कि फिर क्या होगा? आप किसी पेशेवर की तरह हमारे सिरहाने आयेंगे। हमें ऑक्सीजन दी जाएगी और होगा यह कि उस प्राणवायु के पाइप पर आप अपने अहं के वजन के साथ खड़े होकर हमें तिल-तिल मरता देखेंगे। हमारे रुदन को भारत माता की जय या वंदे मातरम् के शोर में दबा दिया जाएगा। हमारी छटपटाहट को नया भारत के मिथ्या से भरे पोस्टरों के पीछे छिपा दिया जाएगा। किंतु यह भी जान लीजिए कि हम दम नहीं तोड़ेंगे। क्योंकि हम सच के सिपाही हैं। सेना की वह टुकड़ी हैं, जिसे अपने लिए प्राणवायु का उत्पादन करना सिखाया गया है। पेशेवर नैराश्यवादियों की उसी पीढ़ी ने, जो आपसे पहले, आप जैसों के सामने नहीं झुकी और जिसके वर्तमान संवाहक हम भी न झुकना जानते हैं और न ही टूटना। कम से कम आपके द्वारा प्रायोजित मृत्यु का हम वरण नहीं करेंगे।
मोदी जी, अब भी समय है। मुल्क के चीत्कार को गौर से सुनिये। अपने अरमानों का कफन ओढक़र सोने को मजबूर जनता के भीतर उबल रहे गुस्से को भांपिये। देश के सर्वांगीण विकास की बात कीजिए। इस दिशा में ईमानदारी से कदम उठाइए। यह सब बहुत मुश्किल नहीं है। जितना परिश्रम आप स्वांग-दर-स्वांग और झूठ-दर-झूठ के लिए करते हैं, उससे बहुत कम मेहनत में देश वह स्वरूप हासिल कर सकता है, जिसका वह हकदार है। अपनी तानाशाह सोच को परे रखिए। दमन चक्र का पहियां थामिये। मनमानी को मन की बात के आडंबर से ढकने का खेल बंद कीजिये। आप अपनी दूषित सोच से देश में बहुत प्रदूषण फैला चुके हैं। अब आपके लिए पर्यूषण पर्व मनाने का समय आ चुका है। अपने गुनाहों की सतायी जनता से माफी मांगिये। उन राष्ट्रवाद तथा लोकतंत्र से क्षमा मांगिये, जिन्हें आपने अपने दम्भ की कालकोठरी में कैद कर रखा है।
कुछ विषयांतर कर रहा हूं, किंतु मामला पूरी तरह मौजू है। दरअसल, काफी पहले एक साहब से मिलना हुआ था। वह सुन नहीं पाते थे। लेकिन बोलते गजब थे। क्योंकि किसी के सामने आते ही उसके अतीत का एक-एक वाकया वह बताते चले जाते। इसी दम पर उन्होंने खुद को ज्योतिषी बता दिया। जमकर कमाई की। यह बात और रही कि वह कभी भी किसी का सही भविष्य नहीं बता सके। बाद में पता चला कि उन्होंने कर्ण पिशाचिनी सिद्ध कर रखी थी। कहते हैं कि यह पिशाचिनी अपने साधक के कानों में बैठ जाती है। इसके चलते वह बाहरी आवाज नहीं सुन पाता। यही पिशाचिनी साधक को उसके पास आने वाले हरेक शख्स का अतीत बताती है और वह उसे स्वर प्रदान करने का निमित्त मात्र बनकर रह जाता है। तब मुझे इस बात पर यकीन नहीं हुआ था। ङ्क्षकतु आपके कार्यकाल को देखकर कर्ण पिशाचिनी की थ्योरी से पूरी तरह मुतमुईन हो गया हूं। यकीनन आपके कान के भीतर किसी पिशाच का ही निवास है, जो आपको किसी और की बात सुनने ही नहीं देता। बल्कि लगता है कि आपकी आंख की पुतली में भी ऐसे किसी प्रेत को जगह दी गयी है, जो आपको औरों का दर्द देखने नहीं दे रहा। वह दर्द, जो आपकी ही देन है। आप अतीत की बातें खूब कर लेते हैं। देश की हर वर्तमान दुर्दशा का दोष विगत पर मढऩे में आपकी महारत है। किंतु भविष्य के मामले में आप भी कच्चे हैं। मुझे बताया गया था कि उन साहब ने कर्ण पिशाचिनी को सिद्ध करने के लिए मरघट में साधना की थी। तो आपने कान सहित आंख के पिशाचों को सिद्ध करने वाली साधना किस मरघट में की थी? नागपुर मेंं, गुजरात में या फिर किसी अडानी अथवा अंबानी के घर में? लफ्फाजी से फुर्सत मिले तो किसी मन की बात में मेरे इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दे दीजियेगा।
कई बार सोचता हूं कि यह सब मैं किस लिए लिख रहा हूं। किसके लिए अपनी भावनाओं को कागज पर उतार रहा हूं। क्योंकि आप पर तो इसका किंचित मात्र असर भी नहीं होना है। काले कंबल पर और कोई रंग भला चढ़ सका है कभी! किंतु फिर खयाल आता है कि आपसे संघर्ष करना बहुत आवश्यक है। आने वाले समय में मैं अपना नाम उस फेहरिस्त में देखना नहीं चाहूंगा, जिसमें उन ‘तटस्थों’ का जिक्र हो, जिनका इतिहास समय लिखेगा। मैं आपसे भयग्रस्त आवाम को यह संदेश देना चाहता हूं कि आप अपराजेय नहीं हैं। आप लोकतंत्र का, जनमत का चीरहरण कर सकते हैं किंतु इस देश की भावनाओं का शीलभंग करने की इजाजत आपको कतई नहीं दी जाएगी। मैं और मेरे जैसी विलुप्तप्राय प्रजाति के लोग देश को आपकी बदौलत मिले घावों पर मल्हम लगाने का प्रयास जारी रखेंगे। किसी ने लिखा है, बांधे-बांधे हर कड़ी को जख्मे-दिल खुलते गये। उम्र सारी खूं उगलते कट गयी जंजीर की। आप ताजा करते रहिए देश के जख्मों को। हम उन्हें बांधे रखने के महायज्ञ में आहूति देते रहेंगे। विश्वास कीजिये, फिर जंजीर की सारी उम्र खूं उगलने में ही कटेगी और उसी खून से हम आपके खिलाफ होने वाली क्रांति का महामस्तकाभिषेक करेंगे। यह भविष्य का वह अटल सत्य है, जिसे जानने के लिए मुझे किसी पिशाचिनी को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे प्रेत और मरघट आपको मुबारक, मुझे न इनसे भय है और न ही इनकी दरकार है। हमें नैराश्वाद मुबारक और आपको पिशाचवाद।
– लेखक बिच्छू डॉट कॉम के संपादक हैं