मध्यप्रदेश- शिव अब भी शक्ति

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शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में दो बातें बेहद मजबूत हैं, एक तो उनका सबके साथ बने रहना। दूसरा भाजपा को अभी भी ऐसा कोई नेता नहीं दिखाई देता जो जनता  बीच शिवराज से बड़ी छवि रखता हो

पंकज मुकाती (संपादक, पॉलिटिक्सवाला )

गुजरात में विजय रुपानी की विदाई। अब अगला कौन ? ये सवाल राजनीतिक गलियारों में खूब उछल रहा। अगला नंबर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का होगा ? सबकी निगाहें शिवराज की कुर्सी पर। उनके प्रतिद्वंदी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, जवाब का।

भाजपा के भीतर कई नेताओं को इस किसान पुत्र का नेता बने रहना चुभ रहा है (विपक्ष तो चुप ही है )  ऐसे तमाम नेताओं का इंतज़ार अभी पूरा होता नहीं दिख रहा। शिवराज बने रहेंगे, इस बात की संभावना भरपूर दिख रही है। क्योंकि आज भी भाजपा के पास इस प्रदेश में कोई दूसरा ‘जननायक’ नहीं है।

शिवराज सरकार के एक साल पूरे होने पर भाजपा ने जो नारा गढ़ा है वो ही अपने आप में पूरी कहानी कहता है – शिवराज सरकार, भरोसा बरक़रार।  ये नारा किसी सोशल मीडिया या शिवराज के मैनेजरों का चलाया नहीं है। इसे पूरे विधि-विधान से प्रदेश भाजपा संगठन ने जारी किया है।

भाजपा ने इस साल  सबसे पहला उलटफेर मार्च के महीने में किया था जब पार्टी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उनके पद से हटाने का फैसला किया था। 9 मार्च 2021 को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था।

इसके बाद 10 मार्च, 2021 को पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत को राज्य का नया मुख्‍यमंत्री बनाया गया था। लेकिन संवैधानिक बाध्यता के चलते 2 जुलाई को तीरथ सिंह रावत ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया था।

बाद में भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को अपना मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद कर्नाटक के येदियुरप्पा से पार्टी ने इस्तीफा लिया। ताज़ा मामला गुजरात के विजय रुपाणी का है। उत्तराखंड, कर्नाटक, गुजरात से बहुत अलग है मध्यप्रदेश।

क्यों शिवराज बने रहेंगे
उम्र का फार्मूला नहीं चलेगा –कर्नाटक के येदियुरप्पा को उनकी उम्र के चलते हटाया गया। उनकी उम्र 72 साल। शिवराज उम्र वाले फॉर्मूले से बहुत दूर हैं। शिवराज की उम्र अभी 62 साल है, यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 9 साल कम।

सत्ता विरोधी लहर नहीं

उत्तराखण्ड  में रावत सत्ता विरोधी लहर बनती देख हटाए गए। केंद्रीय टीम ने लगातार सर्वे से ये नतीजा निकाला कि राज्य में रावत के नेतृत्व में भाजपा कावापस लौटना मुश्किल है।  मध्यप्रदेश में सत्ता विरोधी लहर जैसी कोई बात दिखती नहीं। क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद 28 सीटोंपर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 19 सीटें जीती। ये चुनाव शिवराज के चेहरे पर ही लड़ा गया। हालांकि दमोह उपचुनाव में भाजपा हारी, पर वो कोरोना कादौर था।

जातिगत मामला ख़ारिज

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी को हटाने के पीछे बड़ा मामला पाटीदार समाज की नाराजगी रहे। रुपानी जैन समाज के हैं, पाटीदार उन्हें अपना मानने को राजी नहीं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 77 सीट मिली थी और हार्दिक पटेल पाटीदार नेता है, ऐसे में रुपानी का बना रहना अगले चुनाव में पाटीदार मतदाताओं की नाराजगी का कारण बनता। इसके विपरीत मध्यप्रदेश में जातिवादी ध्रुवीकरण नहीं हैं। शिवराज सिंह चौहान पिछड़ा वर्ग से हैं। भाजपा इस वक्त पूरे देश में पिछड़ों को आगे लाने पर जोर दे रही है। ऐसे में इस पिछड़ी जाति के मुख्यमंत्री को हटाना आसान नहीं होगा।

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