अमित शाह बोले – कुटिल दृष्टि वाले और खुशामदी वाले इतिहासकारों सेमुक्त होने का वक्त
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उन्होंने कहा- 150 साल का एक दौर था, जब इतिहास का मतलब दिल्ली दरीबा से बल्ली मारान तक और लुटियन से जिमखाना तक था। इतिहास यहीं तक सीमित था। यह समय शासकों को खुश करने के लिए लिखे गए इतिहास से खुद को मुक्त करने का है। मैं इतिहासकारों से अपील करता हूं कि वे हमारे हजारों साल पुराने इतिहास को तथ्यों के साथ लिखें।
शाह ने कहा कि कश्मीर का भारत से न टूटनेवाला जोड़ है। लद्दाख में मंदिर तोड़े गए, कश्मीर में आजादी के बाद गलतियां हुईं, फिर उन्हें सुधारा गया। शंकराचार्य का जिक्र, सिल्क रूट, हेमिष मठ से साबित होता है कि कश्मीर में ही भारत की संस्कृति की नींव पड़ी थी। सूफी, बौध और शैल मठ सभी ने कश्मीर में विकास किया। देश की जनता के सामने सही चीजों को रखा जाए।
उन्होंने कहा कि दुनिया के सभी देशों का अस्तित्व भू-राजनीतिक है। वे युद्ध या समझौते के परिणामस्वरूप सीमाओं से बने हैं। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो ‘भू-सांस्कृतिक’ देश है और सीमाएं संस्कृति के कारण परिभाषित होती हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी, गांधार से ओडिशा और बंगाल से असम तक हम अपनी संस्कृति के कारण जुड़े हुए हैं, जो लोग किसी देश को भू-राजनीतिक के रूप में परिभाषित करते हैं, वे हमारे देश को परिभाषित नहीं कर सकते।
देश को जोड़ने वाले तथ्यों को समझना होगा
शाह ने कहा- भारत को समझने के लिए हमारे देश को जोड़ने वाले तथ्यों को समझना होगा। कश्मीर और लद्दाख कहां थे, इसका विश्लेषण इस आधार पर करना कि इस पर किसने शासन किया, यहां कौन रहता था और क्या समझौते हुए, व्यर्थ है। केवल इतिहास की कुटिल दृष्टि वाले इतिहासकार ही ऐसा कर सकते हैं। भारत की 10,000 साल पुरानी संस्कृति कश्मीर में भी मौजूद थी।
जब 8000 साल पुरानी पुस्तकों में कश्मीर और झेलम का जिक्र है, तो कोई भी इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता कि कश्मीर किसका है। कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है और हमेशा से रहा है। कोई भी इसे कानून की धाराओं का उपयोग करके अलग नहीं कर सकता। अलग करने का प्रयास किया गया लेकिन समय के प्रवाह में उन धाराओं को निरस्त कर दिया गया और सभी बाधाएं दूर हो गईं।
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