-सुनील कुमार (संपादक डेली छत्तीसगढ़)
पाकिस्तान में दो दिन पहले गिरे भारतीय वायुसेना के विमान के पायलट को वहां जिंदा पकड़ा गया, और पाकिस्तानी हिरासत में रखा गया है। हिन्दुस्तान के लोग इसकी वापिसी को लेकर अंतरराष्ट्रीय युद्ध कानूनों को गिना रहे थे, पाकिस्तान को धमकी और चेतावनी दे रहे थे, और इस बीच पाकिस्तानी संसद में सरहद के तनाव पर बयान देते हुए वहां के पीएम इमरान खान ने खुद होकर यह घोषणा की कि पाकिस्तान अमन के एक कदम की शक्ल में इस हिन्दुस्तानी पायलट को कल भारत के हवाले कर देगा। आज सुबह से खबरें हैं कि किस तरह भारत-पाक सड़क-सरहद पर इस पायलट के मां-बाप पहुंच रहे हैं, और हिन्दुस्तान की सरकारों के लोग भी सरहद पर पहुंच रहे हैं, केन्द्र सरकार के लोग भी, और इस सरहदी इलाके के पंजाब-सूबे के एक भूतपूर्व फौजी मुख्यमंत्री भी वहां जाना चाहते हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि इस पायलट के पाकिस्तानी कब्जे में पहुंचने के बाद से जिस तनाव के बढऩे की आशंका थी, वह तनाव दोनों मुल्कों के भले के लिए अब घटता हुआ, या थमा हुआ दिख रहा है। फिलहाल यह नौबत बातचीत के हालात से खासी दूर है, लेकिन सरहद के आरपार फौजी विमानों की मटरगश्ती फिलहाल थमी हुई दिखती है।
अब दो-तीन बातों को देखने और समझने की जरूरत है। कल ही दिल्ली में जब विज्ञान भवन में विज्ञान और टेक्नालॉजी के शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार दिए जा रहे थे, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समारोह के भाषण में कहा- पायलट प्रोजेक्ट होने के बाद स्केलेबल किया जाता है, तो अभी-अभी एक पायलट प्रोजेक्ट हो गया, अभी रीयल करना है, पहले तो प्रैक्टिस थी। भारतीय प्रधानमंत्री ने जिस वक्त यह बात कही, उस वक्त एक भारतीय पायलट पाकिस्तानी कैद में था, और ऐसे में प्रधानमंत्री का यह इशारा, कि (पाकिस्तान पर हवाई हमले का) पायलट प्रोजेक्ट अभी हुआ है, और असली प्रोजेक्ट अभी बाकी है, सदमा पहुंचाता है, हक्का-बक्का करता है। खबरें जो वक्त बताती हैं, उनके मुताबिक भारतीय प्रधानमंत्री ने यह बात पाकिस्तानी पीएम की इस घोषणा के कुछ समय बाद कही, जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान इस पायलट को कल भारत के हवाले कर देगा। ऐसे मौके पर नरेन्द्र मोदी का यह बयान खुद हिन्दुस्तान के अनगिनत समझदार लोगों को बुरी तरह खटक रहा है कि क्या तंज कसने के लिए, व्यंग्य के लिए, या इशारे-इशारे में धमकी के लिए भी पायलट शब्द ऐसा इस्तेमाल तब जायज था जब हिन्दुस्तानी वायुसेना का एक पायलट पाकिस्तानी कैद में था? फिर यह बात एक ऐसे समारोह में की गई जो कि न तो सरकार के फौजी फैसलों के बारे में था, और न ही जो सर्वदलीय बैठक जैसा मौका था, यह तो महज विज्ञान-पुरस्कारों का एक जलसा था, जिसका फौज से कोई लेना-देना नहीं था।
नरेन्द्र मोदी के आलोचक, जिसमें गैरएनडीए पार्टियों के नेता भी शामिल हैं, और देश के मीडिया का एक जिम्मेदार हिस्सा भी शामिल है, भारत-पाक सरहद पर चल रहे तनाव, और खासकर भारतीय पायलट के पाकिस्तानी कब्जे में जाने के बाद यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या ऐसे में नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रियों का चुनाव प्रचार कार्यक्रमों में फौज की मिसाल देना, फौजी कार्रवाई की तारीफ खुद लेना, और देश भर में पार्टी के कार्यक्रमों में जाना सही है? ऐसे सवालों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री जब पाकिस्तान के साथ फौजी टकराव के मुद्दे पर भी बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में नहीं जाते, और पार्टी का चुनाव प्रचार करते हैं, उसमें फौजी कार्रवाई की कामयाबी की तारीफ खुद को देते हैं, तो लोगों के मन में हैरानी होती है। लेकिन इससे भी बढ़कर यह बात है कि जब एक हिन्दुस्तानी फौजी पायलट पाकिस्तान के कब्जे में है, तब भी भारतीय प्रधानमंत्री पायलट शब्द से खिलवाड़ करते हुए उसका ऐसा हमलावर इशारा करते हैं जिससे कि भारत के इस पायलट की जान पर जोखिम आ सकती है, उसकी रिहाई लेट हो सकती है, तो वह सदमा पहुंचाने वाली बात है। लोकतंत्र में लोगों को जनता की नजरों के इम्तिहान के लिए तैयार रहना चाहिए, उसकी जुबान से निकलने वाले सवालों के लिए तैयार रहना चाहिए, दिक्कत यह है कि मोदी अपने मन की बात तो एकतरफा बोलते हैं, लेकिन लोगों के सवालों को अपने से चार हाथ दूर ही रखते हैं। ऐसे में आज भारत और पाकिस्तान के बीच फौजी तनाव और टकराहट से उठने वाले खतरों के बारे में कौन किससे क्या पूछे? यह तो अच्छी बात है कि पाकिस्तान खुद होकर हिन्दुस्तानी फौजी पायलट को चाय पिलाकर बिदा कर रहा है, लेकिन इस रिहाई के लिए भारत सरकार का, भारत के मीडिया का जो रूख रहना था, उनका रूख जरूरत के ठीक उल्टा रहा।
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