कुछ अलग…कच्छ की पान -सुपारी, साडी परंपरा और बेजोड़ गधे !

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दलितों के उत्थान की लड़ाई का ढिंढोरा पीटने वाले राजनीतिक दल इसे पढ़े

 महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ही थे, जिन्होंने एक दलित विद्यार्थी भीमराव अंबेडकर को आगे की पढ़ाई के लिए वजीफा देकर कोलंबिया भेजा।

 

शंभूनाथ शुक्ल (वरिष्ठ पत्रकार)

कुछ गुजरात राज्य के बारे में भी बता दूँ। औरंगजेब की मृत्यु के बाद जब मुगल कमजोर पड़े, तब पूना के पेशवा एक बड़ी ताक़त बन कर उभरे। उनकी मराठा अष्टपदी ने समूचे भारत पर कब्जा कर लिया। तंजौर से लेकर दिल्ली तक और बंगाल से लेकर गुजरात तक उनका डंका बजने लगा। मुगल शासक शाहआलम कहने को बादशाह था, चलती मराठा वीर महादजी सिंधिया की थी। गुजरात में गायकवाड़ का राज्य भी बहुत दूर तक फैला हुआ था।

इस गायकवाड़ साम्राज्य के अधीन लगभग ढाई सौ राजा थे। इनमें से 200 तो अकेले काठियावाड़ में ही थे और एक कच्छ में। वर्ष 1721 में बड़ौदा को मुगलों से पिलाजी राव गायकवाड़ ने छीना था। वे बालाजी बाजीराव पेशवा के वज़ीर थे। 1802 में अंग्रेज़-मराठा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने आनंदराव गायकवाड़ को यहाँ का महाराजा घोषित कर दिया। इसके बाद 1947 तक बड़ौदा अंग्रेजों के अधीन एक रियासत रही।

1875 में महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने अपने राज्य का आधुनिकीकरण किया। उन्होंने राज्य में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी। सार्वजनिक पुस्तकालय खोले और एक यूनिवर्सिटी भी स्थापित की। कपड़ा उद्योग को बढ़ावा दिया, और उन्हीं के समय बड़ौदा में कपड़ा मिलें लगीं। जाति-पात की जकड़न को तोड़ा। ये महाराजा सयाजीराव ही थे, जिन्होंने एक दलित विद्यार्थी भीमराव अंबेडकर को आगे की पढ़ाई के लिए वजीफा देकर कोलंबिया भेजा।

1947 में आखिरी महाराजा प्रताप सिंह गायकवाड़ ने विलय को स्वीकार कर लिया और बड़ौदा राज्य को बंबई स्टेट में मिला दिया गया। मगर 1956 में जब भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ तब बड़ौदा को गुजरात राज्य में कर दिया गया। इस समय गायकवाड़ परिवार के मुखिया समरजीत सिंह राव गायकवाड़ हैं।

आज के गुजरात राज्य में बड़ौदा स्टेट के अलावा कठियावाड़ की 200 रियासतें तथा एक कच्छ की भी रियासत है। इनमें से कोई भी बड़ौदा के बराबरी की तो नहीं थी, लेकिन तोपों की सलामी उन्हें भी मिलती थी। इनमें से इदर के राजा को 15 तोपों की सलामी थी, तो भावनगर राज्य 13 तोपों की सलामी वाला था। पोरबंदर रियासत, जहां राणा वंश राज करता था, को भी 13 तोपों की सलामी थी।

मालूम हो की पोरबंदर राज्य में ही महात्मा गांधी के पिता करमचंद उत्तमचंद गांधी प्रधानमंत्री थे। कई छोटी-छोटी जागीरें भी कठियावाड़ में थीं। इस कठियावाड़ को ही सौराष्ट्र कहा जाता था। इसमें द्वारिका पर बड़ौदा स्टेट का आधिपत्य था।

आज़ादी के बाद बड़ौदा स्टेट के प्रधानमंत्री जीवराज नारायण मेहता, ने सरदार पटेल के विलय का प्रस्ताव स्वीकार करने का पत्र दे दिया, लेकिन कठियावाड़ की रियासतें ऊहा-पोह में थीं। उन्होंने ‘यूनाइटेड स्टेट ऑफ कठियावाड़’ बना कर मोलभाव शुरू किया।

एक तरफ सरदार पटेल थे तो दूसरी तरफ नवानगर राज्य के महाराज जाम साहब दिग्विजय सिंह थे। हालांकि जाम साहब भारत में ही रहने के पक्ष में थे, बस वे अधिकार और ज्यादा चाहते थे। लेकिन जूनागढ़, मंगरौल और मंडावर रियासतें पाकिस्तान के साथ रहना चाहती थीं। और ये तीनों जाम साहब के संगठन (यूनाइटेड स्टेट ऑफ कठियावाड़) में नहीं शरीक हुईं।

पर कूटनीति में सरदार पटेल बड़े घाघ थे। उन्होंने चक्कर चलाया और नवंबर 1948 में ‘यूनाइटेड स्टेट ऑफ कठियावाड़’ को ‘यूनाइटेड स्टेट ऑफ सौराष्ट्र’ नाम दिया गया। और जनवरी 1949 में जूनागढ़, मंगरौल और मंडावर को भी इसी में शरीक होना पड़ा। एक नवंबर 1956 को यूनाइटेड स्टेट ऑफ सौराष्ट्र, बंबई राज्य का बड़ौदा और सूरत वाला हिस्सा तथा कच्छ को मिला दिया गया। लेकिन नया गुजरात राज्य मई 1960 में बना।

भाषायी आधार पर ये तीनों हिस्से एक हैं, लेकिन तीनों की डेमोग्राफी अलग-अलग है। पहनावा, रीति-रिवाज और कल्चर भी। तीनों में प्रकृति भी असमान है। इनमें से कच्छ तो सबसे निराला है। यह संभवतः क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा ज़िला है। 45674 वर्ग किमी के इस ज़िले की आबादी महज़ तीन लाख के करीब है। इसलिए यह पूरा इलाका साँय-साँय करता है।

हम अब इसी ज़िले में थे। भुज यहाँ का इकलौता शहर है, जो 26 जनवरी 2001 के भूकंप में तहस-नहस हो गया था, पर अब यह फिर से उठ खड़ा हुआ है। कच्छ का शाब्दिक अर्थ है, वह इलाका जो गीला भी हो और सूखा भी हो। बरसात के मौसम में यहाँ का व्हाइट रन चिपचिपा हो जाता है, कहीं-कहीं पानी भी भर जाता है और गर्मी में सूखा, अक्सर नमक की आँधियाँ चलती हैं। यहाँ कुछ खास पैदा नहीं होता, लेकिन फिर भी कच्छ सरसब्ज है।

यहाँ पर चार तो हवाई अड्डे हैं- नालिया, कांधला, मूंदड़ा और भुज। इसके एक तरफ अरब सागर है, तो दूसरी तरफ कच्छ की खाड़ी। कच्छ में पुरातात्त्विक अवशेष बहुत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता शायद यहीं से प्रारंभ हुई थी। सिकंदर के समय यहाँ यूनानी आए थे।

उसने इस इलाके में अपना गवर्नर मीनांदर को तैनात किया था, पर जब पाटिलपुत्र के मौर्य वंश का विस्तार हुआ तब मीनांदर का राज उठ गया। इसके बाद यह सदैव हिन्दू राज्य ही रहा, यहाँ तक कि मुगल भी इसको अपने अधीन नहीं कर पाए। अंतिम राजा जाडेजा वंश के रहे। यहाँ भूकंप अक्सर आते रहते हैं। यह इलाका पाकिस्तान से सटा हुआ है।

इसलिए बीएसएफ यहाँ तैनात और चौकस रहती है। हालांकि कच्छ अपने रन के कारण ही जाना जाता है, पर सिर्फ रन ही इसकी विशेषता नहीं हैं। चूंकि यह इलाका तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है, इसलिए हरियाली भी खूब मिलती है। यही कारण है कि कच्छ हर मौसम में घूमने के अनुकूल है। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के जरिये यहाँ पानी का खूब सदुपयोग हुआ है। यहाँ कई सारे बांध हैं।

मौसम की विविधता प्राणियों में भी दिखाई पड़ती है। गधों के लिए कच्छ मशहूर है। यहाँ की “इंडियन वाइल्ड एस सैंकचुरी” तो निराली है। रेगिस्तान के प्राणियों के संरक्षण के लिए ‘इंडियन डैज़र्ट वाइल्ड लाइफ सैंकचुरी’ भी। यह खूब खुला हुआ है क्योंकि आबादी का घनत्त्व मात्र 46 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है।

एक विश्वविद्यालय है। यहाँ पर प्रति हज़ार मर्दों में औरतें सिर्फ 906 हैं। बोली बहुत मीठी और आवाज़ मधुर। लोकगीतों में लास्य है, हास्य है और माधुर्य भी। यहाँ का एक लोकगीत मुझे बहुत पसंद आया था। और वह यह कि “मर्द की शोभा पान-सुपारी, औरत की शोभा सारी!” संभव है, यहाँ के मर्द पान-सुपारी बहुत खाते हों। हालांकि यह भी पता चला कि परस्पर मिलने पर लोग पान-सुपारी देकर एक दूसरे का स्वागत करते हैं। औरतें यहाँ की सुंदर और सजने-धजने की शौकीन होती हैं।

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