फ्रेंडशिप डे…अमित शाह की दुश्मनी तो सुनी, दोस्ती यहां पढ़िए

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अब देश के गृहमंत्री अमित शाह के बार में कहा जाता है कि वे अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने में चूक नहीं करते, वे राजनीति के चाणक्य कैसे बने इसके पीछे उनकी एक ख़ास दोस्त है जिसे वे हर वक्त साथ लेकर चलते हैं

पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )

अमित शाह। ये नाम सुनते ही आपके सामने एक भारी तस्वीर उभरती है। बड़े से माथे और गहरी आंखों वाला एक शख्स। एक ऐसा जुनूनी राजनेता जो कुछ भी कर सकता है। कुछ लोग उन्हें राजनीति का डॉन भी कहते हैं। कहा जाता है -उनसे निपटना आसान नहीं। वे जिस काम या आदमी को निशाने पर लेते हैं, वो पूरा किये बिना नहीं लौटते।

उनकी रणनीति, कूटनीति के पीछे कौन हैं ? ये सब जानना चाहते हैं। इसके पीछे हैं-किताबें। अमित शाह किताबें पढ़ने के लिए जुनूनी हैं। उन्होंने अपने पर लगे मुकदमों के निपटने तक के कानूनी दौर का उपयोग भी किताबे पढ़ने में ही किया। अमित शाह ने ही भाजपा मुख्यालयों पर पुस्तकालयों की नीव रखी। शाह ने इसे साबित किया कि किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं।

शाह को शुरुवात से ही पुस्तकों से लगाव रहा। शाह भाजपा के पुस्तकालय विभाग की बैठकों में हमेशा शामिल होते थे। एक बार उन्होंने खुद बताया- मुंबई में हमारे घर में बहुत बड़ा पुस्तकालय था। बाद में उसका एक हिस्सा हमारे गांव मनसा में पहुंचा। मैं पुस्तकों को पढ़ते हुए बड़ा हुआ। शाह ने मराठा इतिहास, शिवाजी के शौर्य, चाणक्य, विदुर नीति सावरकर सहित विविध पुस्तकें पढ़ी।

शाह ने वीर सावरकर और चाणक्य पर इतना व्यापक अध्ययन किया है कि वे इनकी राजनीति और दर्शन पर घंटों बिना रुके बात कर सकते हैं। चाणक्य पर शाह कहते हैं- अपनी मृत्यु के दो हजार साल भी कोई व्यक्ति प्रासंगिक और चर्चित है तो उसकी विराटता और विलक्षणता का प्रमाण है। शाह कहते हैं कि यदि कोई भी हिन्दुस्तान को समझना और उसे आत्मसात करने के लिए सावरकर और चाणक्य को पढ़ना चाहिए।

गुजरात विद्यापीठ के छात्र के तौर पर उन्होंने पाठक मंच स्थापित किया। गुजरात के मंत्री रहते नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘वांचे गुजरात’ के भी वे अग्रणी रहे। अमित शाह को केवल राजनीति की उठापटक, साजिशें रचने वाला और तड़ीपार कहने वालों को उनके बौद्धिक व्यवहार का भी शोध करना चाहिए। शाह को सतही ज्ञानी और सिर्फ बाहुबली समझने की भूल ने ही विपक्ष खासकर कांग्रेस को सम्भलने का मौका नहीं मिला।

कांग्रेस ने कभी शाह की थाह लेने की कोशिश ही नहीं की। शाह नानाजी देशमुख से भी जुड़े रहे। वे दीनदयाल शोध संस्थान से जुड़े। शाह ने नानाजी देशमुख के नाम पर बनाये गए पुस्तकालयों का उद्घाटन करने खुद एक राज्य से दूसरे राज्य गए। वहां की एक-एक पुस्तक को उन्होंने खुद देखा। कई बार वे एक रात रूककर उन पुस्तकों का अध्ययन किया। जो पुस्तकें कम लगी उनकी सूची बनाई।

विरोधी विचारधारा की पुस्तकें भी रखी

अमित शाह ने भाजपा के पुस्तकालयों में भाजपा से जुडी विचारधारा के अलावा विपक्ष और दूसरी विचारधारा को भी तवज्जों दी। यही कारण है कि इन पुस्तकालयों में भारतीय समाज सुधार आंदोलनों के अलावा कॉग्रेस से जुडी तमाम पुस्तकें भी हैं। मुस्लिम लीग से जुडी पुस्तकें, दस्तावेज और आलेख भी ढूंढकर रखे गए।

शाह मानते हैं कि -राजनीतिक विरोधियों के रास्ते और विचारधारा को जाने बिना उनका सामना नहीं किया जा सकता। जनसंघ के जमाने से ही भाजपा में पढ़ने-लिखने वाले नेता रहे। इसमें जे पी माथुर,लालकृष्ण अडवाणी,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता प्रमुख रहे। ये नेता खुद पढ़ते रहे पर शाह ने सत्ता में आते ही भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए पुस्तकालय के रूप में भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया। उनका ये प्रयास भाजपा को बरसों तक भारतीय राजनीति में बनाये रखेगा।

सत्ता में आते ही केंद्रीय पुस्तकालय

अमित शाह ने 2014 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालते ही एक केंद्रीय पुस्तकालय बनाने का मन बना लिया था। सत्ता में आते ही उन्होंने फरवरी 2016 में दिल्ली के अशोक रोड स्थित कार्यालय में केंद्रीय पुस्तकालय का उद्घाटन किया।

ये अभियान शाह कई दशक से चला रहे थे। गुजरात भाजपा के सामान्य कार्यकर्त्ता रहते हुए भी शाह ने भाजपा के प्रदेश मुख्यालयों में पुस्तकालय के लिए पत्र लिखा था। उस वक्त शाह के जिम्मे भाजपा की बैठकों में चाय-नाश्ते और कुर्सी टेबल के इंतज़ाम का जिम्मा था।

अमित शाह ने साबित कर दिया किताबों से दोस्ती करोगे तो दुनिया मुट्ठी में रहेगी। हैप्पी फ्रेंड शिप डे अमित शाह जी।

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