राजस्थान में मध्यप्रदेश की तरह सरकार गिरना नामुमकिन सा है, सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की लड़ाई के पूरे खेल को समझा रहे हैं राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार अनुराग हर्ष
राजस्थान में आया राजनीतिक भूचाल क्या मध्यप्रदेश की तरह सत्ता परिवर्तन तक पहंच जाएगा। यह सवाल हर आम आदमी के दिमाग में है लेकिन राजनीतिक चर्चाओं के दौरान आंकडों पर भी थोडा ध्यान देना चाहिए। वर्तमान में राजस्थान में जो राजनीतिक उठापटक चल रही है, उसमें भारतीय जनता पार्टी के सत्ता बनाने के लिए कोई अवसर नहीं है। अगर अवसर होता तो भाजपा के बडे नेता भी सक्रिय नजर आते, जो पिछले दो दिनों से कहीं भी नहीं है।
वसुंधरा राजे हो या फिर केंद्रीय नेतृत्व। अब समूचे घटनाक्रम पर नजर डालने से पहले यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि इस पूरे खेल में भाजपा के भाग से छींका भी गिरने वाला नहीं है। दरअसल, यह कांग्रेस की अंदरूनी लडाई का हिस्सा है और इस बार यह अंदरूनी लडाई आरपार की हो सकती है।
जिसमें या तो सचिन पायलट को किनारे कर दिया जाएगा या फिर गहलोत को। जिसमें ज्यादा सम्भावना यह है कि गहलोत एक बार फिर अपनी सीट बचाकर ले जाएंगे।
अब तक के राजनीतिक सफर में गहलोत के लिए इतना मुश्किल समय पहले कभी नहीं आया। जब उन्हें अपनी ही पार्टी के नेताओं से दो दो हाथ करने पड रहे हैं। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि इस खेल में भारतीय जनता पार्टी के पास न तो खोने के लिए कुछ है और न ही पाने के लिए।
राज्य में अभी सीटों का जो आंकडा है वो पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में है। कांग्रेस के पास अपने 107 विधायक है जो बहुमत से छह ज्यादा है। निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिलाकर यह आंकडा 123 तक पहुंच जाता है।
25 विधायक कांग्रेस छोड़ दें, फिर भी भाजपा नहीं बना सकेगी सरकार
भाजपा की खुद की 72 सीट है और हनुमान बेनीवाल की पार्टी के तीन विधायक है। कुल मिलाकर भाजपा के पास 75 विधायक अभी है। सचिन पायलट के पास विधायक है या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन मीडिया जिन 25 विधायकों के दिल्ली में होने की बात कह रही है, वो सही भी है तो भाजपा के लिए यह खुशखबरी नहीं हो सकती।
सभी विधायक एक साथ भाजपा में शामिल नहीं हो सकते, क्योंकि दल बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता ही खत्म हो जाएगी। ऐसे में विधानसभा में 175 विधायक रह जाएंगे। जिसमें बहुमत साबित करने के लिए भाजपा को 88 सीट की जरूरत होगी। ऐसे में वो फिर भी सत्ता से दूर रहती है।
यहां तक कि अगर 50 विधायक भी विधानसभा से इस्तीफा दे दें तो भाजपा के लिए सरकार बनाना आसान नहीं है। उसे 76 विधायकों के लिए भी एक विधायक का जुगाड ही करना पडेगा। यह बहुत दूर की कौडी है कि भाजपा सरकार बना सकती है। यह आंकडा भाजपा के दिग्गज नेताओं को पता है। इसीलिए वसुंधरा सहित कोई वरिष्ठ नेता इससे नहीं जुडा हुआ।
पायलट को एसओजी का नोटिस दिलवाकर
जादूगर अशोक ने बाज़ी मार ली
अगर भाजपा इस समूची फिल्म की पटकथा लेखक नहीं है तो आखिर कौन है? दरअसल, यह कांग्रेस के अंदरूनी खेल का हिस्सा है। अशोक गहलोत इस खेल को समय से पहले भांप गए थे, इसलिए भाजपा के नाम पर पूरी कहानी लिख दी गई। हालांकि सचिन पायलट का गेम प्लान भी चल रहा था लेकिन समय से गेम के खिलाडी आउट होने से यह सारा मामला स्पेशल आॅपरेशन ग्रुप के माध्यम से खेला गया।
स्पेशल आॅपरेशन ग्रुप यानी पुलिस वाला एसओजी नहीं, यह राजनीति का एसओजी है। अब यह सारा खेल कांग्रेस में बडे बदलाव की ओर संकेत कर रहा है। सचिन पायलट की नाराजगी किसी से छिपी हुई नहीं है। यह नाराजगी उस समय बढ गई जब पुलिस के एसओजी ने उन्हें भी एक नोटिस थमा दिया।
इतना ही नहीं यह नोटिस सार्वजनिक भी हो गया। यह बात अलग है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी यह नोटिस दिया गया या बाद में उनके नाम से भी जारी करवा दिया गया। सवाल यह खडा होता है कि एक उप मुख्यमंत्री को नोटिस कैसे दिया जा सकता है! वह भी राजद्रोह से जुडी धारा का। धारा 160 में दिया गया यह नोटिस है उपद्रव से जुडा हुआ। इसमें एक महीने की सजा का प्रावधान है। इसमें 120 बी की धारा जोडी गई है, जिसका आशय है कि षडयंत्र से जुडे हुए लोग भी उसमें दोषी होते हैं।
सचिन को आउट करने का प्लान
अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच की इस लडाई में अब सीज फायर होगा या फिर अंतिम निर्णय होगा! इस सवाल का जवाब आने में अभी दो दिन लगेंगे। गहलोत गुट का कहना है कि अब प्रदेशाध्यक्ष बदलने के बाद ही इस आग पर काबू पाई जा सकेगी, वहीं सचिन पायलट गुट का मानना है कि सचिन मुख्यमंत्री बनें या न बनें लेकिन गहलोत को हटाने का प्रयास सफल होगा।
फिलहाल सवाल यह खडा हो रहा है कि अगर सचिन अपने चंद विधायकों के साथ शक्तिप्रदर्शन कर सकते हैं तो क्या गहलोत चुप बैठेंगे। गहलोत के पास सचिन से ज्यादा विधायकों का जमावडा है। उन्होंने अपने मंत्रियों से व विधायकों से लिखित में लेना शुरू कर दिया है कि वो किसके साथ हैं। चूंकि गहलोत अभी मुख्यमंत्री है इसलिए वो दो कदम आगे चल रहे हैं।
कहानी अचानक नहीं लिखी
पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने अचानक ही प्रदेश की समूची प्रशासनिक व्यवस्था को बदल दिया था। डेढ दर्जन जिलों में तो कलक्टर व एसपी ही बदल दिए। इतना ही नहीं मुख्य सचिव तक को बदल डाला।
यहीं से सुगबुगाहट तेज हो गई कि कुछ होने वाला है। दो दिन में यह आरोप लगने शुरू हो गए कि भाजपा उनके विधायकों की खरीद फरोख्त कर रही है। राज्य सभा चुनाव का जिन्न फिर खडा किया गया। बयानबाजी हुई, विधायकों के खिलाफ ही मामले भी दर्ज हो गए। यह मामले दर्ज होते ही कई विधायक गहलोत खेमे में पहुंच गए। उन्हें पता था कि जादूगर कुछ भी कर सकता है।
गहलोत का कद पार्टी में घटेगा
संख्यात्मक तौर पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट में गहलोत ही आगे है। ऐसे में सचिन चाहकर भी अशोक गहलोत की सरकार भाजपा के साथ मिलकर नहीं गिरा सकते। हां, वो पार्टी में ही गहलोत को हराने की कोशिश जरूर कर सकते हैं। यही कोशिश वो कर रहे हैं।
अशोक गहलोत ने शायद यह मुकदमा दर्ज करवाकर गलती कर दी। अगर पार्टी में उच्च स्तर पर यह मामला चर्चा में आया तो अशोक गहलोत को नुकसान हो सकता है। इस नुकसान से बचने के लिए ही सारी कवायद हो रही है। दिल्ली में हाइकमान को अब इस मामले में सख्ती से निर्णय करना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मध्यप्रदेश की तरह सत्ता तो नहीं जाएगी, लेकिन एक बडा प्रभावशाली नेता जरूर पार्टी से किनारे हो जाएगा।
पाॅवर सेंटर एक होना चाहिए
यह गलती पार्टी ने विधानसभा चुनाव के बाद ही कर दी थी, अगर उसी समय पाॅवर सेंटर एक रखा जाता तो यह हालात नहीं होते। तब पार्टी ने मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री बना दिए। इतना ही नहीं प्रदेशाध्यक्ष भी सचिन ही रह गए।
ऐसे में पार्टी के दो पाॅवर सेंटर अब समस्या बन गए हैं। सचिन हर जिले में होने वाली राजनीतिक नियुक्ति के लिए खुद पंचायती करना चाहते हैं और अशोक गहलोत उन्हें सूची दिखाना तक नहीं चाहते। ऐसे में प्रदेश की 139 निकायों के चुनाव से पहले यह कवायद परेशान करने वाली है।