देवप्रिय अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार, लेखक )
राजस्थान में कांग्रेस की जड़ें खोदने का सचिन पायलट को यही इनाम मिलना था। कांग्रेस ने उन्हें उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाकर अपनी आखिरी चार चल दी है। इस चाल की परिणति मुख्यमंत्री पद से अशोक गहलोत के इस्तीफे के रूप में हो सकती है।
इस पूरे प्रकरण में ध्यान रखना होगा कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसी नहीं हैं। वह संभावित नए ढांचे में पायलट और उनके समर्थकों को वह महत्त्व देने को कतई राजी नहीं होंगी जो महत्त्व देने के लिए शिवराज सिंह चौहान को मजबूर होना पड़ा।
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ताज़ा घटनाक्रम से जाहिर है कि सचिन पायलट भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से सौदेबाजी करने की अपनी ताकत काफी हद तक गवां चुके हैं। राजस्थान के इस राजनीतिक तमाशे में अभी कई दृश्य बाकी हैं।
जहां तक कांग्रेस की बात है, वह अपने बूढ़े नेतृत्व के बोझ से रसातल में जाने को अभिशप्त है। इस प्रक्रिया को रोकने के लिए सोनिया-राहुल-प्रियंका का कांग्रेस के सभी पदों से अलग होना पहली जरूरत है। ऐसा करने के लिए भी अब शायद बहुत देर हो चुकी है।
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