रातों रात सेक्युलर हो जाने का मास्टर स्ट्रोक!

Share Politics Wala News
निधीश त्यागी
एक जंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लड़ी जा रही है. जैसे जंग नहीं हो. कोई वीडियो गेम हो. फेक न्यूज से पटा पड़ा है सोशल मीडिया और झूठ कितनी तेज़ी से वायरल हुआ जाता है. जिसके जो मन में आ रहा है बोल रहा है. कहीं का फुटेज, कहीं का ग्राफिक, कोई भी एआई. प्यार और जंग में सब जायज है, पता नहीं कब किसने कहा था. सिवा सच के. और सच यह है कि हम जंग के मुहाने पर खड़े हैं.
हम एक मुस्लिम महिला कर्नल सोफिया कुरैशी को पाकिस्तान पर भारतीय हमले की ब्रीफ देता देख रहे हैं. भारत की सरकार यकायक रातोरात सेक्युलर हो गई है. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पहलगाम में आतंकवादियों का उद्देश्य भारतीय समाज में कलह फैलाना था. मिसरी ने कहा, “हमले का तरीका भी जम्मू और कश्मीर तथा देश के बाकी हिस्सों, दोनों में, सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने के उद्देश्य से किया गया था.” उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख करते हुए कहा कि कई पुरुष पर्यटकों से उनका धर्म पूछने के बाद उन्हें गोली मार दी गई थी, जिसमें गैर-मुसलमानों को निशाना बनाया गया था. “इसका श्रेय भारत सरकार और भारत की जनता को जाता है कि इन मंसूबों को नाकाम कर दिया गया.”
आज हमारे विदेश सचिव का यह कहना कि पहलगाम का आतंकवादी हमला भारत में सांप्रदायिकता फैलाने के मकसद से था. भई वाह. तो अब तक क्या चल रहा था. हम हाल तक हिंदू औरतों से मंगलसूत्र छीन रहे थे और अब सिंदूर का बदला ले रहे थे. हाल तक हम उन्हें पंचर वाला बता रहे थे. उन्हें सड़क पर नमाज पढ़ने से रोक रहे थे, उनके घरों पर बुलडोजर चला रहे थे, और हिंदू कांवड़ियों पर पुलिस से फूल बरसवा रहे थे और उनके रास्ते बनाने के लिए पेड़ काट रहे थे. हम योगी आदित्यनाथ, यति नरसिंहानंद, निशिकांत दुबे, कपिल मिश्रा, नुपुर शर्मा को यकायक भूल रहे हैं. मस्जिदों पर नाचते लोगों को देख रहे हैं, विशाखापटनम की कराची बेकरी (क्या बेहतरीन फ्रूट बिस्कुट होते हैं उनके साहब!) पर चढ़ रहे हैं, हम काल्पनिक गोमांस के नाम पर असली हा़ड़़ मांस के लोगों को मार सकते हैं. हम उनका जीना, रहना, पढ़ना, रोजगार करना मुश्किल किये दे रहे हैं. हम उन्हें कश्मीरी कह कर दुरदुरा रहे हैं. हमारी पुलिस लाठियां मार कर दम तोड़ते हुए नौजवान से जन गण मन… गाने को कह रही है. हम होली के दिन जुमे की नमाज पढ़ने के लिए बाहर निकलने से रोकते हैं.
मिसरी का ये बयान काम का है. अगर सचमुच उन आतंकवादियों का यही एजेंडा है, तो किन लोगों से मिलता–जुलता है. कौन चाहता है कि भारत के हिंदू और मुस्लिम में फूट, नफरत, बैर और हिंसा का जहर बोना. क्या इसके लिए आतंकवादियों की जरूरत है? या फिर पाकिस्तान की. अगर मिसरी की बात सही है (जो कि है) तो फिर ये सारे सरकारी जमूरे ऐसा तमाशा क्यों और किसकी शह पर किये जा रहे हैं.
कल तक जो जय श्री राम कह कर मार रहे थे, और मार कर कहलवा रहे थे, आज जय हिंद कह रहे हैं. वे कह रहे हैं, कि कर्नल सोफिया कुरैशी से आर्मी की प्रेस कांफ्रेस करवाना भारत की तरफ से मैसेजिंग का मास्टर स्ट्रोक है. वह एक बेहतरीन अफसर हैं और कई पीढ़ियों से उनका परिवार फौज में काम करता रहा है. गुजरात से हैं. यह कुशल रणनीति बताई जा रही है, पर देखा जाए तो टुच्ची चतुराई ही है. जिसे कम्युनिकेशन में ऑप्टिक्स कहा जाता है. सवाल यह नहीं है कि कर्नल कुरैशी भारत की तरफ से खड़ी हैं. यह भी नहीं कि मुसलमान और कश्मीर भारत के साथ मजबूती से खड़ा है. सवाल ये है कि क्या इस देश का हर हिंदू हर भारतीय के साथ खड़ा है? वह हिमांशी नरवाल जैसे उन हिंदुओं के साथ खड़ा है, जो इतने मुश्किल और नाजुक पल में भी लोगों से हिंदू-मुस्लिम नहीं करने की अपील कर रही थी.
जिन्हें ये लगता है कि इस ऑप्टिक्स के जरिये हम अपनी, अपने देश की, सरकार की, सत्तारूढ़ दल की, उसकी पैतृक संस्था की हकीकत को भूल जाएंगे, अविश्वसनीय तौर पर चरम कल्पनाशील आशावाद हैं, कि हम एक नये शोर से पुराने शोर को भूल जाएंगे. कि हम खुफिया विभाग की चूक और सुरक्षा भूलों पर सवाल करना छोड़ देंगे और उनके जवाबदेह लोगों से हिसाब मांगना भी. इसलिए कि ये लड़ाई किसी और देश की नहीं है. हमारी अपनी है, जिसे और कोई ठीक नहीं कर सकता.
हम शोर के बदले शोर हुए जा रहे हैं. अभी यह पता नहीं कि ये लड़ाई यहीं रुकेगी या जंग में बदलेगी? कितने देश हैं, जो भारत के पक्ष में हैं. कितने जो पाकिस्तानी हाथ होने का सुबूत मांग रहे हैं. कितने जो भारत के दावों को जस का तस मान लेने से हिचक रहे हैं. हम ये नहीं देख पा रहे कि इस जंग को हम किस तरह से खत्म करना चाहेंगे. कितने देश हैं, जो पाकिस्तान की तरफ हाथ आगे बढ़ा चुके हैं. जिन्हें भारत की तरफ होना चाहिए था, जिन्हें दखल देकर इस तनाव और ताप को कम रखना था, वे इस वक्त अपनी लुटिया डुबाने में मगन दिखलाई देते हैं.
ये क्रिकेट मैच नहीं है. वीडियो गेम भी नहीं. इसके गहरे और गंभीर हश्र हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *