हिंसा प्रदेश .. ‘ऐसी ममता’ से देश चलेगा !

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक अभूतपूर्व दर्जे की हिंसा ने पूरे देश में फिक्र खड़ी कर दी है। बिना किसी बाहरी या विदेशी आतंकी, बिना किसी नक्सल सरीखे घरेलू हथियारबंद संगठन की हिंसा के, जिस तरह बंगाल के एक गांव में तृणमूल कांग्रेस के एक नेता की हत्या के बाद जवाबी दिखती हिंसा में एक दर्जन घर जला दिए गए जिनमें से एक मकान में एक कमरे में ही छिपे सात लोग जलकर मर गए।

इससे परे एक और मौत जलने से हुई है। बंगाल में पहले तो वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं और ममता बैनर्जी की टीएमसी के लोगों के बीच ऐसे हिंसक संघर्ष होते थे, लेकिन बाद में वामपंथी कमजोर होते चले गए और विपक्ष की जगह भाजपा ने ले ली, तब से भाजपा और टीएमसी के बीच यह खूनी संघर्ष चलते रहता है।

जब जिसके हाथ लगता है, वे दूसरी पार्टी के लोगों को मार डालते हैं, और बंगाल में विधानसभा चुनावों के बाद जिस परले दर्जे की हिंसा वहां हुई थी उसकी अदालत की निगरानी में जांच भी अब तक पूरी नहीं हुई है, और इस ताजा हिंसा पर कोलकाता हाईकोर्ट ने खुद होकर रिपोर्ट मांगी है।

भारत की राजनीति में यह बात थोड़ी सी अटपटी है कि पश्चिम बंगाल के अलावा केरल में भी सत्ता और विपक्ष के बीच इसी किस्म की हिंसक झड़प चलती रहती है, और गाहे-बगाहे लाशें गिरती रहती हैं।

अभी कुछ अरसा पहले ही वहां आरएसएस का एक कार्यकर्ता बम बनाते अपने ही हाथ की उंगलियों को उड़ा बैठा था, और वहां संघ-भाजपा और वामपंथियों के बीच बहुत सी हत्याएं होते आई हैं। यह बात बड़ी अजीब है कि ये दो राज्य अलग-अलग बसे हुए हैं, दोनों गैरहिन्दी भाषी हैं, और दोनों पर समय-समय पर वामपंथियों ने राज किया है, आज भी वहां उनकी राजनीतिक मौजूदगी है।

लेकिन बंगाल में अब वामपंथी अपनी खोई हुई ताकत के बाद हिंसा के मामलों से परे हैं, और वहां सत्ता और विपक्ष चलाने वाले टीएमसी और बीजेपी ने यह जिम्मा ले लिया है।

इस बात का कोई राजनीतिक विश्लेषण अभी तक हमारे देखने में नहीं आया है कि बाकी देश से परे इन दो राज्यों में इतनी राजनीतिक हत्याएं आखिर क्यों होती हैं? लेकिन यह तो एक गंभीर राजनीतिक-सामाजिक अध्ययन का मुद्दा है, और उससे इस नौबत को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि बंगाल लगातार बड़े पैमाने पर हिंसा को देख रहा है, वहां लाशें गिर रही हैं।

ममता बैनर्जी केन्द्र की मोदी सरकार से लगातार टकराव मोल लेते हुए अगले आम चुनावों में मोदी के एनडीए का विकल्प बनने और पेश करने में लगी हुई हैं, लेकिन इस ताजा घटना ने बंगाल को ही उनके काबू के बाहर का साबित किया है।

कहने के लिए तो यह कहा जा सकता है कि यह मामला ममता के एक कार्यकर्ता की हत्या से शुरू हुआ, और जवाबी हिंसा की एक अकेली घटना में आगजनी में एक घर के लोग मारे गए, और उनकी हत्या नहीं की गई, वे जलकर मर गए।

लेकिन विधानसभा चुनावों के बाद की हिंसा अभी सबकी यादों में ताजा है, और उस पर कोई कार्रवाई भी होना अभी बाकी है। इस हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी और एनडीए के मनोनीत राज्यपाल के बीच सार्वजनिक टकराव चलते ही रहता है।

चुनाव बाद की हिंसा में बंगाल में दर्जन भर हत्याएं हुई थीं, और जगह-जगह विपक्षी पार्टियों के दफ्तर भी जला दिए गए थे। हिंसा की वह संस्कृति ममता के राज में अब भी जारी है, और इस बार जिन्हें जलाकर मार डाला गया है, उनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं।

ममता बैनर्जी ने अपनी आदत के मुताबिक अपनी सरकार की इस नाकामी का बचाव करते हुए देश के दूसरे प्रदेशों की कुछ हिंसक घटनाओं को गिनाया है, जहां पर भाजपा की सरकारें हैं।

लेकिन दूसरे राज्यों की खामियां गिनाने से ममता खुद कामयाब नहीं हो जातीं, और खासकर जब वे देश के विपक्षी गठबंधन की अगुवा होने के लिए ओवरटाइम मेहनत कर रही हैं, जब वे दूर-दूर के प्रदेशों में जाकर अपनी पार्टी की बैनर तले चुनाव लड़ रही हैं, तब उन्हें सरकार चलाने की एक बेहतर मिसाल भी पेश करनी होगी।

राजनीतिक हिंसा का ऐसा इतिहास बाकी भारत में ममता को सम्मान नहीं दिला पाएगा क्योंकि इस दर्जे की राजनीतिक हिंसा देश के किसी भी और प्रदेश में नहीं हो रही हैं, नहीं होती हैं। ममता बैनर्जी के तेवर सत्ता को चलाने के लिए कुछ अधिक ही बगावती दिखते हैं। उन्हें सत्ता की जवाबदेही समझनी चाहिए, और विपक्ष की तरह का बर्ताव अपने ही राज में करना ठीक नहीं है।

अब आज बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी दलों की कोई जमीन नहीं बच गई है, विधानसभा में ये घुस भी नहीं पाए हैं, इसलिए वहां के लोकतांत्रिक नजारे में इनकी बात का अधिक वजन भी नहीं रह गया है।

ऐसे में भाजपा और टीएमसी के बीच का कातिल-टकराव केन्द्र और राज्य के संवैधानिक टकराव में बार-बार बदलता है, और इस दर्जे की हिंसा एक नया टकराव तो खड़ा कर ही चुकी है। कोलकाता हाईकोर्ट के अलावा केन्द्र सरकार, भाजपा, कांग्रेस, वामपंथी, राष्ट्रीय महिला आयोग, सभी बंगाल पहुंच रहे हैं, और राजनीतिक मतभेदों के चलते राज्य में इस दर्जे की हिंसा ममता को निश्चित ही भारी पड़ेगी।

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