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दुर्बल और जर्जर विनोद कुमार शुक्ल पर गिद्धों जैसे मंडराना नाजायज…

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दुर्बल और जर्जर विनोद कुमार शुक्ल पर गिद्धों जैसे मंडराना नाजायज…

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

हिंदी के एक सबसे बड़े साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल 90 बरस की उम्र में छत्तीसगढ़ के रायपुर में एम्स में भर्ती हैं, और उनकी हालत खासी खराब बताई जा रही है।

पिछले कई महीने उनके घर और अस्पताल में मिले-जुले गुजरे हैं, और उनके चाहने वाले करीबी लेखक-पत्रकार लगातार सोशल मीडिया पर उनकी खबर डालते जाते हैं। लोग उनसे मिलने जाते हैं तो अपनी तस्वीरें भी पोस्ट करते हैं।

उनकी हालत देखते नहीं बनती है, खासकर वे लोग बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं जिन्होंने पिछली करीब आधी सदी से उन्हें रूबरू देखा है। अब इस दौर में केंद्र सरकार के छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े अस्पताल, एम्स में उनकी जो हालत सुनाई पड़ रही है, वह बहुत दयनीय है।

कुछ लोगों ने लिखा है कि विनोद कुमारजी के बेटे शाश्वत अकेले ही सारा इंतजाम देख रहे हैं, और अस्पताल के डॉक्टर या कर्मचारी जैसा बर्ताव कर रहे हैं, वैसा तो किसी साधारण सरकारी अस्पताल के डॉक्टर-कर्मचारी किसी आम मरीज के साथ भी शायद नहीं करते हैं।

फिर विनोदजी से तो पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ पहुंचते ही फोन पर बात की थी और मिजाजपुर्सी की थी, और उनका सम्मान किया था। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह समेत कई दूसरे मंत्री या नेता विनोद कुमारजी को देखने समय-समय पर अलग-अलग अस्पतालों में या घर पर जाते रहे हैं, और उनके साथ तस्वीरें फेसबुक पर डालते रहे हैं।

इसी बीच विनोद कुमारजी को पहले से घोषित ज्ञानपीठ पुरस्कार देने के लिए आयोजक आकर उनके घर पर एक पारिवारिक माहौल में यह औपचारिकता पूरी कर गए।

इन महीनों में लगातार दुर्बल और जर्जर होते चले जा रहे विनोदजी के साथ मुलाकात करने, और तस्वीरें खिंचवाने के लिए दिल से करीब, और शोहरतपसंद, सभी किस्म के लोग टूटे पड़े रहे। शोहरत की चाह में भी कोई बुराई नहीं है अगर विनोदजी जैसे सहज और सरल व्यक्ति अपनी सेहत को खतरे में डालकर भी लोगों से मिलने को इस तरह आसानी से तैयार हो जाते हैं।

अब फेसबुक पर एक बहस चल रही है कि उनके लिए एम्स में इंतजाम कैसा है। कुछ बहुत करीबी लोग ऐसी बहस से दूर भी हैं। और कुछ करीबी लोग बहस को अपनी-अपनी पसंद के सिरे तक खींचकर ले जा रहे हैं। लोगों के अपने राजनीतिक रुझान उनके लिखे हुए में झलकते हैं, और किसी भी तरह के राजनीतिक रुझान से तकरीबन अछूते रहते आए विनोद कुमारजी अब कुछ पढ़ने की हालत में भी नहीं हैं कि उनके बारे में क्या लिखा जा रहा है।

तस्वीरों में उनकी जो हालत दिखती है, उससे लगता है कि अब लोगों को रहम करना चाहिए, और उनकी ऐसी खराब हालत की तस्वीरें पोस्ट करना बंद करना चाहिए। लेकिन उनके साथ अपनी तस्वीरें पोस्ट करते हुए लोगों को उनके हाथ थामना भी अच्छा लगता है, और कमरे में भीड़ बढ़ाना भी।

मैं अपनी पूरी जिंदगी में परिवार के किसी सदस्य से मिलने भी आईसीयू में नहीं गया, क्योंकि मुझसे फायदा कुछ नहीं होना था, सिर्फ संक्रमण का नुकसान हो सकता था। लेकिन जब सार्वजनिक जीवन में प्रचार से नफा पाना हो, तो मरीज को होने वाले नुकसान की आशंका को अनदेखा करना ही सहूलियत की बात होती है।

फिर हिंदुस्तानी डॉक्टर चाहे निजी अस्पताल के हों, चाहे सरकारी अस्पताल के, आने वाले दिग्गजों के साथ, मरीज के बगल खड़े हुए उन्हें अपनी तस्वीर भी सुहाती है। विनोदजी को लेकर लोग सोशल मीडिया पर अपने-अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।

कुछ ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो कि कुछ लिखे बिना भी उनके किसी काम आ रहे हों, लेकिन जो लोग लिख रहे हैं वह तो यही लिख रहे हैं कि अकेले उनका बेटा ही 102 डिग्री बुखार में भी फर्श पर सोकर ड्यूटी कर रहा है, और अस्पताल के कर्मचारी तो न डायपर बदलने को हैं, और न ही बिस्तर पर पड़े-पड़े उन्हें हो गए जख्मों पर मरहम लगाने के लिए हैं।

लोग यह भी लिख रहे हैं कि यह सब अकेले उनके बेटे शाश्वत को ही करना पड़ रहा है। कुछ लोगों ने यह भी लिखा है कि सरकार की तरफ से इलाज के लिए कोई मदद नहीं मिली, और प्रधानमंत्री के फोन, या मुख्यमंत्री के आने के बाद कोई सरकारी अधिकारी आ गए थे कि मदद के लिए आवेदन लिख दें।

इसका जिक्र भी सरकार को कोसने के लिए हो रहा है, और सरकार के लोग अपना बचाव भी कर रहे हैं, और यह भी लिख रहे हैं कि विनोदजी की आड़ में लोग अपना एजेंडा आगे न बढ़ाएं।

मेरा विनोद कुमारजी से परिचय तकरीबन आधी सदी का है, लेकिन मैंने उनके करीब के दायरे में उस वक्त आने-जाने की कोशिश नहीं की जब उनकी सेहत के लिए लोगों का उनसे कुछ दूर रहना ही बेहतर था। वे इतने सज्जन हैं कि वे न लोगों को रोक-टोक सकते थे, और न उनके नाम को लेकर बीते बरसों में छेड़े जा रहे विवादों पर वे कुछ बोलते थे।

आज उनकी जो गंभीर हालत है, उसे देखते हुए भी जो लोग भी तस्वीरों से या लिखकर अपने एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं, अपने-आपको आगे बढ़ा रहे हैं, उससे मुझे अफ्रीका की एक तस्वीर याद आ रही है। उस विख्यात या कुख्यात तस्वीर में एक बच्चा भूख से मरने की कगार पर है, उसके पीछे कुछ कदम दूरी पर एक गिद्ध बैठे अपनी बारी का इंतजार कर रहा है, और एक अमरीकी फोटोग्राफर ने यह भयानक पल कैमरे में कैद करके दुनिया के सामने अफ्रीका के अकाल और भूखमरी को पेश किया था।

बाद में उस फोटोग्राफर से बची पूरी जिंदगी यह सवाल होते रहा कि फोटो खींचने के अलावा उसने मौत के करीब पहुंचे उस भूखे बच्चे के लिए क्या किया? क्या उसे गिद्ध से बचाने की कोशिश की, या उससे एक तस्वीर कमाकर वाहवाही पाने वह अपनी सहूलियत की दुनिया में लौट गया था, इस मरणासन्न बच्चे को गिद्ध के हवाले छोड़कर।

बाद में यह खबर भी फैली थी कि इस फोटोग्राफर ने दुनिया के सवालों से परेशान होकर खुदकुशी कर ली थी, लेकिन सच यह था कि वह अपनी जिंदगी की कुछ और चीजों से परेशान था, और उनके चलते उसने खुदकुशी की थी।

मुझे ऐसा लग रहा है कि विनोद कुमारजी की असल मदद के बजाय अलग-अलग लोगों के एजेंडा के गिद्ध उन पर मंडरा रहे हैं। रुचिर गर्ग छत्तीसगढ़ के एक सबसे होनहार पत्रकार हैं, और मेरे सबसे करीबी भी। उन्होंने सोशल मीडिया पर यह अफसोस जाहिर किया है कि जब एम्स में विनोद कुमारजी की देखरेख के लिए कर्मचारी नहीं हैं, तब बाहर से कोई इंतजाम क्यों नहीं हो सकता?

उन्होंने नाम गिनाने के लिए वर्तमान और भूतपूर्व मुख्यमंत्री सबके नाम गिना दिए हैं कि वे देखकर गए हैं, फिर भी कुछ नहीं हुआ। मुझे लगता है कि वे पिछले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जितने करीबी एक वक्त रहे हैं, आज उनसे अलग हो जाने पर भी वे छोटे-मोटे इंतजाम की सलाह तो उन्हें भी दे सकते थे, और वर्तमान सरकार को भी देने का हक उन्हें छत्तीसगढ़ के एक नागरिक के नाते है ही।

वे किसी अस्पताल के संचालक से भी अपील कर सकते थे कि वे ही एम्स में किसी पुरूष-नर्स की ड्यूटी लगा दें ताकि विनोदजी के बेटे का बोझ कुछ कम हो सके। प्रदेश के एक दिग्गज वकील और विनोदजी के करीबी, कनक तिवारी भी लगातार उनकी सेहत के बारे में लिख रहे हैं, और वर्तमान सरकार को याद भी दिला रहे हैं कि जब उनकी (कनक तिवारीजी की) जिंदगी खतरे में थी तो मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सरकार की पूरी ताकत झोंककर उन्हें बचाया था।

कई और लेखक-साहित्यकार या दूसरे लोग विनोदजी की सेहत पर फिक्र जाहिर कर रहे हैं। विनोदजी के स्वस्थ रहते जो लोग उनकी शोहरत में हिस्सा बंटाते रहते थे, वे या वैसे लोग आज भी अस्पताल की उनकी तस्वीरों को लेकर सोशल मीडिया पर डटे हुए हैं। विनोदजी तो कुछ देखने-सुनने, या कहने की हालत में नहीं हैं, लेकिन लोगों को उन पर रहम करना चाहिए। उनके बिस्तर के इर्द-गिर्द लाठी भांजना ठीक नहीं है।

जिनसे कुछ करते बने वे कर लें, जिनकी हसरत हो वे सरकार को लिखकर अपील कर दें, लेकिन उनके मुद्दे को लेकर लाठी और तीर चलाना ठीक नहीं है। मेरा निशाना किसी एक पर नहीं है, लेकिन उन तमाम लोगों पर है जो विनोदजी के नाम को लेकर सोशल मीडिया पर अप्रिय चर्चा कर रहे हैं। यह चर्चा मुझे उस अमरीकी फोटोग्राफर के पेशेवर काम की तरह दिख रही है, यह अलग बात है कि आज के लोग उस फोटोग्राफर की तरह खुदकुशी भी करने वाले नहीं हैं। (मैं एक शानदार जिंदगी जी चुके विनोद कुमारजी की अस्पताल की खराब हालत की तस्वीर पोस्ट करने के पक्ष में नहीं हूं। यह तस्वीर आलोक पुतुल की खींची हुई)

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