मनुष्य की पशुता को कितनी बार भी काट दो, वह मरना नहीं चाहती-हजारी प्रसाद द्विवेदी ने
ये बरसो पहले ऐसे ही हथिनी के हत्यारों पर ये पंक्तियाँ लिखी होगी, जो आज भी सही है
पिछले तीन दिनों से केरल की एक हथिनी और उसके पेट में पल रहे उसके शिशु की मौत की खबर तस्वीरों सहित सोशल मीडिया और टीवी-अखबारों में इस कदर छाई हुई है कि बहुत से संवेदनशील लोग उसे देख भी नहीं पा रहे हैं। केरल में लोगों ने एक फल, अनानास, में विस्फोटक भरकर रख दिया था। जिसे मामूली फल समझकर इस हथिनी ने खा लिया था। उसके बदन के भीतर विस्फोट से उसे इतनी चोट आई कि वह मर गई।
भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान पशु अधिकारवादी सांसद मेनका गांधी ने केरल के इस जिले की आलोचना करते हुए कहा है कि यहां के लोग वनप्राणियों को मारने के मामले इसी तरह बदनाम हरकतें करते हैं। इस बारे में लोगों ने सोशल मीडिया पर जो लिखा है उसमें से एक ने हिन्दी के गुजर चुके वरिष्ठ साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी का लिखा एक वाक्य भी पोस्ट किया है- मनुष्य की पशुता को कितनी बार भी काट दो, वह मरना नहीं चाहती।
अब सवाल यह है कि तमाम किस्म के पशुओं के बारे में अच्छे सोच-विचार लें, तो भी ऐसे कोई पशु दिखते नहीं हैं जो कि दूसरे पशुओं या इंसानों को मारने के लिए इस तरह की साजिश रचते हों। सच तो यह है कि जितने जंगली जानवर हैं। आसमान या समंदर में रहने वाले, जमीन के नीचे बिल बनाकर रहने वाले, सभी प्राणी अपनी जरूरत के लायक ही शिकार करते हैं। कोई जानवर ऐसे नहीं हैं जो मजे के लिए, शिकार करके साथ में तस्वीर खिंचवाने के लिए दूसरों को मारते हों।
यह तो हिन्दुस्तान में शिकार के खिलाफ कड़ा कानून बन गया है। इसलिए अब चर्चित फिल्मी सितारों को छोड़कर और कोई ऐसा दुस्साहस आमतौर पर नहीं करता हैं। इंसानों की खूबी यह है कि अपने भीतर की हर किस्म की कमीनगी के लिए वे किसी न किसी जानवर को मिसाल की तरह इस्तेमाल करते हैं, और ऐसा जाहिर करते हैं कि मानो इंसानों ने उन जानवरों से ही ऐसी घटिया बातें सीखी हैं। आपसी संबंधों में धोखा देने वाले लोगों को इंसान आस्तीन का सांप कहते हैं।
अब भला सांप एक-दूसरे को कौन सा धोखा देते हैं? इंसान अपने भीतर की तमाम गंदगी के लिए कभी किसी अदृश्य और नामौजूद हैवान को जिम्मेदार ठहराते हैं, तो कभी किसी जानवर को। जो इंसान दूसरों के मरने से होने वाले फायदे का इंतजार करते बैठे रहें, उनके लिए गिद्ध की मिसाल दी जाती है। अब गिद्ध को तो कुदरत ने यह जिम्मा देकर रखा है कि वह मरे हुए प्राणियों की लाशों को ठिकाने लगाए। गिद्ध किसी के मरने का इंतजार करने वाले इंसानों की तरह इंतजार करते नहीं बैठते, वे अपने पेट भरने की जरूरत देखते हैं, और इंसानों की एक जरूरत को पूरा करते हैं, वे इंसानों जैसी घटिया सोच वाले नहीं होते।
दुनिया में जानवरों के साथ ऐसी बदसलूकी होते आई है कि हर दिन उनकी कई प्रजातियां खत्म होती जा रही हैं। एक वक्त था जब हिन्दुस्तान जैसे देश में राजाओं से लेकर दूसरे रईसों तक के घर तब तक सजे हुए नहीं माने जाते थे, जब तक दीवारों पर शिकार किए गए कुछ जानवरों के सिर टंगे हुए न हों, उनकी खाल फर्श पर बिछी हुई न हों, और मेज पर हाथीदांत के कुछ सामान सजे हुए न हों।
क्या जानवरों में कोई ऐसे हैं जो कि इंसानों को मारकर और सजाकर उस पर गर्व करते हों? शेर से लेकर सांप तक, बहुत से प्राणियों के बारे में जानकारों का यह मानना है वे इंसानों को तभी नुकसान पहुंचाते हैं जब इंसान उनके लिए खतरा बन जाते हैं। इंसानों ने आज पूरी धरती पर जानवरों की बसाहट की जगह पर खुद कब्जा कर लिया, और वे जंगली जानवर बेघर कर दिए गए, इसलिए जगह-जगह उनका इंसानों से सामना होते रहता है।
इंसानों ने बड़े-बड़े समुंदरों को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया, और वहां के प्राणियों की जिंदगी पर खतरा बन गए। आसमान में इतना प्रदूषण फैला दिया, पेड़ों को इस हद तक काट दिया कि पंछियों का जिंदा रहना मुश्किल हो गया। चारों तरफ अपने रसायनों को इंसानों ने इतना फैलाया कि खुद इंसानों का जीना हराम हो गया और बाकी प्राणियों को तो इंसान ने इस रफ्तार से खत्म किया है कि तमाम वैज्ञानिक हैरान हैं। हर दिन धरती से प्राणियों और वनस्पतियों की इतनी किस्में खत्म हो रही हैं कि बड़े-बड़े केलकुलेटर हिसाब न रख पाएं।
आज जब कोरोना की दहशत में धरती लॉकडाऊन के चलते हुए एक बार फिर सांस ले पा रही है, तो हजारों ऐसे कार्टून बने कि जानवर और पंछी क्या महसूस कर रहे हैं, और हजारों ऐसी तस्वीरें छपीं कि शहरों के सूनी सड़कों पर आसपास के जंगलों के प्राणी आकर किस तरह एक बार फिर अपने इलाके पर अपना कब्जा जमा सके। आज एक बार फिर केरल की इस हथिनी की ऐसी भयानक हिंसक हत्या के बाद कुछ लोग सोशल मीडिया पर यह बात भी लिख रहे हैं कि धरती से अगर मानव प्रजाति पूरी तरह खत्म हो जाए, तो उससे धरती का क्या-क्या भला होगा।
हमने भी कुछ हफ्ते पहले इसी जगह यह बात लिखी थी कि इंसानों के बिना धरती एक बेहतर ग्रह बन जाएगी। इंसानों ने जिस रफ्तार से एक इतने संपन्न, इतने खूबसूरत, और इतने कामयाब कुदरत वाले ग्रह को खत्म कर दिया है, उससे लगता है कि उन्होंने धरती के इस गोले को भी एक गर्भवती हथिनी की तरह ही बर्बाद किया है।
इंसानों को अपनी भाषाओं से बेइंसाफी और बदमाशी को हटाना चाहिए। जब भी हम किसी दूसरे प्राणी को हमारी अपनी खामियों की मिसाल की तरह इस्तेमाल करते हैं, हम अपनी खामियों की जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं, और उन प्राणियों को ऐसी बुरी बातों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। भाषा से यह बेइंसाफी खत्म की जानी चाहिए क्योंकि इससे इंसानों की सुधरने की संभावना खत्म होती है।
दूसरी बात यह कि आज कोरोना की दहशत में लोगों को यह समझ आ गया कि उनके जीने के ढर्रे की वजह से धरती की कितनी बर्बादी हुई थी, और लोगों को लग रहा है कि जैसे कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर को किसी पिछली तारीख पर भी सेट किया जा सकता है, उसी तरह धरती पर इंसानी जिंदगी को भी सौ-दो सौ बरस पहले की तारीख पर सेट कर दिया जाना चाहिए, ताकि धरती भी जिंदा रह सके।
अपनी भाषा के साथ-साथ अपने ढर्रे पर भी इंसानों को सोचना चाहिए क्योंकि न सोचने का एक नतीजा यह भी हो सकता है कि धरती पर कुदरत कोरोना के साथ जीना बेहतर समझे, बजाय इंसानों के साथ जीने के। केरल में जिस तरह एक गर्भवती हथिनी को मारा गया है, उसके पेट के भ्रूण की तस्वीर देखने पर नाजुक दिलों वाले लोगों का बर्दाश्त जवाब दे जाएगा, उसे लेकर इंसानों को अपने बारे में सोचना चाहिए कि क्या धरती पर उनसे अधिक कमीनी नस्ल किसी भी दूसरे प्राणी की है?
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