जवाहरलाल नेहरू 65 साल बाद भी हिंदुस्तान की स्मृतियों में क्यों ज़िंदा है, नेहरू की इंदौर यात्रा में उनसे रुबरु होने एक झलक को याद कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग
इंदौर … कोई पैसठ साल अब हो गए होंगे। पंडितजी एक खुली कार में बैठकर इंदौर में हमारे बहुत ही पुराने घर के ठीक सामने से निकल रहे थे। हम तब आज के सबसे व्यस्त आर एन टी मार्ग पर रहते थे जो उस समय का वी आई पी रास्ता भी था।नेहरू जी की कार धीमे-धीमे चल रही थी। सड़क के दोनों ओर हज़ारों लोग खड़े उनका अभिवादन कर रहे थे।
मैं अचानक भीड़ को चीरता हुआ उनकी कार के पीछे लटक गया और बार-बार उनसे हाथ मिलाने की प्रार्थना करता रहा।किसी सुरक्षा कर्मी ने न तो कोई डंडा चलाया और न ही मेरा हाथ खींचकर कार से अलग किया।थोड़ी देर बाद कार की गति तेज होने लगी और मैं स्वयं ही छिटक कर अलग हो गया। पर मेरे लिए यह काफ़ी नहीं था।
मैं बाद में रेज़िडेन्सी कोठी पहुँच गया जहाँ वे ठहरे हुए थे और लोगों से मिल रहे थे। एक मित्र के साथ मैं भी सबकी नज़रों से बचता हुआ चुपचाप उस हाल में पहुँच गया जहाँ नेहरू जी कई बड़े-बड़े लोगों के साथ उपस्थित थे।
मैं मित्र के साथ उनके नज़दीक पहुँचकर खड़ा हो गया। मेरे लिए इतना ही काफ़ी था।अगली सुबह एक स्थानीय अख़बार में उनके साथ वाला फ़ोटो भी कई और चित्रों के बीच छप गया।अख़बार शायद जागरण था।वह अब बंद हो चुका है।
फ़ोटोग्राफ़र काफ़ी नामी व्यक्ति थे।वे अब नहीं रहे।उन्हें तलाशते हुए उनके स्टूडियो पहुँच गए जो कि काफ़ी दूर खातीपूरा क्षेत्र में था।उनसे प्रार्थना की कि फ़ोटो की एक कॉपी दे दें। पर मेरे पास उसे ख़रीदने के पैसे नहीं थे। घर चले आए।
फ़ोटो आज पास में नहीं है तो भी क्या हुआ ! स्मृतियों में वह दृश्य इतने सालों के बाद भी क़ैद है और इस उम्र में छोड़कर जाने के लिए इतनी ‘धरोहर’ भी पर्याप्त है।कई लोग इतने से भी ईर्ष्या कर सकते हैं।उनकी स्मृति को
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