वासनिक की आमद भी कांग्रेस को करंट देने में नाकाम…!

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कोरोना में जनता की तरफ से आवाज उठाने के साथ- साथ सियासत में भी भाजपा से पिछड़ रही है कांग्रेस, 24 सीटों पर उपचुनाव के लिए भाजपा से बहुत पीछे कांग्रेस

अभिषेक कानूनगो

इंदौर। कांग्रेस ने संकटमोचक के रूप में महाराष्ट्र के कद्दावर नेता मुकुल वासनिक को मध्यप्रदेश की कमान सौंप दी है। पर मध्यप्रदेश कांग्रेस की तासीर और तकदीर बदलती नहीं दिख रही। जिस तरह दीपक बावरिया संगठन को मुश्किल वक्त में एकजुट करने में नाकाम रहे थे अब वैसा ही कुछ मुकुल वासनिक के साथ भी नजर आ रहा है। प्रदेश में कहीं उनके होने की कोई धमक नजर नहीं आ रही।

कोरोनावायरस के चलते वासनिक ने मध्यप्रदेश का रुख नहीं किया। वाजिब है। पर संगठन को वे ऑनलाइन बैठकों और अपने संदेशों के जरिये एक लाइन तो दे ही सकते थे। पर लगता है वासनिक भी पुराने कोंग्रेसियों की तरह वक्त के बाद लकीर पीटने की आदत में ढल चुके हैं। वे भी सामान्य नजरिये से सोच रहे होंगे, अभी क्या करें, लॉकडाउन के बाद सोचेंगे।

प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। ऐसे में कांग्रेस की ये धीमी रफ़्तार चौंकाती है। चुनाव को लेकर जमीनी तौर पर कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही। दिख रही है, तो सिर्फ जीतू पटवारी के बयानों और कमलनाथ की प्रेस कांफ्रेंस में। खासकर उन 17 सीटों पर जो ग्वालियर चंबल अंचल की है। इस बेल्ट में कांग्रेस कहीं नहीं है। जबकि यहां पर सबसे बड़ा चेहरा सिंधिया हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ही यहां कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे।

इन इलाकों में कोरोना वायरस के चलते आम आदमी की तकलीफों को सुनने के लिए भी कांग्रेस का कोई चेहरा नहीं है। न ही कांग्रेस ने किसी को अब तक यहां भेजा। यही हाल बदनावर और सांवेर का भी है। सिर्फ आगर और जोरा दो ऐसी जगह है जहां पर कांग्रेस की तरफ से जरूरतमंदों को मदद पहुंच रही है। ऐसे में कांग्रेस किस मुंह से कोरोना की नाकामयाबी पर शिवराज सरकार को चुनाव में घेर सकेगी।

इसके उलट भाजपा ने 24 सीटों पर अपनी तैयारी दिखाते हुए कई जिला और शहर अध्यक्षों की नियुक्तियां कर डाली। असंतुष्ट नेताओं को मनाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और सुहास भगत लगातार कांग्रेसियों को भाजपाई चोला पहनाने में जुटे हैं। अपने हाथों से सत्ता खो देने वाली कांग्रेस का इतिहास रहा है जो भी प्रभारी बनकर यहां आता है वह सिर्फ रबर स्टैंप बनकर रह जाता है।

मुकुल वासनिक रबर स्टैम्प नहीं रहेंगे। ऐसी घोषणा राजनीतिक पंडितों ने की थी। पर कमलनाथ के कद के आगे वे कमजोर दिख रहे हैं। कांग्रेस के पिछड़ने का बड़ा कारण यह भी है कि चंबल क्षेत्र के उनके सबसे मजबूत नेता का भाजपा में चले जाने के बाद वहां संगठन लगातार कमजोर हो रहा है। ग्वालियर चम्बल में कांग्रेस को तो उम्मीदवारों की तलाश है ही। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी भी अपने दम पर ताल ठोंकने की घोषणा कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के लिए भी समय चुनौती भरा है। प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा संगठन में युवा नेतृत्व को मौका दे रहे हैं जिसका विरोध भी हो रहा है। मंत्रिमंडल में देरी ही एक कारण है। फिर भी भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ही बैकफुट पर नजर आ रही है। 17 सीटों पर उम्मीदवारों की कमी और पूरे क्षेत्र में एक बड़ा चेहरा अब तक कांग्रेस को नहीं मिल पाया है। जिस तरह से 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने लड़ा था उस तरह का जोश भी अब कार्यकर्ताओं में नजर नहीं आता। मुकुल वासनिक भोपाल से संवाद बनाने में जितनी देरी करेंगे उतनी उनकी और कांग्रेस दोनों की पकड़ कमजोर होगी।

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