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दिल्ली। आठ महीने पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की थी. एजेंसी ने आरोप लगाया था कि उन्होंने धोखाधड़ी से नेशनल हेराल्ड अख़बार की प्रकाशक कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) पर कब्ज़ा किया. हालांकि, अदालत ने इस चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया।
कोर्ट का कहना था कि ईडी का मनी लॉन्ड्रिंग मामला किसी एफआईआर पर आधारित नहीं है, जबकि आम तौर पर ऐसे मामलों में पहले किसी दूसरी जांच एजेंसी की एफआईआर ज़रूरी होती है. इस खबर से संबंधित यह लेख स्क्रॉल द्वारा प्रकाशित किया गया है. इस रिपोर्ट को तैयार करते समय उस लेख के कुछ अंशों और जानकारियों का उपयोग किया गया है.
कांग्रेस के क़ानूनी सलाहकारों का कहना है कि नेशनल हेराल्ड मामला असामान्य है, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग क़ानून के तहत ईडी तभी जांच शुरू कर सकती है जब किसी “निर्धारित अपराध” में पहले से केस दर्ज हो. उदाहरण के तौर पर, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में ईडी की जांच रांची पुलिस की एफआईआर पर आधारित थी
नेशनल हेराल्ड मामले में न सिर्फ ईडी ने बिना एफआईआर के जांच शुरू की, बल्कि अप्रैल में उसने दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में स्थित अख़बार की 661 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर कब्ज़ा लेने की कोशिश भी की. इसके विरोध में कांग्रेस ने देशभर में प्रदर्शन किए थे.
मंगलवार को अदालत के फ़ैसले के बाद कांग्रेस ने इसे अपनी जीत बताया. पार्टी ने बयान जारी कर कहा कि “सच की जीत हुई है और सच हमेशा जीतेगा.” कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार लगातार गांधी परिवार को निशाना बना रही है. दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ईडी और अन्य एजेंसियों को बीजेपी की “निजी सेना” बताया. ईडी ने अब तक अदालत के फ़ैसले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
नेशनल हेराल्ड विवाद की शुरुआत फरवरी 2013 में हुई थी, जब बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली की एक अदालत में शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने आरोप लगाया कि गांधी परिवार ने हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्तियों पर ग़लत तरीक़े से नियंत्रण हासिल किया और इससे एजेएल के शेयरधारकों और कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा.
एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की स्थापना 1937 में लखनऊ में हुई थी, ताकि जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेस नेता अपने विचारों को जनता तक पहुंचा सकें. कंपनी ने अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड, उर्दू में क़ौमी आवाज़ और हिंदी में नवजीवन प्रकाशित किया. आज़ादी के बाद सरकारों ने इसके संचालन के लिए ज़मीन भी लीज़ पर दी.
समय के साथ कंपनी आर्थिक संकट में आ गई और कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया. तब कांग्रेस ने लगभग 90 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया. इसके बावजूद 2008 में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद करना पड़ा. 2010 में यंग इंडियन नाम की एक गैर-लाभकारी कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी निदेशक बने. 2011 में इस कंपनी ने कांग्रेस का 90 करोड़ का क़र्ज़ मात्र 50 लाख रुपये में लेकर उसे शेयरों में बदल दिया. इससे यंग इंडियन को एजेएल पर नियंत्रण मिला.
स्वामी का आरोप था कि इस प्रक्रिया में धोखाधड़ी हुई. हालांकि 2021 तक गांधी परिवार के ख़िलाफ़ कोई बड़ी जांच नहीं हुई. इसके बाद ईडी ने मामला संभाला और 2022 में सोनिया और राहुल गांधी से लंबी पूछताछ की. 2023 में 751 करोड़ रुपये की संपत्तियां अटैच की गईं और अप्रैल में चार्जशीट दाखिल की गई.
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि इस पूरे मामले में न तो कोई पैसा इधर-उधर हुआ और न ही संपत्तियां गांधी परिवार को ट्रांसफर की गईं. एजेएल आज भी अपनी संपत्तियों से होने वाली आय से अख़बार चला रहा है और कर्मचारियों को भुगतान कर रहा है. पार्टी का कहना है कि इसका मक़सद केवल एक विरासत संस्थान को पुनर्जीवित करना था.
कांग्रेस ने इस कार्रवाई की तुलना आज़ादी के आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा नेशनल हेराल्ड पर लगाए गए प्रतिबंध से भी की है. राहुल गांधी ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर ईडी की पूछताछ का ज़िक्र किया है. वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि इस मामले में कोई ठोस आधार नहीं है.
हालांकि मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. अदालत ने ईडी को अगली सुनवाई में अपनी दलीलें रखने की अनुमति दी है. कांग्रेस के क़ानूनी विभाग का कहना है कि वह अब केस ख़ारिज कराने की कोशिश करेगा. वहीं, अक्टूबर में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक नई एफआईआर के बाद यह अटकलें भी हैं कि ईडी इसी आधार पर दोबारा जांच शुरू कर सकती है और अदालत के फैसले को चुनौती दे सकती है.
फिलहाल कांग्रेस का दावा है कि अदालत के आदेश से उसका रुख सही साबित हुआ है. मंगलवार को नेशनल हेराल्ड की वेबसाइट पर इस फैसले से जुड़ी कई खबरें छपीं, जिनकी सुर्खी में तीन शब्द खास तौर पर उभरे, “सच की जीत हुई. ”
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