लालू प्रसाद यादव के लिए प्राण जाए पर वचन न जाए जैसा दोस्ताना निभाने वाले रघुवंश बाबू के जाने से राजद के सारे चुनावी समीकरण अभी कमजोर हो गए
पटना। लालू प्रसाद यादव के संकटमोचक दोस्त रघुवंश बाबू ने राजद से नाता तोड़ लिया। लालू को उन्होंने लिखा-अब,क्षमा करें। जवाब में लालू ने कहा आप परिवार हैं, कहीं नहीं जा रहे हैं। रघुवंश बाबू अपने नाम के अनुरूप रघुकुल रीत सरीखे वयक्तित्व हैं। जो कहते हैं, वो निभाते हैं।
रघुवंश बाबू ने भी प्राण जाए पर वचन न जाए कि तर्ज पर हर वक्त लालू का साथ दिया।
यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का ऑफर मिला, पर लालू यादव के चलते उन्होंने वो भी ठुकरा दिया। वे पिछड़ों और मुस्लिमों की पार्टी राजद के सबसे बड़े सवर्ण चेहरा भी हैं। लालू यादव से इस गणित के प्रोफ़ेसर की दोस्ती जेपी आंदोलन के दौरान बांकीपुर जेल में हुई। ये दोस्ताना करीब 45 साल से कायम हैं।
गणित के प्रोफ़ेसर रहे कभी लालू से अपने रिश्तों में फायदे नुकसान का गुणा भाग नहीं किया। वे एक सरल रेखा की तरह लालू के साथ खड़े रहे। आज वे लालू से अलग हुए तो इस गणित को हर कोई बुझना चाहता है। आखिर प्रोफ़ेसर रघुवंश ने ऐसा क्यों किया ?
बाहुबली रामसिंह की राजद में एंट्री के अलावा लालू के बेटों द्वारा उनकी लगातार उपेक्षा को भी इसका कारण बताया जा रहा है। तेजप्रताप यादव तो उन्हें बिना पेंदे का लौटा तक कह चुके हैं। रघुवंश बाबू एक गंभीर नेता हैं। वे बच्चो से नहीं उनके पिता से ही बात करना पसंद करते हैं।
पांच साल तक गणित पढ़ाया
रघुवंश प्रसाद सिंह राजनेता बाद में बने। और प्रोफेसर पहले। बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने साल 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया। गणित के प्रोफेसर के तौर पर डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वह जेल भी गए। पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद टीचर्स मूवमेंट के दौरान जेल गए। उसके बाद जब वो कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए तब साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल चले गए. इसके बाद तो उनके जेल आने जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया।
आपतकाल में नौकरी गई, फिर आंदोलन में ही जीवन लगा दिया
रघुवंश बाबू की मानें तो इस दौरान वह करीब 11 बार जेल गए। इसमें साल 1974 यानि जेपी के आंदोलन में रघुवंश प्रसाद सिंह ने खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और फिर दोबारा से उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। इन दिनों केंद्र और बिहार में कांग्रेस पार्टी की हुकूमत थी। इमरजेंसी के दौरान जब बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी, तो बिहार सरकार ने जेल में बंद रघुवंश प्रसाद सिंह को प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया।. सरकार के इस फैसले के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा और फिर कर्पूरी ठाकुर और जय प्रकाश नारायण के रास्ते पर तेजी से चल पड़े।
जेल में बने दोनों दोस्त
साल 1974 में जेपी मूवमेंट के समय में मीसा एक्ट के तहत रघुवंश प्रसाद की गिरफ्तारी हुई और वो मुजफ्फरपुर जेल में बंद किए गए। उसी समय उन्हें मुजफ्फरपुर से पटना के बांकीपुर जेल में ट्रांसफर किया गया। यहां उनकी पहली बार लालू यादव से मुलाकात हुई। उस दौरान लालू पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट लीडर थे और जेपी मूवमेंट में काफी सक्रिय थे। इसी बांकीपुर जेल में लालू-रघुवंश की मुलाकात हुई। तभी से लालू-रघुवंश में दोस्ती शुरू हो गई. तब से लेकर आज तक कई बार दोनों में टकराव हुआ पर वे रहे साथ ही।
लालू से दोस्ती के कारण ठुकरा दिया ऑफर
रघुवंश प्रसाद सिंह के मुताबिक यूपीए में भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था, लेकिन लालू यादव की दोस्ती की वजह से ही उन्होंने मनमोहन सिंह के मंत्री पद के ऑफर को ठुकरा दिया। उसके बाद से आज तक रघुवंश प्रसाद सिंह अपनी दोस्ती के खातिर और लालू की खुशी के लिए समझौता ही करते रहे।