धांधली की पराकाष्ठा, आयोग ने जिस पते पर 500 वोटर बताये वहां कोई घर ही नहीं
पंकज मुकाती (संपादक politicswala )
उलटा चोर कोतवाल को डांटे। चोरी और सीनाजोरी। चोर के हाथ में चाभी। ऐसी तमाम कहावतें इस वक्त चुनाव आयोग पर लागू होती दिख रही है।
आयोग ने राहुल गांधी से ही माफ़ी की मांग कर डाली। मानो राहुल गांधी ने वोट चोरी पर सवाल उठाकर गुनाह कर दिया।
सवाल ही तो पूछा है ? आपका काम है जवाब देना। पर जो आयोग खुद कठघरे में है वही सवाल उठाने वाले पर सवाल उठा रहा है। चुनाव आयोग
कह रहा है राहुल गांधी भरम फैला रहे हैं। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। क्या वे सत्ता के हिसाब से ठीक ठाक चल रहा है यही कहने की कोशिश
कर रहे हैं।
एक तरह से चुनाव आयोग बेशर्मी से सीना ठोंककर कह रहा है जो बने कर लो। हम नहीं सुधरेंगे।
इसके पीछे बड़ा कारण यही है कि मोदी सरकार ने 2023 में कानून में संसोधन कर ये निश्चित कर दिया कि चुनाव आयोग पर कोई आपराधिक मांमला
नहीं कर सकते। यानी चुनाव आयोग बेलगाम है। वो अपनी मर्जी का मालिक है जो सवाल उठाएगा उसको ही जेल जाना पड़ेगा। उसको ही सबूत जुटाने होंगे,
मानो सवाल उठाना गुनाह है।
आयोग तमाम दलील दे वोटर लिस्ट पर। सूची की त्रुटि को सामान्य त्रुटि बताये। पर कुछ बातें उसको उलझाती है। ये लड़ाई चुनाव आयोग की छवि को मटियामेट करेगी।
अब इस मामले को ही देखिये। इसमें आयोग क्या कहेगा ? बिहार के पिपरा विधानसभा क्षेत्र के गलिमपुर गांव के “एक घर” में अलग-अलग परिवारों, जातियों और समुदायों के 509 मतदाताओं को एक साथ रह रहे हैं। आयोग की सूची के मुताबिक जो पता बताया जा रहा है वहां कोई घर ही नहीं है। फिर आयोग ने ये गिनती कहाँ से चुरा ली।
इसी गांव में एक और घरमें आयोग ने 459 लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकृत कर दिय। ये घर भी है ही नहीं। . यह कोई एक बार की गलती नहीं है, बल्कि बिहार से शुरू होकर पूरे देश के मतदाता डेटाबेस को संशोधित करने के चुनाव आयोग के अभूतपूर्व प्रयास में हुई गड़बड़ी है,
बिहार के तीन विधानसभा क्षेत्रों—पिपरा, बगहा और मोतिहारी—में 3,590 ऐसे मामले सामने आए, जहां चुनाव आयोग ने 20 या उससे ज्यादा लोगों को एक ही पते पर रजिस्टर कर दिया. कई बार तो घर ही नहीं हैं। हैरत की बात है कि इन तीन क्षेत्रों में 80,000 से अधिक मतदाताओं को इसी तरह पंजीकृत किया गया है।
आमतौर पर 20-50 लोगों को एक ही पते पर दर्ज कर दिया गया. ये पते सामान्य नंबर, गांव या वार्ड के नाम तक सीमित थे. बगहा में 9 ऐसे घर मिले, जिनमें 100 से अधिक मतदाताओं को एक ही पते पर रजिस्टर किया गया।
मोतिहारी में तीन ऐसे मामले सामने आए, जिनमें 100 से अधिक मतदाता गैर-मौजूद पते पर रजिस्टर थे। सबसे बड़ा मामला एक घर का है, जहां, चुनाव आयोग की नई मतदाता सूची के हिसाब से, 294 मतदाता विभिन्न परिवार, जाति और समुदाय के हैं. पिपरा, मोतिहारी और बगहा विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 10 लाख मतदाता पंजीकृत हैं।
इसका मतलब यह हो सकता है कि लगभग आठ प्रतिशत मतदाता संदिग्ध पते पर दर्ज हैं. यह सारा मामला 30 दिनों की उस मुहिम का नतीजा है, जो आयोग ने बिहार के मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करने के लिए चलाई थी. और, दावा किया गया था कि राज्य की मतदाता सूची का आगामी चुनावों से पहले ‘शुद्धिकरण’ कर दिया जाएगा।
यानी जो घर मौजूद ही नहीं है आयोग ने उसमे भी 500 मतदाता दर्शा दिए। ये कहाँ से आये। अब आयोग इसमें किससे कहेगा माफ़ी मांगिये। आखिर ये फर्जी मतदाता नहीं हैं तो क्या है। ये वोटर किधर रहते हैं। यानी आयोग की सूची सिर्फ मतदाता की हेरफेर नहीं कर रही है। जो मकान नहीं है, घर नहीं है उनको भी पैदा कर रही है।
महाभियोग चले या कुछ चले पर लोकतंत्र के इस खतरे पर बात तो होनी ही चाहिए। आखिर कब तक SIR (स्पेशल इंटेंस रिपोर्ट ) के नाम पर सत्ता के सामने
आयोग सर, सर करता रहेगा।
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