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क्रूर और तुनकमिज़ाज ट्रम्प का सबक ईरान सीखे न सीखे, दुनिया के लिए बहुत सारे सबक

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निधीश त्यागी (बीबीसी इंडिया के पूर्व संपादक )

यह सब कुछ एक “रियलिटी टीवी शो” जैसा है, जिसमें ट्रम्प चाहते हैं उनको किसी सुपरहीरो की तरह परोसा और देखा जाए. उनके लिए एक विशाल बम गिराना और दुनिया को हिला देना, शांत कूटनीति से कहीं ज़्यादा नाटकीय और आकर्षक है

बम गिराने के बाद अमेरिका पता नहीं ईरान को कोई सबक सिखा पाया या नहीं, डोनल्ड ट्रम्प ने एक बात फिर साबित कर दी है कि उनके शब्दों, उनकी नीयत, उनके फैसलों और उनके कामों पर यकीन नहीं किया जा सकता. यह सबक वह दुनिया को बार बार सिखाना चाह रहे हैं, पर दुनिया अभी भी उनके ही हांके से चल रही है. और खुद ट्रम्प एक अस्थिर जिद्दी बदमिजाज बच्चे की तरह एक के बाद एक हर दिन एक नई उटपटांग हरकत कर रहे हैं, जिसके बारे में न उनकी सरकार, न दुनिया को समझ में आ रहा है कि उसका क्या करें. हम अप्रत्याशित अंतरविरोधों के दौर में हैं.

शनिवार को डोनल्ड ट्रम्प को शांति का नोबेल चाहिए था. रविवार अल सुबह उन्होंने ईरान पर बम गिरा दिये. किस वजह से? कल तक उनकी राष्ट्रीय इंटेलिजेंस की प्रभारी तुलसी गबार्ड अमेरिका को बता रही थीं, कि ईरान अभी एटमी हथियार नही बनाने वाला. अब उन पर उनके राष्ट्रपति को ही यकीन नहीं. यकायक दुनिया को कई साल पहले की उस दलील की याद आ रही है जब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पास डब्ल्यूएमडी (सामूहिक नरसंहार के हथियार) होेने की बात कही जा रही थी, जो नहीं निकले. क्रूर और तुनकमिज़ाज ट्रम्प का सबक ईरान सीखे न सीखे, दुनिया के लिए बहुत सारे सबक

सवाल सिर्फ ईरान का नहीं है. कि वह इसकी जवाबी कार्रवाई किस तरह से, कितनी करता है? पर इस एक हरकत का पूरी दुनिया पर जो असर हो रहा है, उसे देखने, समझने और गंभीरता से लेने की बात है. अमेरिका ने खुद जिन भी जगहों पर जंग छेड़ी है, उसकी कीमत खुद ज्यादा चुकाई है और यह कह पाना मुश्किल है कि उन युद्धों को उसने जीता है. चाहे अफगानिस्तान हो, वियतनाम हो, इराक हो, सब जगह उसने तबाही तो बहुत मचाई पर कोई बेहतर समाधान की तरफ नहीं ले जा पाया.

ईरान के पास अभी विकल्प हैं. क्या ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर देगा? दुनिया का लगभग 20% समुद्री तेल व्यापार इसी रास्ते से होता है. इसे बंद करने का मतलब होगा वैश्विक अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव और तेल की कीमतों में भारी उछाल. क्या ईरान मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला करेगा? इस क्षेत्र में 30,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं, और उन पर कोई भी हमला इस संघर्ष को सीधे अमेरिका-ईरान युद्ध में बदल देगा.

क्या ईरान साइबर हमले और अपने प्रॉक्सी समूहों का इस्तेमाल करेगा? हालांकि हिज़्बुल्लाह जैसे प्रॉक्सी समूह हाल के इज़राइली हमलों में कमजोर हुए हैं, फिर भी ईरान के पास दुनिया भर में अस्थिरता पैदा करने की क्षमता है. ईरानी शासन पर दो तरफा दबाव है. अगर वह कमज़ोर दिखता है, तो देश के भीतर ही उसका तख्तापलट हो सकता है. और अगर वह बहुत आक्रामक प्रतिक्रिया देता है, तो उसे अमेरिका के साथ सीधे युद्ध का सामना करना पड़ेगा.

ट्रम्प की इस हरकत से दुनिया की जमीन उन यकीनों पर से खिसक रही है, जहां शांति, स्थिरता, बाजार, कायदे, नियम के आधार पर दुनिया चलती थी. लोकतांत्रिक देश जिस नैतिकता के आधार पर दुनिया की व्यवस्था को चलाने और तय करने की खुदमुख्तारी करते थे, वह अपनी गरिमा और सम्मान खो चुकी है. इस पूरे प्रकरण का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी वैश्विक व्यवस्था की नींव को हिला दिया है.

यह हमला अंतर्राष्ट्रीय कानून का खुला उल्लंघन है. किसी देश पर हमला करने का कानूनी आधार तभी बनता है जब उससे “तत्काल खतरा” हो. लेकिन ईरान को परमाणु हथियार बनाने में अभी एक साल से ज़्यादा का समय लग सकता था.

अब दुनिया “जिसकी लाठी, उसकी भैंस” के सिद्धांत पर चल रही है. संयुक्त राष्ट्र (UN) पूरी तरह से अप्रासंगिक नज़र आ रहा है. जब दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश, जो सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, एकतरफा कार्रवाई करता है और ब्रिटेन और फ्रांस जैसे अन्य शक्तिशाली देश उसकी आलोचना करने के बजाय उसके पीछे खड़े हो जाते हैं, तो यह अंतर्राष्ट्रीय कानून के ताबूत में आखिरी कील जैसा लगता है. ट्रम्प ने जी7 देशों में होते हुए भी यह बता दिया कि उनकी प्रासंगिकता नहीं है. यही वह अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो के लिए भी करते रहे हैं.

यह रेखांकित करना भी जरूरी है कि यूरोप और अमेरिका में ज्यादातर लोग न जंग के पक्ष में हैं, और उनकी सरकारें हमलावरों के पक्ष में हैं. और इसलिए इस तरह की खतरनाक बेवकूफियां कर दरअसल लोक और तंत्र के बीच दूरियां पैदा होती जा रही है. इस तरह की अराजकता अब दुनिया में कहीं भी कोई भी कर सकता है. अगर ईरान पर इस तरह बम गिराना सही है, तो रूस की यूक्रेन में कार्रवाई और चीन की ताईवान में किस आधार पर गलत ठहराई जा सकती है. हालांकि सबको पता है कि यह गलत है. पर गलत कौन ठहराएगा?

इसका असर वैश्विक होगा. चीन इसे कैसे देखेगा? क्या इससे चीन को ताइवान पर हमला करने का प्रोत्साहन मिलेगा? अमेरिका अब दो मोर्चों (यूक्रेन और मध्य पूर्व) पर उलझ गया है. साथ ही, इस हमले के बाद पश्चिम ने अपना नैतिक अधिकार खो दिया है. चीन अब यह तर्क दे सकता है कि अगर अमेरिका अपने हितों के लिए एकतरफा कार्रवाई कर सकता है, तो वह क्यों नहीं कर सकता? रूस पहले ही यूक्रेन पर हमले के लिए इसी तरह के “अस्तित्व के खतरे” का तर्क दे चुका है. अब अमेरिका ने भी वही किया है. यह “फोर्डो केस” भविष्य में किसी भी शक्तिशाली देश के लिए अपने मनमाने हमलों को सही ठहराने का एक बहाना बन जाएगा.

यह सब कुछ एक “रियलिटी टीवी शो” जैसा है, जिसमें ट्रम्प चाहते हैं उनको किसी सुपरहीरो की तरह परोसा और देखा जाए. उनके लिए एक विशाल बम गिराना और दुनिया को हिला देना, शांत कूटनीति से कहीं ज़्यादा नाटकीय और आकर्षक है. यह विरोधाभास दिखाता है कि शायद रणनीति से ज़्यादा, उनकी अपनी छवि और सुर्खियों में बने रहने की भूख इस फैसले के पीछे है. उनके समर्थक, जो कल तक अमेरिका को विदेशी युद्धों से दूर रखने की वकालत कर रहे थे, आज उनके इस कदम को सही ठहरा रहे हैं. यह एक ऐसे नेता की तस्वीर पेश करता है जो तर्क नहीं, बल्कि एक पंथ की तरह अपने अनुयायियों को नियंत्रित करता है.

एक सटक चुके राष्ट्रपति का अमेरिका और पूरी दुनिया क्या कर सकती है, यह सोचने की बात है.ट्रम्प के एक फैसले ने न केवल मध्य पूर्व को आग में झोंक दिया है, बल्कि उस पूरी वैश्विक व्यवस्था को भी चुनौती दी है जो दशकों से शांति और स्थिरता की गारंटी देती आई है.ट्रम्प का अमेरिका हमलावर देशों की तरफ है. चाहे इजराइल हो या रूस. वह उन देशों को नीचा दिखाना चाह रहा है, जिन पर हमला हुआ है. और उन लोगों के पक्ष में है, जो लगातार सैन्य हमले और नरसंहार कर रहे हैं. हालांकि इसकी कीमत कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा उन सारे लोगों की जान से लगाया जा सकता है, जो गाजा और ईरान के
लोगों ने दी है, आर्थिक और राजनीतिक कीमतें तो हैं हीदुनिया एक बेहद खतरनाक और अप्रत्याशित दौर में प्रवेश कर चुकी है.

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं कमजोर हो चुकी हैं, गठबंधन बिखर रहे हैं और धौंसपट्टी का दौर लौट आया है. यह सिर्फ एक सैन्य हमला नहीं है, बल्कि उस दुनिया के अंत की शुरुआत हो सकती है जिसे हम अब तक जानते थे. आने वाले दिन, महीने और साल यह तय करेंगे कि यह संकट एक विनाशकारी युद्ध की ओर ले जाता है या दुनिया के नेता इस अराजकता से बाहर निकलने का कोई रास्ता खोज पाते हैं.
ट्रम्प को नोबेल का शांति पुरस्कार दिलवाने की सिफारिश पाकिस्तान ने की थी. अब उसने इसी बमबारी की खुली निंदा की है. भारत ने निंदा नहीं की, बस चिंता जताई है.

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