कांग्रेस में गुरुवार को जो हुआ, उसमें कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है। ये रस्म है, जो कांग्रेस नेता हर चुनाव में टिकट वितरण के अंतिम दौर में निभाते हैं। इसके बिना कांग्रेस का चुनावी कर्मकांड पूरा ही नहीं होता। पराजय-वरण यज्ञ का हवन कुंड तैयार है। इसमें पहली आहुति दी जा चुकी है। दिग्वजिय-ज्योतिरादित्य ने स्वाहा का मंत्र फूंक दिया है। अब प्रदेश के कांग्रेसी इस जाप का जोर-जोर से उच्चारण करेंगे। पहले नेता के समर्थकों, फिर उनके समर्थकों और फिर पूरी पार्टी में ये स्वर फैलता जायेगा। टिकट बंटवारे और नामांकन तक ये हवन कुंड गुस्से, बगावत, प्रदर्शन, अपशब्द, भितरघात, दफ्तरों में तोड़फोड़, नेताओं का घेराव, खरीद-फरोख्त, निर्दलियों को लड़वाने की आहुतियों से पूरी तरह भर जायेगा। ये सारी सामग्रियां मिलकर पराजय-वरण यज्ञ को संपूर्ण कर देंगी। अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी को हराकर हवन की भस्म ख़ुशी से माथे, जिस्म पर लपेटकर पूरे पांच साल तक घूमते रहेंगे। यही कांग्रेस है.
दिग्विजय और सिंधिया में राहुल गांधी के सामने टिकट बंदवारे पर विवाद हुआ। तीन सदस्यों की कमेटी अब इसको सुलझाएगी? क्या इस कमेटी का कद राहुल से बड़ा है? क्यों नहीं उन्होंने तत्काल मामला निपटा दिया। दरअसल वे आंतरिक लोकतंत्र के नाम पर अक्सर ही ऐसे बड़े मुद्दों से किनारा करने के आदि हो चुके हैं। इसकी पटकथा खुद कमलनाथ ने अनजाने में लिख दी। जिस दिन उन्होंने स्क्रीनिंग कमेटी में दिग्विजय का नाम जुड़वाया, तभी ये नतीजा संभावित था। सिंधिया न होते कोई और होता, पर होना यही था। दिग्विजय वहीं जोर आजमाइश करते हैं, जहां उन्हें सत्ता की खुशबू आती है। वे 1993 दोहराने का सपना देख रहे हैं। ज्यादा समर्थकों को लाकर वे कमलनाथ, सिंधिया दोनों को दरकिनार कर फिर सत्ता की शपथ की तैयारी में हैं। वे प्रचार से दूर रहकर भी मीडिया में बने रहने का नुस्खा अपना रहे हैं। राहुल भोपाल आये तो कटआउट से दिग्विजय का फोटो गायब, राहुल इंदौर आये तो दिग्विजय का सोनिया को फर्जी पत्र सामने आया। वक्त का इससे बड़ा साधक आज भी कोई प्रदेश की रजनीति में नहीं है। खास ये कि सत्ता से खुद को निर्लिप्त बताने वाले इस राज-संन्यासी ने खुद उस फर्जी पत्र को ट्वीट करके वायरल भी किया । अब कांग्रेस बड़ी कार्रवाई करे नहीं तो हैशटैग दिग्विजय ही इस चुनाव में ट्रेंड करेगा।
अब बात करते हैं सिंधिया की। साल 2013 के चुनाव में भी टिकटों के लिए वे कई बैठकों में ऐसी ही आक्रामकता दिखा चुके हैं। तब उनका सामना तब के प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया से था। पूरे तीन साल तक भूरिया ने प्रदेश की धूल फांकी, चुनाव के दो महीने पहले राहुल ने सिंधिया का चेहरा आगे कर दिया। जाहिर है एक आदिवासी जमीनी नेता और एक विरासत वाले महाराजा के संघर्ष में हारना कांग्रेस को ही था। वही हुआ भी, पर अदृश्य रूप से उस वक्त भी सिंधिया का मुकाबला दिग्विजय से ही हुआ था।
कमलनाथ ने जिस तेजी से कांग्रेस को मुकाबले में आगे रखा है, उसे बकरार रखने के लिए उन्हें कुछ कड़े फैसले लेने चाहिए। आज जो हुआ वैसी स्थिति में उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई करना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस सिर्फ कुछ बड़े चेहरों की पार्टी ही बनी रहेगी।
जनता के बीच कांग्रेस की छवि बदलती दिख रही है, पर इस सूरत में तो शिवराज आसानी से साबित कर देंगे कि कांग्रेस में राजा और महाराजा की लड़ाई है, वहां जनता की सुनता कौन है..!