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दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अरावली पहाड़ियों की दी गई उस परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में स्वीकार किए जाने के बाद राजस्थान में व्यापक विरोध शुरू हो गया है। जिसमें अरावली शृंखला को केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले भू-भागों तक सीमित कर दिया गया है।
राजनीतिक नेताओं, पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और आम नागरिकों ने इसका कड़ा विरोध करते हुए चेतावनी दी है कि इस कदम के गंभीर पारिस्थितिक और आर्थिक परिणाम होंगे।
नई परिभाषा के तहत, राजस्थान में अरावली श्रृंखला का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियाँ शामिल हैं, अब संरक्षित श्रेणी का हिस्सा नहीं माना जाएगा.
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, राज्य की लगभग 1.6 लाख पहाड़ियों में से केवल 1,048 ही 100 मीटर की कसौटी पर खरी उतरती हैं. इसका मतलब है कि अधिकांश पहाड़ियों से विनियामक सुरक्षा कवच हट जाएगा.
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि अरावली में अधिकांश पहाड़ियों की ऊंचाई 30 से 80 मीटर के बीच है. इस परिभाषा से लगभग पूरी श्रृंखला ही स्वतः बाहर हो जाएगी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि नए खनन की अनुमति नहीं है, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि अवैध खनन बेरोकटोक जारी है. 2018 की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि राजस्थान में 25 प्रतिशत अरावली पहाड़ियाँ पहले ही नष्ट हो चुकी हैं.
इसी पृष्ठभूमि में, जयपुर के बापू नगर स्थित विनोबा ज्ञान मंदिर से ‘अरावली हेरिटेज पीपुल्स कैंपेन’ शुरू किया गया है. पीयूसीएल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने सरकार से इस ‘समान परिभाषा’ को रद्द करने का आग्रह किया है, जिसे उन्होंने भारत की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा बताया है.
कार्यकर्ताओं की मांग है कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में फैली अरावली श्रृंखला को ‘पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र’ घोषित किया जाए. ‘पीपल फॉर अरावली’ की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने कहा कि यह निर्णय खनन माफियाओं के हौसले बुलंद करेगा.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अरावली के विनाश से क्षेत्र में बारिश का पैटर्न बदल सकता है. यदि यह श्रृंखला नष्ट हो गई, तो मानसून की नमी पश्चिम की ओर पाकिस्तान की तरफ खिसक सकती है, जिससे राजस्थान में वर्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
700 किलोमीटर लंबी अरावली श्रृंखला का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान के 27 जिलों से होकर गुजरता है. यह पूर्वी राजस्थान की पारिस्थितिक रीढ़ है. चंबल, बनास, साहिबी, कांतली, गंभीर और मोरेल जैसी कई मौसमी नदियाँ अरावली से ही निकलती हैं. अरावली की चट्टानों में पानी सोखने की अद्भुत क्षमता होती है.
अध्ययनों के अनुसार, यह प्रति हेक्टेयर सालाना लगभग 20 लाख लीटर भूजल को रिचार्ज करने में मदद करती है. राजस्थान के लगभग 32 प्रमुख पेयजल जलाशय अरावली तंत्र पर निर्भर हैं. यहां की खेती और पशुपालन पूरी तरह से इन पहाड़ियों से निकलने वाली जलधाराओं पर आधारित है.जैसे-जैसे विरोध तेज हो रहा है, पर्यावरण समूहों ने इस परिभाषा की तत्काल समीक्षा की मांग की है, यह चेतावनी देते हुए कि राजस्थान की पारिस्थितिकी, जल सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था गंभीर जोखिम में है.
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