आर के जैन (सत्य हिंदी में प्रकाशित लेख )
दिल्ली। हाल में मोदी सरकार की तारीफ़ करते रहने वाले ‘कांग्रेस नेता ‘ शशि थरूर को ‘वीर सावरकर अवॉर्ड’ दिए जाने की घोषणा हुई है । बीजेपी और पीएम मोदी की तारीफ़ करने वाले थरूर साहब सावरकर के नाम से भड़क गये और उन्होंने कहा कि उनको इस अवार्ड के बारे में पता ही नहीं है। जबकि अवॉर्ड देने वाले आयोजकों ने दावा किया है कि उनको पहले ही इसकी पूरी जानकारी दी गई थी और उन्होंने इसके लिए हामी भरी थी।
तो अब सवाल यह है कि थरूर साहब मुकर क्यों रहे हैं ? क्या वह अपने ऊपर सावरकर नाम का ठप्पा नहीं लगने देना चाहते हैं? इसका जवाब तो थरूर से ही साफ़ मिल सकता है।
थरूर ने बुधवार को साफ़ किया कि उन्हें कोई ‘वीर सावरकर इंटरनेशनल इम्पैक्ट अवॉर्ड 2025’ नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वे न तो इस पुरस्कार के बारे में पहले से जानते थे और न ही उन्होंने इसे स्वीकार किया है। आयोजकों द्वारा बिना उनकी सहमति के उनका नाम घोषित करना पूरी तरह गैर-जिम्मेदाराना कदम था।
थरूर साहब ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर सफाई दी है , ‘कल तिरुवनंतपुरम में मीडिया के सवालों के जवाब में मैंने स्पष्ट कर दिया था कि मुझे इस पुरस्कार की न जानकारी थी, न मैंने इसे स्वीकार किया है। आयोजकों का मेरी सहमति के बिना नाम घोषित करना बेहद गैर-जिम्मेदाराना है। फिर भी दिल्ली में कुछ मीडिया के साथियों ने फिर वही सवाल पूछे, इसलिए मैं एक बार फिर स्पष्ट कर देना चाहता हूँ।’
उन्होंने आगे लिखा, ‘पुरस्कार की प्रकृति, उसे देने वाली संस्था या अन्य किसी संदर्भ की जानकारी के अभाव में आज के कार्यक्रम में जाने या पुरस्कार स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।’
हालाँकि कल मंगलवार को केरल में ही थरूर ने मीडिया से कहा था, ‘मुझे कल ही इसकी खबर मिली। मैं कुछ भी नहीं ले रहा हूँ। मैं जा भी नहीं रहा।’ बुधवार को दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने दोहराया, ‘मुझे कल ही पता चला। मैं जा नहीं रहा हूँ। मैं यहाँ हूँ ही नहीं।’
यद्यपि आयोजकों ने दावा किया है कि ‘ थरूर ने अवॉर्ड के लिए हामी भरी थी ‘। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार आईएचआरडीएस के फाउंडर सेक्रेटरी अजी कृष्णन ने कहा, ‘यह फैसला थरूर को एक महीने पहले ही बता दिया गया था। हम थरूर से उनके घर पर मिले, उन्हें अवॉर्ड के बारे में बताया और उन्हें फंक्शन में बुलाया।
इसके अलावा, दो हफ़्ते पहले, हमारे जूरी चेयरमैन रवि कांत (रिटायर्ड IAS), थरूर से उनके घर पर मिले थे। वह सावरकर के नाम पर शुरू किए गए अवॉर्ड को पाने वाले दूसरे लोगों के बारे में जानना चाहते थे। हमने वे डिटेल्स भी शेयर कीं। कोई दिक्कत नहीं थी और वह अवॉर्ड लेने और इवेंट में आने के लिए मान गए थे। अभी तक, हमें थरूर से कोई खबर नहीं मिली है कि वह इवेंट में नहीं आएंगे। हो सकता है कि उन पर कांग्रेस का दबाव रहा हो।’
उन्होंने यह भी कहा कि थरूर को उनके ‘ग्लोबल क्रेडेंशियल्स’ की वजह से अवॉर्ड के लिए चुना गया था। उन्होंने कहा, थरूर सच में हमेशा भारत के विचारों को रिप्रेजेंट किया है। हाल ही में, उन्हें प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी ने एक डेलीगेशन का हिस्सा बनने के लिए चुना था जो ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत का नज़रिया रखने के लिए विदेश गया था।
हाल ही में उन्हें रूस के प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में स्टेट डिनर में बुलाया गया था। उन्होंने हमेशा देश बनाने और भारत के हितों के पक्ष में बात की है। ब्रिटिश कॉलोनियलिज़्म पर उनकी बातें इंस्पायरिंग हैं।’
‘वीर सावरकर इंटरनेशनल इम्पैक्ट अवॉर्ड 2025’?
एचआरडीएस इंडिया नामक संस्था द्वारा पहली बार शुरू किया गया ‘वीर सावरकर इंटरनेशनल इम्पैक्ट अवॉर्ड 2025’ 10 दिसंबर नई दिल्ली के NDMC कन्वेंशन हॉल में आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे जबकि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी समारोह में मौजूद रहेंगे।
आयोजकों ने शशि थरूर सहित कई हस्तियों को इस पुरस्कार के लिए चुना था, लेकिन थरूर ने अब इसे स्वीकार करने से साफ़ इनकार कर दिया। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद के. मुरलीधरन ने बुधवार को कड़ा बयान देते हुए कहा कि विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के सामने घुटने टेके थे, इसलिए कांग्रेस के किसी भी सदस्य को, चाहे वह शशि थरूर ही क्यों न हों, उनके नाम पर दिया जाने वाला कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं करना चाहिए।
मुरलीधरन ने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि थरूर ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि इससे पार्टी का अपमान होगा और उन्हें भी शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।’ शशि थरूर इससे पहले भी सावरकर को ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हीरो’ बताने वाले दावों पर सवाल उठा चुके हैं। अपनी किताबों और सार्वजनिक बयानों में उन्होंने सावरकर की उस याचिका का जिक्र किया है जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी और जेल से रिहाई की गुहार लगाई थी।
सावरकर पर इतना विवाद क्यो है ?
सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख लेकिन विवादास्पद व्यक्तित्व हैं। उनके नाम पर आपत्ति मुख्य रूप से उनकी विचारधारा, ब्रिटिश शासन के दौरान की गई दया याचिकाओं और महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े आरोपों के कारण रही है। ये आपत्तियां विशेष रूप से , कांग्रेस सहित कुछ अन्य राजनीतिक समूहों से आती रही हैं, जो उन्हें ‘कायर’ या ब्रिटिश समर्थक होने का आरोप लगाते हैं।
सावरकर को 1911 में अंडमान की सेलुलर जेल (कालापानी) में आजीवन कारावास की सजा मिली थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को कई दया याचिकाएं लिखीं, जिनमें जेल से रिहाई की मांग की गई। सावरकर के आलोचक इसे ब्रिटिशों के प्रति समर्पण या क्षमा याचना मानते हैं, जबकि उनके समर्थक इसे रणनीतिक कदम बताते हैं ताकि वे बाहर आकर स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दे सकें।
सावरकर पर गांधी जी की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप भी लगा था, हालांकि अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। फिर भी, कई इतिहासकार और राजनीतिक दल उन्हें गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे से वैचारिक रूप से जुड़ा मानते हैं। यह आरोप उन्हें हिंसक राष्ट्रवाद से जोड़ता है।
सावरकर ने हिंदुत्व की अवधारणा दी, जो हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित है।सावरकर की विचारधारा को कांग्रेस व अन्य दल मुस्लिम-विरोधी और सांप्रदायिक मानते हैं, जबकि समर्थक इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बताते हैं। वे भारत छोड़ो आंदोलन के विरोधी थे और जाति व्यवस्था के खिलाफ थे, लेकिन उनकी विचारधारा को कुछ लोग विभाजनकारी मानते हैं
कांग्रेस पार्टी, विशेष रूप से राहुल गांधी जैसे नेताओं ने सावरकर पर बार-बार आरोप लगाए हैं। कांग्रेस उन्हें ‘माफीवीर’ कहती है, दावा करती है कि उन्होंने ब्रिटिशों से क्षमा मांगी और स्वतंत्रता संग्राम को धोखा दिया।
यह भी उल्लेखनीय है की कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गांधी हत्या के बाद सावरकर के भाई पर हमला किया था और आज भी पार्टी उन्हें गांधी के हत्यारों से जुड़ा बताती है। वे सावरकर को हिंदू चरमपंथी मानते हैं, जो भारत के बहुलतावादी चरित्र के खिलाफ थे। कांग्रेस का कहना है कि सावरकर ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और ब्रिटिशों की मदद की।
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