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मुंबई। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अभय ओका ने राजनेताओं के अदालती कामों में दखल पर सवाल उठाया। बोले- समाज में ‘भीड़ तंत्र’ पैदा हो रहा है। जब कोई हादसा होता है, तो नेता इसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। वे उस जगह जाते हैं और जनता से वादा करते हैं कि आरोपी को फांसी की सजा दी जाएगी। ये तय करना उनका काम नहीं है। ये फैसला लेने की ताकत सिर्फ न्यायपालिका के पास है, लेकिन नेता ही अदालत की तरह फैसला सुना रहे हैं।
जस्टिस ओका बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र की तरफ से पुणे में आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे। यहां उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने और त्वरित और न्यायपूर्ण फैसले सुनाने की अहमियत पर अपनी बात रखी। उन्होंने यह भी कहा कि कई केस में जमानत देने के चलते बिना वजह ही न्यायपालिका की आलोचना की जाती है।
मॉब रूल की टिप्पणी करते वक्त जस्टिस ओका ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब कोलकाता रेप-मर्डर और महाराष्ट्र के बदलापुर में दो स्कूली छात्राओं के यौन शौषण के मामले सामने आने के बाद अपराधियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा सुनाए जाने के मांग उठ रही है।
उन्होंने कहा कि अगर ज्यूडिशियरी का सम्मान करना है तो इसकी स्वतंत्रता बनाए रखनी होगी। संविधान का पालन सिर्फ तब होगा जब वकील और ज्यूडिशियरी संवेदनशील रहेंगे। न्याय तंत्र को बनाए रखने में वकील अहम भूमिका निभाते हैं, लिहाजा उन्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी होगी, वरना संविधान नहीं बच पाएगा।
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