Palestine Statehood Recognition

Palestine Statehood Recognition

24 घंटे में 4 देशों ने दी फिलिस्तीन को मान्यता, ब्रिटेन-कनाडा समेत 150 देश कर चुके समर्थन

Share Politics Wala News

 

Palestine Statehood Recognition: लंबे समय से जारी इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच बीते 24 घंटे में ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने फिलिस्तीन को औपचारिक तौर पर एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी।

इसके साथ ही फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले देशों की संख्या 150 के करीब पहुंच गई है। इस कदम को टू-स्टेट सॉल्यूशन और शांति प्रक्रिया की दिशा में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने वीडियो संदेश जारी कर फिलिस्तीन की मान्यता का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि दो राष्ट्र समाधान ही शांति का रास्ता है।

स्टार्मर ने साफ किया कि यह कदम इजराइल को दंडित करने के लिए नहीं बल्कि शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए है।

उन्होंने यह भी माना कि अगर इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गाजा में सैन्य अभियान को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत और कम हिंसक तरीके से चलाया होता, तो शायद ब्रिटेन को यह कदम उठाने की जरूरत नहीं पड़ती।

ब्रिटेन के उप-प्रधानमंत्री डेविड लैमी ने कहा कि मान्यता का मतलब यह नहीं है कि तुरंत नया देश बन जाएगा, बल्कि यह शांति प्रक्रिया का हिस्सा है ताकि टू-स्टेट सॉल्यूशन की उम्मीद जिंदा रहे।

कनाडा, पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया का रुख

कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा कि यह फैसला मध्य-पूर्व में शांति लाने और फिलिस्तीन को लोकतांत्रिक देश बनाने की दिशा में है।

उन्होंने साफ किया कि यह कदम हमास का समर्थन नहीं है, बल्कि कनाडा की मांग है कि हमास बंधकों को छोड़े, हथियार डाले और फिलिस्तीनी सरकार में कोई भूमिका न निभाए।

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीनी जनता की स्वतंत्र देश की आकांक्षा का सम्मान करता है।

उनका कहना था कि यह कदम टू-स्टेट सॉल्यूशन के लिए पुरानी कोशिशों की निरंतरता है, जो इजराइल और फिलिस्तीन के बीच स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता है।

वहीं, पुर्तगाल के विदेश मंत्री पाउलो रेंजेल ने कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना ही स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता है।

उनके मुताबिक, अगर फिलिस्तीनी लोगों को उनका वैध अधिकार और स्वतंत्रता दी जाएगी, तभी क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित हो सकेगी।

इजराइल की कड़ी प्रतिक्रिया

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए जरूरी कदम है।

फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने भी इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि यह टू-स्टेट सॉल्यूशन को बचाने की दिशा में अहम पहल है।

दूसरी ओर इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस फैसले की आलोचना कर कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना आतंकवाद को इनाम देना है। उन्होंने ऐलान किया कि जॉर्डन नदी के पश्चिम में कोई फिलिस्तीनी देश नहीं बनेगा।

नेतन्याहू ने यह भी दावा किया कि उनकी सरकार ने वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों को दोगुना कर दिया है और आगे भी इसे बढ़ाते रहेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि इस मान्यता का जवाब वह अमेरिका यात्रा से लौटकर देंगे।

75% देश कर चुके हैं मान्यता

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से करीब 75% देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं।

फिलिस्तीन को UN में परमानेंट ऑब्जर्वर स्टेट का दर्जा है।

इसका मतलब है कि वह संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों में शामिल हो सकता है लेकिन वोटिंग अधिकार नहीं है।

फ्रांस ने भी घोषणा की है कि वह इस हफ्ते UN में फिलिस्तीन के पक्ष में वोट करेगा।

ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 स्थायी सदस्यों में से 4 देश – चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन – फिलिस्तीन का समर्थन कर चुके होंगे।

अमेरिका अब अकेला ऐसा स्थायी सदस्य बच जाएगा जो फिलिस्तीन को मान्यता नहीं देता।

अमेरिका और ट्रंप का विरोध

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन की यात्रा के दौरान कहा था कि फिलिस्तीन को मान्यता देने पर उनकी राय ब्रिटेन से मेल नहीं खाती।

उनका तर्क था कि इससे इजराइल की सुरक्षा और गाजा में हमास के कब्जे में बंधक बने लोगों की स्थिति और खराब होगी।

अमेरिका अब भी फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश की बजाय केवल फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को मान्यता देता है।

यह अथॉरिटी 1994 में बनाई गई थी ताकि फिलिस्तीनियों के पास स्थानीय सरकार जैसी व्यवस्था हो सके और भविष्य में स्वतंत्र राज्य बनने की नींव रखी जा सके।

बता दें ब्रिटेन और फ्रांस की यह मान्यता इसलिए भी अहम है क्योंकि दोनों देश G7 और UNSC के सदस्य हैं।

1917 में ब्रिटेन ने बाल्फोर घोषणापत्र जारी कर यहूदियों के लिए उनके देश की स्थापना का समर्थन किया था।

लेकिन घोषणापत्र का वह हिस्सा, जिसमें फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा का वादा था, कभी लागू नहीं हुआ।

अब एक सदी बाद ब्रिटेन और फ्रांस का बदला हुआ रुख मध्य-पूर्व की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ माना जा रहा है।

फिलहाल, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल के हालिया फैसले से इजराइल पर गाजा में मानवीय संकट कम करने का दबाव बढ़ गया है।

वहीं, अमेरिका का विरोध जारी है और नेतन्याहू ने इसे आतंकवाद को इनाम देने जैसा बताया है।

आने वाले दिनों में फ्रांस का समर्थन जुड़ने के बाद अमेरिका और इजराइल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा अलग-थलग पड़ सकते हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *