NDA Seat Sharing

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NDA सीट शेयरिंग 2025: बिहार की सियासत में बदलता पावर इक्वेशन, BJP-JDU बराबर तो चिराग बने ‘किंगमेकर’

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NDA Seat Sharing: बिहार की राजनीति में सीट शेयरिंग सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि सत्ता संतुलन की कहानी होती है।

रविवार को घोषित NDA की सीट शेयरिंग में भाजपा और जदयू दोनों को 101-101 सीटें मिली हैं।

यह सिर्फ बंटवारा नहीं, बल्कि ‘बड़ा भाई–छोटा भाई’ के समीकरण का अंत है।

2025 का चुनाव बिहार NDA के लिए सिर्फ सत्ता दोहराने की कवायद नहीं, बल्कि गठबंधन के भीतर ताकत के पुनर्संतुलन की परीक्षा भी होगा।

अबकी बार BJP और JDU बराबर

2020 तक जदयू को बिहार NDA का ‘बड़ा भाई’ माना जाता था।

लेकिन इस बार BJP ने लोकसभा के सीट शेयरिंग फॉर्मूले को आधार बनाकर बराबरी की स्थिति हासिल कर ली।

भाजपा 101 सीटों पर और जदयू भी 101 सीटों पर चुनाव लड़ेगी — यह पहली बार हुआ है जब दोनों दल समान स्तर पर खड़े हैं।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह भाजपा का रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक है।

पार्टी ने न सिर्फ नीतीश कुमार के ‘बड़ा भाई’ दर्जे को खत्म किया, बल्कि बिहार की सत्ता पर ‘समान भागीदारी’ का प्रतीक बना दिया।

अब NDA में निर्णय सिर्फ नीतीश के इशारों पर नहीं होंगे, बल्कि भाजपा का भी बराबर योगदान रहेगा।

चिराग पासवान: NDA के नए ‘किंगमेकर’

29 सीटें हासिल कर LJP (रामविलास) के चिराग पासवान NDA में सबसे बड़े बार्गेनर साबित हुए हैं।

2020 में जब वे NDA से अलग हुए थे, तो उनकी पार्टी के प्रत्याशियों ने जदयू को नुकसान पहुंचाया था।

उस चुनाव में चिराग के प्रत्याशियों ने लगभग 30 सीटों पर जदयू को हराया या उसकी हार में भूमिका निभाई।

अब 2025 में उनकी वापसी NDA के लिए राजनीतिक मजबूरी और रणनीतिक सहारा दोनों है।

भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति चिराग की अटूट निष्ठा ने उन्हें गठबंधन में फिर से “दलित चेहरे” के रूप में स्थापित कर दिया।

विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार में दलित वोट बैंक लगभग 19% है और चिराग इस तबके में भाजपा-जदयू से ज्यादा पकड़ रखते हैं।

सीट शेयरिंग में उन्हें 29 सीटें देना इस बात का संकेत है कि NDA ने दलित नेतृत्व की कमान चिराग के हाथों सौंप दी है।

मांझी-कुशवाहा की नाराजगी NDA की कमजोरी

सीट शेयरिंग के बाद जीतन राम मांझी (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा (RLM) दोनों ने नाराजगी जताई।

मांझी को जहां सिर्फ 6 सीटें मिलीं, वहीं कुशवाहा को भी 6 सीटों पर संतोष करना पड़ा।

मांझी ने कहा कि हम NDA के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन हमारी अहमियत कम आंकी गई।

यह बयान उस असंतोष की झलक है जो NDA के भीतर छोटे सहयोगी दलों में पनप रही है।

कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट लिखकर कहा—कई घरों में आज खाना नहीं बना होगा, पर समय बताएगा कि फैसला सही था या नहीं।

उनके इस बयान ने यह संकेत दिया कि NDA में छोटे दल ‘सम्मान की राजनीति’ की कमी महसूस कर रहे हैं।

राजनीतिक तौर पर यह असंतोष भले ही गठबंधन नहीं तोड़ेगा, लेकिन चुनाव के दौरान ग्राउंड लेवल पर इन दलों की ऊर्जा और उत्साह पर असर डाल सकता है।

BJP की रणनीति: नंबरों से ज्यादा ‘नैरेटिव’ पर फोकस

भाजपा ने 2020 के बाद से बिहार में अपनी रणनीति बदल दी है।

पहले जहां पार्टी जदयू के नेतृत्व में सहायक भूमिका निभाती थी, अब वह खुद को ‘मुख्य साझेदार’ के रूप में पेश कर रही है।

सीटों की बराबरी के साथ भाजपा ने यह मैसेज दिया कि अब बिहार में NDA की सरकार सिर्फ नीतीश कुमार की नहीं, बल्कि मोदी-नीतीश की साझी सरकार होगी।

भाजपा की रणनीति साफ है — दलित + पिछड़ा + महिला’ फॉर्मूले के साथ NDA की सामाजिक इंजीनियरिंग को मजबूत करना।

यानी जहां नीतीश कुमार यादव-मुस्लिम समीकरण के मुकाबले अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को संभाल रहे हैं।

वहीं भाजपा चिराग और मांझी जैसे दलित नेताओं को आगे कर सामाजिक संतुलन बनाए रख रही है।

जदयू की घटती सीटें, घटती प्रभावशीलता

2005 में जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ा था, 2010 में यह संख्या बढ़कर 141 हुई थी।

अब 2025 में पार्टी सिर्फ 101 सीटों पर लड़ेगी। यानी 15 साल में जदयू की 29% सीटें कम हो गई हैं।

यह गिरावट केवल संख्या में नहीं बल्कि राजनीतिक हैसियत में भी है। अब जदयू के पास पहले जैसी ‘किंगमेकर’ भूमिका नहीं रही।

भाजपा के साथ बराबरी का बंटवारा दिखने में भले ही ‘समान साझेदारी’ लगे, लेकिन असल में यह नीतीश कुमार की सीमित होती राजनीतिक ताकत का संकेत है।

चुनावी गणित: लोकसभा फॉर्मूले से विधानसभा फॉर्मूला

2024 लोकसभा चुनाव के परिणाम NDA के लिए बेंचमार्क बने।

भाजपा ने 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, जो 104 विधानसभा सीटों के बराबर है।

जदयू ने 16 लोकसभा सीटों पर, जो 97 विधानसभा सीटों के बराबर बैठती हैं।

इसी आधार पर 101-101 सीटों का फार्मूला तय किया गया।

यानी NDA ने इस बार राजनीतिक जोखिम से बचते हुए ऐसा फॉर्मूला चुना जिससे किसी दल को स्पष्ट रूप से ‘बड़ा’ या ‘छोटा’ न कहा जा सके।

परंतु राजनीतिक अर्थों में यह भाजपा की जीत और जदयू की स्वीकृत हार है।

चिराग और नीतीश के बीच अदृश्य तनाव

नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच रिश्ते हमेशा ठंडे रहे हैं।

नीतीश ने खुद बयान दिया था कि चिराग NDA का हिस्सा हैं, लेकिन जदयू का नहीं।

फिर भी भाजपा ने चिराग को 29 सीटें देकर नीतीश के ऊपर अपना भरोसा नहीं, बल्कि दबाव दिखाया।

यह साफ संकेत है कि भाजपा चाहती है अगर भविष्य में नीतीश NDA छोड़ते हैं, तो NDA का दलित चेहरा और संगठन चिराग पासवान के हाथों में रहेगा।

राजनीतिक रूप से इसे भाजपा का “B-Plan” भी कहा जा सकता है, जिसमें नीतीश के जाने की स्थिति में NDA की वैकल्पिक नेतृत्व संरचना पहले से तैयार रखी गई है।

मांझी-कुशवाहा NDA के लिए संख्या से ज्यादा प्रतीक

जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टियों की राजनीतिक ताकत सीमित है, लेकिन दोनों के पास अपनी-अपनी जातीय पहचान का प्रतीकात्मक मूल्य है।

मांझी दलित-मुसहर समुदाय से आते हैं और गया क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं, जबकि कुशवाहा जाति बिहार में लगभग 4.2% है, खासकर मगध और शाहाबाद में निर्णायक मानी जाती है।

भाजपा इन दोनों नेताओं को गठबंधन में रखकर दो संदेश देना चाहती है—

  1. NDA सामाजिक रूप से समावेशी गठबंधन है।
  2. कोई भी जाति समूह NDA से बाहर नहीं है।

सीट शेयरिंग नहीं, सत्ता संतुलन की नई परिभाषा

भले ही मांझी-कुशवाहा नाराज हों, लेकिन उनका गठबंधन से अलग होना लगभग असंभव है। मांझी केंद्र में मंत्री हैं और बेटा राज्य में मंत्री।

कुशवाहा की पार्टी विधानसभा में अस्तित्व बचाने की कोशिश कर रही है। दोनों के लिए गठबंधन से बाहर होना राजनीतिक आत्महत्या जैसा होगा।

इसलिए NDA ने यह सीट शेयरिंग घोषित कर विपक्ष को यह मैसेज दिया है कि हम एकजुट हैं, महागठबंधन में जो टूटफूट है, वह NDA में नहीं।

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले NDA का यह सीट बंटवारा राजनीतिक पावर इक्वेशन के नए दौर की शुरुआत है।

भाजपा ने खुद को जदयू के बराबर खड़ा किया, दलित नेतृत्व चिराग को सौंपा, और छोटे सहयोगियों को ‘सम्मानजनक सीमाओं’ में रखा।

यह बंटवारा सिर्फ चुनावी तालमेल नहीं, बल्कि बिहार NDA के भीतर सत्ता की नई परिभाषा है। जहां नीतीश कुमार अब ‘बॉस’ नहीं, बल्कि एक साझेदार हैं।

भाजपा अब ‘सहयोगी’ नहीं, बल्कि ‘सह-नेता’ है और चिराग पासवान NDA के ‘भविष्य के चेहरे’ के रूप में उभरते दिख रहे हैं।

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