एम पी गज़ब है  : भाग्य पर इतराता सियासी ठेला !!

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सड़कों पर इस नवाचार में यदि कांग्रेस को भाजपाई सियासत की बू आ रही है तो उसे अपनी सियासी नाक की सूंघन क्षमता बढ़ानी चाहिए ताकि वो भाजपा से पहले ऐसे अभियान हथिया सकें

 

टी.एन.मनीष (वरिष्ठ पत्रकार )

एक सजा संवरा ठेला.. बिल्कुल दुल्हन की तरह सजा हुआ… चमकता और दमकता हुआ.. इसकी क़िस्मत मंगलवार को भोपाल के अशोका गार्डन इलाके में चमक गई.. क्योंकि इस बार इसे धकेलने वाले हाथों में मेहनत के छाले और फफोले नहीं थे..बल्कि ये उपेक्षित समझा जाने वाला ग़रीबों की रोटी जुटाने वाला साधन अपने आप पर इतरा रहा था…इसके पीछे कारण भी था..मौक़ा भी था.. दस्तूर भी..

.क्योंकि इसे राजयोग की लकीरों से भरे ज़मीनी सोच वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हाथों ने धकेला और यकायक सियासी बनाकर धन्य कर दिया.. इस ठेले ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इसे कभी साटन के चमकदार मखमली कपड़ों से सरकारी प्रभावी हाथ खुद सजाएंगे !!!

ये समूचा प्रसंग बलि के बकरे की तरह भी नहीं था…क्योंकि इसे हलाल करने के लिये नहीं बल्कि हवाला देने और प्रेरणापुंज बनाने के लिये सत्ता प्रतिष्ठान से वरदान मिला था…तो इस बड़भागी ठेले ने राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के अनगिनत जर्जर और बदहाल ठेलों को जमकर चिढ़ाया भी…

क्योंकि बाकी ठेलों की तरह इस पर न तो कूड़ा करकट सवार हुआ..न कबाड़ ने इस पर सवारी की…बल्कि इसे तो आम लोगों ने शिवराज मामा की ख़ास अपील पर ख़ास खिलौनों से भर ड़ाला !! और तो और हमेशा नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते के निशाने पर रहने वाले तमाम हाथ ठेलों को खिलौनों को सवारी कराते ठेले से जमकर जलन भी हुई। अब ये इन जलनखोर ठेलों को कौन समझाए कि एक दिन कूड़े के भी दिन फिरते हैं.. फिर ये तो लोह-काठ का बना अच्छा ख़ासा ठेला हैं !!

ऊपर से सियासत की पैनी नज़रें इस पर पड़ गई.. ऐसे में पलक झपकते ही इसके दिन संवरना तो तय ही था..एक बात और कि बाकी उपेक्षित ठेलों के लिये भी राजनीति ने एक मौक़ा शेष रखा हुआ हैं.. वो भी जनता की उपेक्षा से परेशान कांग्रेस ने दिया.. क्योंकि कहते हैं कि “घायल की गति घायल जाने” ऐसे में कांग्रेस ने मामा की कृपा और आशीर्वाद से बचे तमाम उपेक्षित ठेलों का जलसा निकालने का भरोसा दिया है !!

अब विपक्षी कांग्रेस एक सुर में गाने वाली है कि ” एक ठेला..अनेक ठेले..नारे लगाते आए ठेले.. निगम को लतियाते जाए ठेले ” अब कांग्रेस चाहे नगर निगम को कोसे…चाहे भाजपा के “ठेला..खिलौना.. अनाज का दान-दोना” अभियान को पानी पी-पीकर कोस लें मामा को जो करना था वो तो कर ही चुके…

अब इसमें कोई संदेह नहीं कि सजीला ठेला मामा के आंगनबाड़ी में कुपोषित नौनिहालों के लिये जन भागीदारी का अगुवा तो बन ही चुका है..और आने वाले सियासी दिनों में प्रदेश में ऐसे अनेक ठेले खिलौने मांगते नज़र आ सकते हैं !!!

सड़कों पर इस नवाचार में यदि कांग्रेस को भाजपाई सियासत की बू आ रही है तो उसे अपनी सियासी नाक की सूंघन क्षमता बढ़ानी चाहिए ताकि वो भाजपा से पहले ऐसे अभियान हथिया सकें..इससे पहले कांग्रेस को चाहिए कि वो ठेला सियासत के बरक्स मध्यप्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के बीच दबे हुए उस आक्रोश को उभारने का नवाचार करें जो सूबे में जनता के हिमायती विपक्ष की बेसब्री से राह तक रहा है..

तो ठेले पर सवार होती खिलौनों की सियासत के बीच जनता हमारी संवेदनशील सरकार की इस मुहिम से सरकार के प्रति सरोकार की ज़िम्मेदारी का पाठ पढ़ चुकी है..वो समझ चुकी है कि बेचारी सरकार अकेले क्या-क्या करेगी.. उसे पता चल चुका हैं कि “सरकार हमें देती है सबकुछ.. हम भी तो कुछ देना सीखें”

अब ये सब सीखने... देखने… समझने और परखने के बाद उसे उम्मीद हैं कि लगातार होते नवाचार के बीच वो सुबह कभी तो आएगी जब भूख भ्रष्टाचार.. भय..बेरोज़गारी.. बेकारी.. बेईमानी.. बढ़ती महंगाई और बेबसी हमेशा के लिये अपने धाम जाएगी और जन सरोकार से चलती सरकार अच्छे दिन लाएगी… जय जनता… जय जनार्दन।

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