क्या बीजेपी की सत्ता नागपुर के बजाय अब संघ दिल्ली से संचालित होने लगा है ? संघ प्रमुख जिस ढंग से मोदी सरकार की नाकामियों, कमजोरियों पर पर्दा डालते दिख रहे हैं, उसे क्या समझे ?
इंदौर। (Web Desk)आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत देश के नए अर्थशास्त्री बनकर उभरे हैं। वे अपने ही अंदाज़ में अर्थव्यवस्था के अर्थ जनता तक पहुंचाने को आमादा दिखे। संघ प्रमुख का विजयदशमी भाषण राष्ट्रवाद, संघ से ज्यादा मोदी और मोदी सरकार की नीतियों को पुचकारने, सहलाने पर था। वे सरकार की नाकाम नीतियों की फेहरिस्त लाये थे, और सिलसिलेवार उसे पढ़ा। आखिर संघ प्रमुख को इतनी सत्ता भक्ति की जरुरत क्यों पड़ी ? अब तक ये सुना था कि बीजेपी की सत्ता नागपुर से चलती है, पर भागवत के भाषण से लगा मानों अब नागपुर दिल्ली पर आश्रित है। मोदी और अमित शाह के आगे कमजोर हो गयी है संघ की शक्ति ? इससे पहले कभी किसी संघ प्रमुख ने सरकार की कमजोरियों पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं की। संघ ने हमेशा कहा हम गैर राजनीतिक हैं, और जो देशहित की बात करेगा संघ उसके साथ होगा। भागवत अर्थव्यवस्था को तथाकथित और बहुत अच्छी बताकर मोदी को साधने की साफ़-साफ़ कोशिश कि जबकि वे खुद भी जानते ही होंगे कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है (ये और बात है कि संघ के प्रचारकों को जेब में हाथ शायद ही कभी डालना पड़ता हो )
यूं समझिए भागवत के भाषण के अर्थ
हिंदी वेबसाइट सत्याग्रह ने लिखा है -आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को नागपुर में कहा कि ‘तथाकथित’ अर्थिक मंदी के बारे में बहुत अधिक चर्चा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे कारोबारजगत तथा लोग चिंतित होते हैं और आर्थिक गतिविधियों में कमी आती है. मोहन भागवत ने कहा कि सरकार स्थितियों में सुधार के उपाय कर रही है और हमें उस पर विश्वास रखना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा, ‘देश बढ़ रहा है. लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था में एक चक्र चलता है, जब कुछ कठिनाई आती है तो विकास धीमा हो जाता है। ; तब इसे सुस्ती कहते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘एक अर्थशास्त्री ने मुझसे कहा कि आप इसे मंदी तभी कह सकते हैं जबकि आपकी विकास दर शून्य हो. लेकिन हमारी विकास दर पांच प्रतिशत के करीब है. कोई इसे लेकर चिंता जता सकता है, लेकिन इस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं है.’ उन्होंने कहा, ‘इस पर चर्चा से एक ऐसे परिवेश का निर्माण होता है, जो गतिविधियों को प्रभावित करता है. तथाकथित मंदी के बारे में बहुत अधिक चर्चा से उद्योग एवं व्यापार में लोगों को लगने लगता है कि अर्थव्यवस्था में सच में मंदी आ रही है और वे अपने कदमों को लेकर अधिक सतर्क हो जाते हैं।
संघ प्रमुख ने कहा कि सरकार को अमेरिका और चीन के बीच व्यापार यु्द्ध जैसे कुछ बाहरी कारणों का सामना भी करना पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी सरकार पर भरोसा करने की जरूरत है. हमने कई कदम उठाए हैं, आने वाले दिनों में कुछ सकारात्मक असर होंगे.’
किसी जमाने में नोटबंदी और जीएसटी के आलोचक रहे भागवत का जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों में बचाव करना, उनमें आए बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है. कार्यक्रम, जिसमें एचसीएल के संस्थापक शिव नादर मुख्य अतिथि थे, उनके भाषण का एक अच्छा-ख़ासा हिस्सा अर्थव्यवस्था को समर्पित था.
भागवत ने कहा, ‘हम बढ़ रहे हैं, लेकिन सारे विश्व में अर्थव्यवस्था में एक चक्र चलता है. इसमें गतिरोध आ जाता है. वह स्लो हो जाता है. तो कहते हैं कि मंदी आ गई है.’ उन्होंने साथ ही जोड़ा, ‘एक अर्थशास्त्र के जानकार सज्जन ने बताया, ने मुझे कहा कि मंदी तब का जाता है, जब ग्रोथ रेट जीरो से नीचे चली जाए. लेकिन हमारी वृद्धि दर 5% के करीब है. आप इसको लेकर चिंता जाहिर कर सकते हैं, लेकिन इस पर चर्चा क्यों करें.’
उन्होंने कहा, ‘इसको लेकर चर्चा करने से एक वातावरण बनता है- वातावरण में मनुष्यों का आचरण होता है. तथाकथित आर्थिक मंदी के बारे में बहुत ज्यादा चर्चा से अर्थ-व्यापार में लगे में लोगों को यह विश्वास हो जाएगा कि अर्थव्यवस्था में वास्तव में गिरावट आ रही है और वे और भी ज्यादा सुरक्षात्मक ढंग से काम करने लगेंगे. रखने लगेंगे. इसका नतीजा यह होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था की गति और घट जाएगी.’
अपने स्वाभाविक आलोचनात्मक रवैये से हटकर उन्होंने कहा, ‘सरकार ने इस मुद्दे की ओर संवेदनशीलता दिखाई गई है, इसने उपाय किए हैं. हमें अपनी सरकार पर विश्वास रखना चाहिए. हमने कई उपाय किए हैं, आने वाले समय में कुछ सकारात्मक प्रभाव दिखाई देगा.’ इसके आगे उन्होंने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध जैसे बाहरी कारकों के कारण नौकरियों की मुश्किल हो गई है.