Karnataka Caste Census: कर्नाटक में जाति जनगणना की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई है।
यह सर्वे 7 अक्टूबर तक चलेगा, लेकिन इसकी शुरुआत के साथ ही राजनीतिक और कानूनी विवाद खड़ा हो गया है।
मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में इस जनगणना को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई होनी है।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि इस सर्वे के पीछे सरकार की राजनीतिक मंशा छिपी हुई है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए।
वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि यह सर्वे समाज कल्याण योजनाओं को सही तरीके से लागू करने और वास्तविक लाभार्थियों की पहचान करने के लिए जरूरी है।
चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सीएम जोशी की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि अदालत अंतरिम रूप से इस सर्वे पर रोक लगाए। कोर्ट का फैसला आने वाले दिनों में इस प्रक्रिया की दिशा तय कर सकता है।
जानें कैसे हो रहा है सर्वे?
यह सर्वे कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की देखरेख में किया जा रहा है।
इसके लिए 1.75 लाख कर्मचारी नियुक्त किए गए हैं, जिनमें ज्यादातर सरकारी स्कूलों के शिक्षक शामिल हैं।
राज्य के लगभग 2 करोड़ घरों के करीब 7 करोड़ लोगों पर यह सर्वे किया जाएगा।
आयोग ने दावा किया है कि यह प्रक्रिया वैज्ञानिक तरीके से होगी और दिसंबर तक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी जाएगी।
सर्वे पर करीब 420 करोड़ रुपये की लागत आएगी। सर्वे में कुल 60 सवाल पूछे जाएंगे।
हर घर को बिजली मीटर नंबर के जरिए जियो-टैग किया जाएगा और एक यूनिक हाउसहोल्ड आईडी (UHID) दी जाएगी।
साथ ही राशन कार्ड, आधार और मोबाइल नंबरों को भी डेटा से जोड़ा जाएगा।
जिन लोगों से सर्वे टीम संपर्क नहीं कर पाएगी या जिनके पास कोई शिकायत होगी, उनके लिए हेल्पलाइन नंबर 8050770004 जारी किया गया है।
डुअल आइडेंटिटी पर विशेष प्रावधान
इस बार के सर्वे में डुअल आइडेंटिटी यानी हिंदू और ईसाई दोनों नामों वाली जातियों को लेकर खास प्रावधान किया गया है।
जैसे कुरुबा ईसाई और ब्राह्मण ईसाई जैसी 33 जातियों के नाम एप में छिपाए जाएंगे, लेकिन हटाए नहीं जाएंगे।
आयोग का कहना है कि लोग चाहें तो अपनी पहचान खुद जाहिर कर सकते हैं।
2015 में भी कर्नाटक में जाति सर्वे कराया गया था, लेकिन उस समय वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत जैसे प्रमुख समुदायों ने इसका विरोध किया था।
उन्होंने उस सर्वे को अवैज्ञानिक बताया और नए सिरे से गणना की मांग की थी। इसी कारण राज्य सरकार ने 12 जून 2025 को नए सर्वे को मंजूरी दी और पुराने सर्वे को रद्द कर दिया।
यह निर्णय कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1995 की धारा 11(1) के तहत लिया गया।
जाति जनगणना हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रहा है।
समर्थक इसे सामाजिक न्याय और योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन का जरिया बताते हैं, जबकि विरोधी इसे राजनीतिक वोटबैंक साधने का प्रयास मानते हैं।
अब देखना होगा कि हाईकोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है और क्या यह सर्वे समय पर पूरा हो पाएगा या बीच में ही रोक दिया जाएगा।
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