Pashupatinath temple, kathmandu, Nepal- February 16 2019: Sadhus at the Pashupatinath temple, Kathmandu, Nepal.

यूपी में साधु-संन्यासियों से SIR भरवाना बीजेपी के लिए बना धर्मसंकट

Share Politics Wala News

यूपी में साधु-संन्यासियों से SIR भरवाना बीजेपी के लिए बना धर्मसंकट

Share Politics Wala News

 

Politicswala report

SIR in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी – अयोध्या, काशी (वाराणसी) और मथुरा-वृंदावन – इस बार चुनावी राजनीति में एक अजीब और अप्रत्याशित समस्या का केंद्र बन गई हैं। इसके पीछे की वजह है साधु-संतों के मतदाता सूची में शामिल होने के लिए जरूरी ‘Special Intensive Revision (SIR)’ फॉर्म, जिन्हें भरवाने में भाजपा को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कहा जा रहा है कि इसी स्थिति को देखते हुए चुनाव आयोग ने गुरुवार को SIR फॉर्मों की अंतिम तारीख 11 दिसंबर से बढ़ाकर 26 दिसंबर कर दी, जिससे भाजपा को थोड़ी राहत मिली है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या समस्या है कि सत्ताधारी दल को उन साधु-संतों को मनाना पड़ रहा है जिन्हें वह अपना ‘सबसे मजबूत समर्थन आधार’ मानती है?

यूपी में साधु-संन्यासियों से SIR भरवाना बीजेपी के लिए बना धर्मसंकट

माता का नाम कॉलम बना परेशानी का कारण

सबसे बड़ी समस्या यह है कि साधु-संत SIR फॉर्म में ‘मां का नाम’ लिखने से हिचक रहे हैं। जबकि यह कॉलम खाली रहने पर फॉर्म रिजेक्ट होने की आशंका है। कई साधु-संत, अपने पारंपरिक धर्म-मार्ग के अनुसार, गुरु का नाम ही अपने ‘पिता’ के रूप में लिखते हैं, क्योंकि वे गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यास लेते हैं। ऐसे में वे अपनी जैविक मां का नाम लिखना उचित नहीं मानते।

मां की जगह जानकी

अयोध्या के पूर्व BJP सांसद और विहिप नेता रामविलास वेदांती ने तो फॉर्म में अपनी मां के नाम की जगह ‘जानकी’ (सीता माता) लिख दिया। वे कहते हैं, “मां का नाम लिखना जरूरी है, इसलिए मैंने जानकी लिखा है। जो साधु अपनी मां का नाम नहीं जानते, वे जानकी ही लिखते हैं।
दिगंबर अखाड़े के महामंडलेश्वर प्रेम शंकर दास ने भी ‘जानकी’ को अपनी मां बताया और कहा, “हम विरक्त परंपरा से आते हैं… हमारे गुरु भी गृहस्थ नहीं थे। धार्मिक कारणों से मैंने जानकी को ही अपनी माता माना है। ”

 

नाम कटे तो पार्टी को नुकसान

स्थानीय भाजपा नेताओं के अनुसार, “अगर साधुओं के फॉर्म में मां का नाम खाली रहा, तो SIR के दौरान उनके नाम हटाए जा सकते हैं।” “यह पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा, क्योंकि अयोध्या में करीब 16,000 साधु-संत हैं। ” अयोध्या – जो फैज़ाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा है – में 2024 की हार के बाद भी BJP को उम्मीद साधु समाज से ही थी। 2024 की चुनावी शिकस्त के बाद एकमात्र राहत यही थी कि अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में भाजपा 4,667 वोटों से आगे रही।

पार्टी के लिए चिंता यह है कि राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कई बड़े महंत अखाड़ा प्रमुख और शहर के बड़े आश्रमों के संत यही वोट बैंक बनाते हैं। अवध क्षेत्र के बीजेपी महासचिव विजय प्रताप सिंह ने बताया, “अधूरे फॉर्म रिजेक्ट होने का डर था, इसलिए हमने साधुओं से कहा कि वे जानकी या अपनी परंपरा के किसी पवित्र नाम को मातृ-नाम के रूप में भरें। कई संतों ने हमारी बात मान ली। ”

स्थायी पते पर नहीं मिल रहे साधु-संत

बड़ी दिक्कत यह भी है कि साधु-संत देशभर में धार्मिक कार्यक्रमों, पूजा-अनुष्ठान और यात्राओं में लगातार घूमते रहते हैं। इस वजह से BLOs उन्हें उनके पते पर नहीं पा रहे। एक BJP नेता ने बताया, “फॉर्म ऑनलाइन भरने का विकल्प है, लेकिन ज़्यादातर साधु-संत तकनीक का उपयोग नहीं कर पाते। इसलिए कार्यकर्ताओं को ही फॉर्म भरवाने का निर्देश दिया गया है। ”

वाराणसी और वृंदावन में भी कई साधु मातृ-नाम का कॉलम खाली छोड़ रहे हैं. लेकिन वहां के BJP नेताओं को भरोसा है कि “अगर नाम हट भी गए तो ड्राफ्ट रोल आने के बाद दावे और आपत्तियां दाखिल कर देंगे। ”

पहले फॉर्म भरने की अंतिम तारीख 11 दिसंबर थी, और उससे पहले तक बड़ी संख्या में फॉर्म अधूरे थे। अब नई तारीख 26 दिसंबर होने से साधुओं को वापस बुलाने, फॉर्म समझाने और दस्तावेज़ इकट्ठे करने का समय मिल गया है। भाजपा को आशा है कि अब अधिकतर साधु-संतों के नाम हटने से बच जाएंगे।
पार्टी इसे ‘संवेदनशील मुद्दा’ मान रही है, क्योंकि राम मंदिर आंदोलन से जुड़े साधु-संतों का समर्थन बीजेपी की राजनीति का बुनियादी स्तंभ रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *