उफ्फ्फ्फ़ उठो, जागो … हिंदू अब ब्रिटेन में भी ख़तरे में !

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#POLITICSWALA रिपोर्ट

ब्रिटिश अखबार द डेली मेल द्वारा प्राप्त नेशनल पुलिस चीफ्स काउंसिल (एनपीसीसी) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ब्रिटेन में हिंदू चरमपंथी
मुसलमानों के प्रति ‘साझा नफरत’ के कारण ‘मुस्लिम विरोधी अभियान’ को बढ़ावा देने के लिए दक्षिणपंथी समूहों के साथ गठबंधन कर रहे हैं।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा से जुड़े कई चरमपंथियों पर यहां तक आरोप है कि वे “ब्रिटिश चुनावों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और हिंदुओं को बता रहे हैं कि उन्हें किस पार्टी को वोट देना चाहिए और किससे दूर रहना चाहिए।

इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए हिंदू समूह इनसाइट यूके ने कहा कि वह डेली मेल और स्वतंत्र मीडिया नियामक इंडिपेंडेंट प्रेस स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन के पास शिकायत दर्ज कराएगा। यह निराधार और बिना सबूत के है. यह लेख हिंदुओं को ब्रिटेन में कम सुरक्षित महसूस करा रहा है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि हिंदुत्व की विचारधारा ब्रिटेन में हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों के बीच विभाजन को बढ़ावा दे रही है, कुछ चरमपंथी एंडर्स ब्रेविक जैसे दक्षिणपंथी आतंकवादियों से प्रेरणा ले रहे हैं।

नॉर्वे में 77 लोगों की हत्या करने वाले ब्रेविक ने हिंदुत्व की विचारधारा की प्रशंसा की और मोदी की भाजपा और चरमपंथी आरएसएस को प्रभाव के स्रोत के रूप में उद्धृत किया।

इसमें कहा गया है कि ब्रिटेन में दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं को भी हिंदुत्व की विचारधारा के कुछ पहलू आकर्षक लगे। यह पहली बार है, जब किसी सरकारी रिपोर्ट में हिंदुत्व को चिंता के रूप में उल्लेख किया गया है. इसमें कहा गया है : ‘हिंदुत्व हिंदू धर्म से अलग एक राजनीतिक आंदोलन है, जो भारतीय हिंदुओं के आधिपत्य और भारत में एक अखंड हिंदू राष्ट्र या राज्य की स्थापना की वकालत करता है।

… इधर हिंदुस्तान में

वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली नई याचिका खारिज : सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच ने मंगलवार को कहा कि यह याचिका लंबित चुनौती याचिका से अलग नहीं है. यद्यपि, कोर्ट ने याचिककर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय को अधिनियम को चुनौती देने के लिए लंबित मामले में ही आवेदन दायर करने की छूट दी है. बता दें, यह अधिनियम धार्मिक स्थलों को उनके 15 अगस्त 1947 से पहले के रूप में संरक्षित करता है.

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