हरियाणा में मायावती vs चंद्रशेखर….दलित वोटर्स बिगाड़ेंगे बीजेपी, कांग्रेस का गणित

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चंडीगढ़। हरियाणा का सियासी पारा इन दिनों चढ़ा हुआ है यहाँ जाट के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक दलितों का ही है। इस जाति वाले समीकरण को देखते हुए सभी पार्टी जाट और दलितों के वोट बैंक को साधने में जुटी हुई है। हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है। जिसमे 17 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं ।

लेकिन दलित वोटर्स का असर हरियाणा की सियासत में तकरीबन चालीस फीसदी सीटों यानी कि लगभग 35 सीटों पर पड़ता है। हरियाणा के इस चुनाव में दो दलित नेताओं की एंट्री से भाजपा, कांग्रेस दोनों के समीकरण पर फर्क पड़ेगा। एक तरफ चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी 20 सीटों पर मैदान में है तो दूसरी तरफ मायावती ने भी मोर्चा संभाल लिया है। मायवती के भतीजे और बीसीपी के रणनीतिकार ने हरियाणा में डेरा डाल दिया है।

यही वजह है कि कांग्रेस से लेकर भाजपा और बसपा से लेकर आजाद समाज पार्टी और जेजेपी समेत इनेलो \ आदि जैसे अनेक दल दलितों को अपने पाले में करने के लिए सभी सियासी जोड़ तोड़ कर रहे हैं।

कांग्रेस तो दलित और जाट समुदाय को अपने साथ जोड़ने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान के सहारे सियासी नैया पार लगाने की तैयारी कर रही है।

दरसल इसी साल हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने अपने इसी सियासी कॉम्बिनेशन के चलते भाजपा से पांच सीटें अपने पाले में करली थीं। अंबाला और सिरसा जैसी आरक्षित सीटें भी कांग्रेस ने जीत ली थीं। इसी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस ने इस बार विधानसभा चुनाव में वही फार्मूला अपनाने की कोशिश की है ।

दलितों, मुस्लिमों और जाट समुदाय को हरियाणा के चुनाव में खूब तवज्जो मिल रही है। दरअसल यह वह फैक्टर है, जिसके दम पर इस बार राजनीतिक दल यहां सरकार बनाने की जुगत लगा रहे हैं। इसी के मद्देनजर ”बसपा” ने इस चुनाव में अपने नेशनल कोऑर्डिनेटर ”आकाश आनंद” को बड़ी जिम्मेदारी के साथ मैदान में उतारा है।

दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव में ”बसपा” के हाथ तो कुछ भी नहीं लगा था, लेकिन दलितों के सहारे वोट प्रतिशत हरियाणा के स्थानीय दलों की तुलना में बेहतर हासिल किया था। इस बार फिर ”बसपा” उससे बेहतर करने की उम्मीद में यहां के सियासी मैदान में उतरी है। पिछले चुनाव में ”बसपा” ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था।

इनमें से 82 सीटों पर ”बसपा” की जमानत तक जब्त हो गई थी। बावजूद इसके ”बसपा”ने 4 फीसदी से ज्यादा वोट पाए थे। इस बार ”बसपा” और ”इनेलो” का गठबंधन है। ”इनेलो” भी दलित वोटों के फेर में ”बसपा” से वोट ट्रांसफर की उम्मीद लगाये बैठी है।

दलितों में मजबूत पैठ रखने वाले नगीना के सांसद ”चंद्रशेखर” भी अपनी पार्टी ”आजाद समाज पार्टी” के सहारे हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे है। राजनैतिक नजरिए को भांपते हुए ”चंद्रशेखर” ने अपनी पार्टी का गठबंधन हरियाणा की जेजीपी पार्टी से किया है।

दरअसल यह दोनो सियासी दल दलितों के वोट बैंक के सहारे हरियाणा में सियासी नैया पार लगाना चाहते हैं। इस सियासी करार के तहत 70 सीटों पर तो जेजेपी चुनाव लड़ेगी। जबकि 20 सीटों पर चंद्रशेखर की पार्टी चुनाव लड़ेगी।

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