श्रवण गर्ग (वरिष्ठ पत्रकार )
यह वह जगह है जो गुरुवार को दिन के एक बजकर अड़तीस मिनिट तक हज़ारों लोगों की चहल-पहल से आबाद थी। हम सोचते होंगे कि एक बड़ी जगह के दो मिनिटों में इस तरह श्मशान में बदल जाने बाद कहीं ठहरते तो कहीं रुकते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में क्या विचार उठ रहे होंगे ? ड्रीमलाइनर … मोदी जी इस समय क्या सोच रहे होंगे ?
वे कुछ तो ज़रूर सोच रहे होंगे ! ग्यारह सालों की दिल्ली में हुकूमत के दौरान इतनी बड़ी राष्ट्रीय दुर्घटना पहली बार ! वह भी अपने ही उस गृह राज्य में जहां वे बारह साल मुख्यमंत्री रहे ! 268 मौतें एक साथ, दो मिनिट में ! हज़ार डिग्री के तापमान में ! किसी भी श्मशान में शरीर के राख में बदलते वक्त इतना तापमान नहीं होता !
हम कल्पना कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री कई बातें एक साथ सोच रहे होंगे ! बड़े लोगों को कई काम एक साथ करना होता है । मोदी जी उन लोगों की तरह तो निश्चित ही नहीं सोच पा रहे होंगे जो अहमदाबाद के भव्य सरदार पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने प्रियजनों को विदाई देने पहुँचे होंगे और डिपार्चर टर्मिनल पर उनके आँखों से ओझल होने तक हाथ हिलाते रहे होंगे।
जिन्होंने बार-बार याद दिलाया होगा कि लंदन पहुँचते ही फ़ोन करके सूचना दे देना !या फिर उन सैकड़ों लोगों की तरह भी जो अगवानी के लिए लंदन के गेटविक एयरपोर्ट पर पहुँचकर आनेवाले प्रियजनों से गले मिलकर उन्हें गुलदस्ते भेंट करने का सोच रहे होंगे और तभी यह हृदय विदारक सूचना प्राप्त हुई होगी कि सब कुछ राख हो चुका है ! वे अब उनके मुँह भी नहीं देख पाएँगे !
प्रधानमंत्री शायद विशाल सिविल हॉस्पिटल, उससे लगे बी जे मेडिकल कॉलेज और हॉस्टल्स में अपनी ज़िंदगी के खूबसूरत साल बिताकर देश-दुनिया में सेवाएँ दे रहे उन डॉक्टरों के बारे में भी नहीं सोच पा रहे होंगे कि उन सबके मन में कैसी उथल-उथल मची हुई होगी !
बेटी और दामाद ने सालों पहले अपनी पीजी की पढ़ाई इसी हॉस्पिटल-कॉलेज से पूरी की थी। बेटी यहीं के एक गर्ल्स हॉस्टल में रहती थी जहां मैं उससे मिलने जाता था। उसी मेस में जाती थी जो दुर्घटना की चपेट में आया। वह ऑस्ट्रेलिया से फ़ोन करके अब पूछती है यह सब कैसे हो गया ? मैं क्या जवाब देता ?
मुमकिन है प्रधानमंत्री ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के बारे में भी कुछ सोचा हो जो दुर्घटनाग्रस्त विमान में सवार थे। चार साल पहले बारह-तेरह सितंबर की रात दिल्ली से उन्हें फ़ोन पहुँचा था कि इस्तीफ़ा दे दीजिए और रूपाणी ने तत्काल पूरे मंत्रिमंडल सहित त्यागपत्र सौंप दिया था। उनके बाद से भूपेन्द्र पटेल ही गुजरात के मुख्यमंत्री हैं।
मोदी जी दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले और सबसे बड़े प्रजातांत्रिक राष्ट्र के मुखिया हैं। विमान हादसे के तीन दिन पहले ही अपने तीसरे कार्यकाल का पहला साल और हुकूमत के ग्यारह साल उन्होंने पूरे किए थे। बीजेपी और सरकार अभी उनके कार्यकाल की उपलब्धियां भी ठीक से गिना नहीं पाई थी कि यह हादसा हो गया ! वह भी मोदी जी के गृहराज्य में !
हम सिर्फ़ अनुमान ही लगा सकते हैं कि मोदीजी क्या सोच रहे होंगे ! मसलन एक-के-बाद-एक घटनाएँ क्यों हो रही हैं ? बाईस अप्रैल को जब पहलगाम-नरसंहार हुआ वे सऊदी अरब में थे। वे अगले दिन भारत लौटे ज़रूर पर पहलगाम नहीं गए। लौटने केअगले ही दिन चुनावी दौरे पर बिहार चले गए। पहलगाम के बाद सात मई से दस मई तक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हो गया। अब जबकि उन्हें कनाडा की महत्वपूर्ण यात्रा पर रवाना होना है यह दर्दनाक हादसा हो गया।
मोदी जी के सोच में क्षण भर के लिये शायद आया हो कि ऐसे वक्त में उन्हें उन्हें कनाडा जाना चाहिए या नहीं ? 15 से 17 जून तक कनाडा में G-7 समूह के देशों की बिखर वार्ता है। भारत G-7 समूह का सदस्य नहीं है पर 2019 के बाद से मोदी जी एक आमंत्रित के तौर पर उसकी बैठकों में भाग लेते रहे हैं। इस बार मोदीजी को आख़िरी वक्त पर आमंत्रित किया गया जिससे यात्रा का महत्व और बढ़ गया। वहाँ ट्रम्प भी आने वाले हैं ।कनाडा से भारत के संबंध काफ़ी ख़राब चल रहे हैं। उन्हें भी ठीक करना है।मोदी जी की यात्रा को लेकर कनाडा में विरोध भी रो रहा है।
दुर्घटना-स्थलों,अस्पतालों, श्मशानों, मुर्दाघरों आदि की यात्राओं के समय आत्माएँ अस्थायी तौर पर चोला बदल लेती हैं ! सांसारिक पुरुषों में श्मशान-वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। भौतिक जगत मिथ्या नज़र आने लगता है। पर यह भी उतना ही सही है कि विमान के दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुँचते ही ऊपर का ‘सारा आकाश’ बदल जाता है ! आत्माएँ अपने निर्धारित स्थानों पर पहुँच जाती हैं। अतः विमान दुर्घटना को लेकर हम चाहे जितने भी संताप में हों, जो कुछ भी सोच रहे हों, एक प्रधानमंत्री के सोच को उसमें शामिल करने की गलती नहीं करना चाहिए !
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